News Strike: दिवाली बाद मचेगी BJP-Congress में भागमभाग, जो थमे वो गंवा सकते हैं टिकट!

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Shivasheesh Tiwari
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News Strike: दिवाली बाद मचेगी BJP-Congress में भागमभाग, जो थमे वो गंवा सकते हैं टिकट!

हरीश दिवेकर, BHOPAL. दिवाली के बाद सियासी दलों का माहौल तेजी से बदला हुआ नजर आएगा। क्या कांग्रेस क्या बीजेपी, हर दल के कार्यकर्ता एक्शन मोड में नजर आएंगे। महाकाल लोक के जरिए बीजेपी ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। उधर कमलनाथ की सख्ती ने नेताओं की नींद उड़ा दी है। दोनों दल के नेताओं को ये इल्म हो चुका है कि दिवाली बाद भी अलसाए रहे तो बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। 2023 की जंग इस बार एमपी में बेहद दिलचस्प हो चुकी है। पिछले चुनाव में हार का जख्म झेल चुकी बीजेपी इस बार कोई कोताही बरतने के मूड में नहीं है। सत्ताधारी दल होने के बावजूद बीजेपी के सामने चुनौतियां बड़ी हैं। एक बार जीत का स्वाद चख चुकी कांग्रेस भी प्रदर्शन को और बेहतर तरीके से दोहराने के मूड में हैं।  कमलनाथ की सख्ती अभी से कार्यकर्ताओं पर लाजिम हो चुकी है। मैसेज साफ है जो विधायक सुस्ती खोल छोड़कर बाहर नहीं निकला वो टिकिट गंवा बैठेगा। मौका बस दिवाली तक का है, इधर दिवाली बीती और उधर नेताओं को कमर कस कर इम्तिहान की तैयारी में जुट जाना है।





हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोरने की तैयारी 





2023 के विधानसभा में इस बार मध्यप्रदेश में कई रंग नजर आएंगे। फिलहाल बीजेपी के पास प्रदेश में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। खासतौर से कांग्रेस की खामियां गिनाने के लिए, यही वजह है कि बीजेपी प्रदेश में एकदम नए ट्रैक पर आगे बढ़ रही है। यूपी की तर्ज पर यहां भी हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोरने की तैयारी है, जिसका आगाज हुआ है महाकाल के दरबार से हुआ है। यहां पीएम नरेंद्र मोदी ने विशाल शिवलिंग का अनावरण कर चुनावी माहौल का आगाज भी कर दिया है। इस भाव को हर शिवभक्त अपने दिल से महसूस कर सके, इसकी तैयारी गांव गांव और शहर शहर के स्तर पर की गई थी। प्रदेश में 23 हजार सरकारी मंदिर व ट्रस्ट हैं और 2 हजार से ज्यादा मंदिरों की देखरेख निजी स्तर पर की जाती है। महाकाल लोक का संदेश इस सब मंदिरों के जरिए हर गांव और शहर तक पहुंचाने की तैयारी की गई थी। लोगों में हिंदुत्व का भाव जगाने के लिए हर मंदिर को लाइटों से सजाया गया। पूरी साफ-सफाई के बाद अधिकांश स्थानों पर बड़ी स्क्रीन पर ये भव्य समारोह भी दिखाया गया। अकेले राजधानी भोपाल के ही तीस मंदिरों में ऐसे इंतजाम किए गए। इस पूरे काम की जिम्मेदारी स्थानीय नेताओं को ही सौंपी गई। 





केंद्र और राज्य की लोकप्रिय योजनाओं का बखान 





अब इसी तर्ज पर बीजेपी आगे बढ़ने वाली है, स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है कि वो लोगों तक जा जाकर केंद्र और राज्य की लोकप्रिय योजनाओं का बखान करेंगे। हर बड़ी इकाई को बूथ में बांटा गया है, नेताओं को चुनौती दी गई है कि वो हर बूथ तक महाकाल लोक के साथ साथ हिंदुत्व की बात भी करेंगे और बीजेपी की योजनाओं पर भी पूरी तरह चर्चा करेंगे। 





कमलनाथ ने अपने स्टाइल में सर्वे करवाया





टिकट की हसरत रखने वाले हर नेता को खुद को इस काबिल साबित करना होगा कि वो एक सीट जीता कर पार्टी को सत्ता में ला सकता है। ये साबित करने के लिए मैदान में उतरना जरूरी होगा। यही हाल कांग्रेस में भी है, जहां कमलनाथ अपने स्टाइल में सर्वे करवा कर ये फैसला लेंगे कि किसे टिकिट दिया जाए और किसे नहीं। जो भी कांग्रेस से टिकिट चाहते हैं, उन्हें अपनी निष्ठा पार्टी के प्रति साबित करना होगी। बीजेपी नेताओं को सरकार की योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का टास्क मिला है तो कांग्रेस के नेताओं को सरकार की खामियां लोगों के बीच पहुंचानी है।





राहुल गांधी की यात्रा एक नया माहौल बनाएगी





दोनों ही दल के नेता जो भी काम अंजाम देने वाले हैं इसकी मॉनिटरिंग सीधे आलाकमान और पार्टी के बड़े नेताओं के स्तर पर होनी है। यानी समय कम है और सर्वे की तलवार लटक रही है। यही वजह है कि अब दिवाली के बाद दोनों ही दलों का सियासी माहौल बदलने वाला है। दिवाली गुजरते-गुजरते चुनाव में बमुश्किल एक साल का वक्त रह जाएगा। इससे पहले प्रदेश में राहुल गांधी की यात्रा एक नया माहौल बनाएगी। महाकाल लोक के बाद बीजेपी ने तो माहौल बना ही दिया है, इसलिए अब स्थानीय नेताओं की भी मजबूरी हो गई है कि वो अपने क्षेत्रों में डंट जाएं और काम करते नजर आएं। 





विधायकों के टिकट कटने की तैयारी





दिवाली बाद से उन विधायकों का टेंशन सबसे ज्यादा बढ़ने वाला है जिन्होंने चार साल क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया या बिलकुल ही नहीं दिया। ऐसे विधायकों का टिकट कटने की पूरी संभावनाएं हैं। अगर टिकट बचाना है तो उन्हें धुआंधार तरीके से क्षेत्र में उतरना होगा। चुनावी सीजन में सर्वे कराना आम बात है। लेकिन इस बार मुकाबला कांटे का है, इसलिए कांग्रेस बीजेपी दोनों ही तीन-तीन सर्वे करवा रही हैं, जिसके नाम से ही नेताओं में खलबली मची हुई है। बीजेपी के सर्वे का आधार चंद सवाल ही नहीं होंगे बल्कि बूथ स्तर तक रायशुमारी भी होगी उसके बाद कोई फैसला होगा। कमलनाथ भी ये साफ कर चुके हैं कि सर्वे में जो लोग फेल हुए वो टिकिट की आस बिलकुल ही छोड़ दें। तीन चरणों में होने वाले सर्वे के बाद टिकट किसे मिलेगा यह तय कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि दोनों पार्टियों पहले ही एक आंतरिक सर्वे करा चुकी हैं। कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सर्वे में मौजूदा 27 विधायकों की स्थिति खराब बताई गई है। कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के बाद अब कांग्रेस के कई मौजूदा विधायक सीट बदलने के मूड में आ गए हैं।





बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों की स्थिति ठीक नहीं





सिर्फ कांग्रेस के अंदर ही विधायक सीट बदलने की तैयारी में नहीं हैं, बल्कि बीजेपी के अंदर भी आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में आधा दर्जन मंत्री ऐसे निकल कर आए हैं, जिनके प्रभाव वाले जिले में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा है। पार्टी की सर्वे रिपोर्ट में भी कई विधायकों की स्थिति ठीक नहीं बताई गई है। माना तो ये भी जा रहा है कि बीजेपी इस बार पचास प्रतिशत सीटों पर नए चेहरों को मौका दे सकती है। टिकट वितरण के लिए बीजेपी इस बार कोई नया फार्मूला सामने ला सकती है। कैडरबेस बीजेपी में टिकट को लेकर सबसे ज्यादा तकरार होने के आसार भी हैं। बीजेपी में सर्वे के अलावा रायशुमारी को भी टिकट में महत्व दिया जा रहा है। यह रायशुमारी विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ताओं से की जा रही है और इसकी रिपोर्ट गुप्त रखी गई है। इस रायशुमारी में कार्यकर्ता अपनी पसंद के नेता का नाम लिखकर देगा। इसके अलावा पांच साल के परफार्मेंस के आधार पर तैयार रिपोर्ट कार्ड और सर्वे को भी टिकट का आधार बनाया जाएगा। सर्वे के इस तरीके ने कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को परेशान किया है। क्योंकि, बीजेपी का स्थानीय कार्यकर्ता भी अधिकांश जगहों पर मौजूद विधायकों से खुश नहीं बताया जाता है।





कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए विधायकों के पास समय बहुत कम





ऐसे हाल में इस बार नए चेहरे मैदान में दिखें तो हैरानी नहीं होगी। क्योंकि, अब कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए विधायकों के पास समय बहुत कम है। उन्हें चंद महीनों में ही क्षेत्र में पकड़ मजबूत करनी है और कार्यकर्ताओं का भरोसा भी जीतना है। दिवाली के बाद दोनों ही दलों के बड़े नेता कमर कस कर चुनावी मैदान में उतर जाएंगे।  राहुल गांधी की यात्रा कांग्रेस में नया जोश फूंक सकती है तो बीजेपी के बड़े नेताओं की रैलियां और सभाएं भी बीजेपी में नई जान डालेगी। मुसीबत उन विधायकों या दावेदारों की होनी है जो अब भी नहीं जागे तो टिकिट गंवा कर ही होश में आएंगे।



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