जितेंद्र श्रीवास्तव, BHOPAL. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे सुंदरलाल पटवा की आज यानी 11 नवंबर को जयंती है। उनका जन्म नीमच जिले के कुकड़ेश्वर गांव में 11 नवंबर 1924 को हुआ था। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा ऐसे नेता थे, जिन्हें पार्टी की जड़ें मजबूत करने का श्रेय जाता है। वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु भी माने जाते हैं। पटवा आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके किस्से आज भी चर्चाओं में रहते हैं।
मोदी के लिए जो दावा किया गया था, उससे खुश नहीं हुए थे पटवा
बताया जाता है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद नहीं करते थे। पटवा ने उनका बायकॉट तक कर रखा था। यह उस दौर की बात है, जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे थे। संगठन मंत्री की जिम्मेदारी कृष्णमुरारी मोघे को दी गई थी। इसके साथ ही पार्टी हाईकमान ने राष्ट्रीय महामंत्री रहते मोदी को मध्य प्रदेश का प्रभारी बना दिया था। मोदी की इस नियुक्ति पर पटवा बेहद नाराज हो गए थे। उस समय मोदी को मध्य प्रदेश का प्रभारी बनाते समय यह बताया गया था कि जहां वे प्रभारी रहते हैं, पार्टी को चुनाव में जीत मिल ही जाती है। यह भी कहा था कि गुजरात के प्रभारी रहते हुए और हिमाचल प्रदेश का प्रभारी रहते हुए उन्होंने (नरेंद्र मोदी ने) बीजेपी को जीत दिलाई थी। इसी सिलसिले में मध्य प्रदेश का प्रभार भी उन्हें बना दिया गया। यही बात सुंदरलाल पटवा और कृष्णमुरारी मोघे को पसंद नहीं आई। एक पुस्तक ‘राजनीतिकनामा‘ में यह प्रसंग मिलता है।
शिवराज की तारीफ करते थे पटवा
पटवा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु माने जाते हैं। पटवा कहते थे कि शिवराज का व्यक्तित्व दक्ष प्रशासक का है, जिसे विरासत में बीमारू मध्य प्रदेश मिला। उन्हें (पटवा को) आशंका थी कि शिवराज कार्यकुशल साबित होंगे या नहीं, लेकिन शिवराज ने रोज 20-22 घंटे काम करके योग्यता साबित कर दी।
जेब में हमेशा रखते थे काजू, गांव से आता था छांछ
कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को काजू बेहद पसंद थे। उनके कुर्ते की जेब में हमेशा काजू रखे रहते थे। बैठक या अन्य किसी कार्यक्रम में वो काजू इतनी चतुराई से मुंह में रखते थे कि बगल में बैठे व्यक्ति भी नहीं जान पाता था कि वे काजू खा रहे हैं।
पटवा मूलतः कुकड़ेश्वर (नीमच) के रहने वाले थे। पटवा को छांछ बहुत पसंद था। दिन में दो-तीन बार छांछ पीना उनकी आदत में शुमार रहा। जब पटवा मुख्यमंत्री बने तो एक जीप खास तौर से कुकड़ेश्वर से छांछ लाने के लिए लगाई गई। इसकी चर्चा उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान खूब हुआ करती थी। इसके अलावा उनके क्षेत्र के फैक्ट्री मालिकों से उनकी नजदीकियों पर आज भी बातें होती हैं।
18 वर्ष की उम्र में संघ से जुड़े
पटवा का जुड़ाव संघ की विचारधारा में बचपन से देखा गया। वे जब 1942 में 18 साल के हुए तो आरएसएस की सदस्यता ले ली। 1947 से चार साल तक संघ प्रचारक की भूमिका निभाई। सात माह जेल यात्रा भी की। संघ विचारधारा को आगे बढ़ाने के साथ उनकी रुचि राजनीति में भी रही। 1975 में जनसंघ मध्य प्रदेश के महासचिव बने। आपातकाल के दौरान 27 जून 1975 से 28 जनवरी 1977 तक मीसाबंदी रहे।
1977 में जनता पार्टी कार्यसमिति में शामिल हुए। इस साल विधानसभा के लिये भी चुने गए। वे 20 जनवरी 1980 से 17 फरवरी 1980 तक पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्हें पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन 1989 में विधानसभा गौरव से सम्मानित किया गया। उसके बाद 1990 के विधानसभा चुनाव जीते और 5 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक मुख्यमंत्री रहे। 1993 में फिर विधायक चुने गए। 1997 में छिंदवाड़ा से लोकसभा उपचुनाव में जीते और वाजपेयी सरकार में दो साल मंत्री भी रहे।
दुनिया से जाना भी खास रहा
28 दिसंबर 2016 सुबह जब वे देर तक नहीं जागे तो परिजन उन्हें शाहपुरा स्थित बंसल अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है। कुछ देर बार उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। ये भी अजब संयोग है कि पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा का 92 साल की उम्र में निधन भी उसी तारीख को हुआ, जिस दिन 13 साल पहले (28 दिसंबर 2003) कुशाभाऊ ठाकरे का निधन हुआ था।