BHOPAL. मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने निजी प्राइमरी-मिडिल स्कूलों को मान्यता देने का अधिकार जिला शिक्षा अधिकारियों (डीईओ) से छीन लिए हैं। अब यह जिम्मेदारी जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) निभाएंगे। इसके लिए सरकार ने 'निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (आरटीई)' के नियम बदल दिए हैं।
सरकार ने मान्यता विलंब शुल्क घटाई
सरकार ने मान्यता विलंब शुल्क भी 10 हजार रुपये से घटाकर पांच हजार रुपए कर दी। प्रदेश में 42 लाख 42 हजार 816 निजी प्राइमरी और 25 लाख 9 हजार 428 मिडिल स्कूल हैं, जिन्हें हर 3 साल में मान्यता का नवीनीकरण करना पड़ता है, वहीं इस अवधि में 500 से 1 हजार नए स्कूल खुल जाते हैं।
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30 दिन में मान्यता प्रकरण का करना होगा निराकरण
नए नियमों के अनुसार जिला परियोजना समन्वयक को अब 30 दिन में मान्यता प्रकरण का अनिवार्य रूप से निराकरण करना होगा। वे ऐसा नहीं करते हैं तो पोर्टल खुद ही यह प्रकरण कलेक्टर को भेज देगा। इसे डीपीसी की अनुशंसा मानते हुए कलेक्टर निरीक्षण कराएंगे और जांच में मापदंड पूरे ना होने पर मान्यता निरस्त कर सकेंगे।
DPC मान्यता नहीं देते हैं, तो स्कूल प्रबंधक कर सकते हैं अपील
वहीं किन्हीं कारणों से डीपीसी मान्यता नहीं देते हैं, तो स्कूल प्रबंधक कलेक्टर के सामने 30 दिन में पहले अपील पेश कर सकेंगे और 30 दिन में कलेक्टर को उसका निराकरण करना होगा। ऐसा नहीं होता है तो दूसरी अपील आयुक्त या संचालक राज्य शिक्षा केंद्र के सामने प्रस्तुत करनी होगी। उनका निर्णय अंतिम और बंधनकारी होगा।
नया स्कूल खोलने के लिए 5 से 10 हजार मान्यता शुल्क
उधर, स्कूल संचालक लंबे समय से विलंब शुल्क घटाने की मांग कर रहे थे। नए नियमों के अनुसार स्कूल को नाम, पता या स्कूल समिति का नाम बदलने के लिए भी 5 हजार रुपए शुल्क देना होगा। नया स्कूल खोलने के लिए पांच से 10 हजार रुपए मान्यता शुल्क लिया जाएगा, जबकि मान्यता नवीनीकरण के लिए स्कूल संचालकों को 2 से 4 हजार रुपये शुल्क देना होगा।