रायसेन में लकड़ियों और पत्थरों का म्यूजियम, जहां 300 से ज्यादा कलाकृतियों को संजोकर रखा है

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Vijay Choudhary
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रायसेन में लकड़ियों और पत्थरों का म्यूजियम, जहां 300 से ज्यादा कलाकृतियों को संजोकर रखा है

पवन सिलावट, RAISEN. रायसेन जिले की सांची में अनोखा दृश्य है। यहां एक कारपेंटर ने लकड़ियों और पत्थरों से खोजी दुनिया को संजोया है। सजीव-निर्जीव और बिलुप्त जानवरों, पशु-पक्षियों, खिलाड़ियों, भारत माता ,सही सैकड़ों वुड आर्ट और पत्थरों पर प्राकर्तिक कलाकृति उकेरी ही। कलाकार को 4 बड़े-बड़े अवॉर्ड मिले हैं, लेकिन इसके बाद भी वो और उसका म्यूजियम सरकार और प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा है।



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300 से ज्यादा कलाकृतियों को संजोकर रखा



रायसेन जिले की बौद्ध स्थली सांची दुनिया में परिचय की मोहताज नही हैं। लेकिन एक कारपेंटर ने अपने बीवी बच्चों की परवाह किये वो अनूठी आर्ट को इकट्टा किया। लकड़ियों और पत्थरों से खोजी और दुनिया का अनोखा म्यूजियम बनाया। जिसमें 300 से ज्यादा कलाकृतियों को संजोकर रखा हैं। मुन्ना लाल विश्वकर्मा कम पढ़े लिखे हैं लकड़ी का काम कर बच्चों का भरण पोषण करते थे। लेकिन उन्होंने जलाने वाली लकड़ी जो अनुपयोगी होती हैं उन्हीं से दुनिया की अद्भुत और बिलुप्त चीजों को लकड़ियों और पत्थरों में खोज निकाला। 



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ये कलाकृति म्यूजियम में रखीं



300 से अधिक वुड आर्ट में बैठा शेर, लेटी हुई महिला, मोहन जोदड़ो कालीन वर्तन, चम्मच-कटोरी, ऑक्टोपस, कुत्ता, नाग-नागिन, डायनासोर, गुरु-शिष्य, ममत्व महिला, एनाकोंडा, बाजूका, मनुष्य का गुर्दा,अवस्त्र महिला और महिला पुरुष जननांग, प्रेम करती आर्ट, मां दुर्गा, भारतमाता, साधु, गणेश, शिवलिंग, कुबेर समेत सभी वुड आर्ट हैं। वहीं कृषि के प्राचीन उपकरण भी म्यूजियम में हैं। 



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पत्थरों पर बिखेरी कलाकृति



पत्थरों पर जीवाणु, विषाणु, और ग्लोव,कश्मीर की वादियां, अंडा आकृत्ति, मनुष्य की फोटो, मां-बच्चे को दुलार करती पत्थर पर आर्ट। 300 से अधिक आर्ट हैं जो दुनिया के म्यूजियम से इस म्यूजियम को अनोखा बनाती हैं। अभी तक 4 लिम्का अवॉर्ड समेत कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। देश-विदेश से सांची आने वाले पर्यटक इन कला कृतियों को देख आश्चर्य चकित होते हैं। लेकिन कहावत हैं कि दिया तले अंधेरा यही मुन्ना लाल के लिए साबित हो रही, ना जिला प्रशासन का सहयोग और ना ही सरकार का सहयोग।



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30 सालों में सभी चीजें की इकट्ठा



मुन्ना लाल ने 30 सालों में वो सब खोया जो बच्चे और पत्नी परिवार चाहता था। लेकिन दुनिया को पर्यावरण, संस्कृति को बचाने के लिए अनूठी कला इकट्ठा की जो दुनिया के किसी म्यूजियम में नही हैं। सुबह 5 बजे बिना भोजन किए निकलते थे और शाम, या रात में लकड़ियों की आर्ट लेकर आते थे। बच्चों से यही कहना कि मैं दुनिया के लिए अजूब चीजे एकत्रित कर रहा हूं जो एक अनूठा उदाहरण होगा। ऐसा ही हुआ लेकिन सरकार और प्रशासन ने इस हीरे के जोहरी की कदर नहीं की।



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सांची पहुंचने वाले पर्यटक म्यूजियम जाते हैं



जो इस निजी म्यूजियम को देखने आता हैं वो अनुपयोगी लकड़ियों और पत्थरों के आर्ट से बनी चीजों को देखकर दांतो तले उंगलिया दबा लेते हैं। दुनिया का म्यूजियम ये अनोखा म्यूजियम हैं लेकिन सरकार की अपेक्षाओं से दूर है।



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आर्ट कला प्रेमी मानते हैं कि दुनिया के हर म्यूजियम में वो नही है जो इस निजी म्यूजियम में है जो पर्यावरण और उन संस्कृतियों को संजोए हुए हैं जिन्हें आने वाली पीढ़िया सिर्फ किताबों में ही पढ़ेगी लेकिन देखने को नहीं मिलेगी।



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