BHOPAL. मध्यप्रदेश में कमलनाथ का बैंक्विट लगा है। जहां घोषणा का कॉकटेल सजा है। इस कॉकटेल में थोड़ा शिवराज का फ्लेवर है तो थोड़ा केजरीवाल का पिंच भी एड है। इसका नशा अगर मतदाता पर चढ़ा तो न शिवराज दिखेंगे न केजरीवाल। नजर आएंगे तो बस कमलनाथ ही कमलनाथ। मेरी बात को मजाक मत समझिए, इस बात को गंभीरता से यूं समझिए कि 2023 की तरफ कमलनाथ दोनों हाथ खोलकर आगे बढ़ रहे हैं। जो हथियार चाहते हैं उठाते हैं। जो दांव चाहते हैं लगाते हैं। मुकाबला शिवराज सिंह चौहान से हैं। जो भले ही 17 या 18 साल से सीएम हैं, लेकिन दोनों हाथ बंधे हुए हैं। हथियार उठाना तो दूर, उनके बारे में सोचने से भी पहले दिल्ली की परमिशन लेनी पड़ रही है। उस पर कमलनाथ घोषणा पर घोषणा के तीर चला रहे हैं और शिवराज अब भी ढाल का इंतजार कर रहे हैं। बात सिर्फ शिवराज की नहीं है कमलनाथ के ताजा तीरों से घायल तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी जरूर होंगे।
फिलहाल मतदाता को रिझाने उन घोषणाओं पर एक नजर
साल 2023 का चुनाव मध्यप्रदेश की जनता के लिए लोकतंत्र के पर्व से ज्यादा दिवाली का त्योहार ज्यादा नजर आ रहा है। जब राजनेता उन्हें मनाने के लिए योजना पर योजनाओं का बोनस देने का ऐलान करते चले जा रहे हैं। आलम ये है कि एक डाल डाल होता है तो दूसरे की कोशिश पात पात होने की हो जाती है। डाल की मजबूती ज्यादा या पत्तों की संख्या पर यकीन ज्यादा इसका फैसला तो चुनाव के बाद ही होगा। फिलहाल थोड़ी नजर उन घोषणाओं पर डालिए जो इस चुनाव में मतदाता को रिझाने के लिए हो रही हैं।
वोटर को ‘चुनावी बोनस’
- लाड़ली बहना योजना के तहत महिलाओं को हजार रु. देने की शिवराज की घोषणा
ये तो बस वादों और घोषणाओं की शुरूआत है। सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस और भी घोषणाएं कर सकती है, लेकिन इस फेहरिस्त में वो घोषणा शामिल नहीं है जो वाकई गेमचेंजर साबित हो सकती है।
मुफ्त बिजली और पुरानी पेंशन स्कीम से कमलनाथ चुनावी खेल को बदल सकते हैं
2023 के लिए गेमचेंजर साबित होने वाली ये वो घोषणा है जिसके एक दांव से शिवराज और केजरीवाल दोनों चारों खाने चित्त हो सकते हैं। पैंतरा केजरीवाल का है जो वो हर चुनाव से पहले फेंकते हैं। इस बार उसे आजमाया पहले कमलनाथ ने है। ये घोषणा है सौ यूनिट माफ, दो सौ हाफ। मुफ्त बिजली और पुरानी पेंशन स्कीम से कमलनाथ चुनावी खेल को बदल सकते हैं। केजरीवाल भी किसी न किसी तरीके से रेस में शिवराज से आगे निकल सकते हैं। फिलहाल हालात ये हैं कि शिवराज चाहें भी तो मुफ्त की चीजों की घोषणा नहीं कर सकते। जब तक आलाकमान से हरी झंडी नहीं मिलती ऐसा कोई भी फैसला लेना उनके लिए आसान नहीं है, लेकिन दिल्ली के स्तर से भी ऐसी घोषणा कर पाना मुश्किल है।
शिवराज मुफ्त के इस खेल में बुरी तरह पिछ़ड़ते जा रहे हैं
शिवराज के लिए ये दुविधा बहुत बड़ी है। सत्ता में रहते हुए भी वो घोर विपक्षी दल कांग्रेस की घोषणाओं की काट नहीं निकाल सकते। कमलनाथ जिन योजनाओं का ऐलान जोर शोर से कर रहे हैं। ऐसी योजनाओं को केंद्र पहलले ही रेवड़ी करार कर विरोधियों को आड़े हाथों लेता रहा है। अब अगर इसी तर्ज पर फ्री की घोषणाएं करनी हैं तो बीजेपी को कान पकड़ने के लिए हाथ घुमाना होगा। क्योंकि सीधी राह चलकर ऐसी घोषणाएं की तो विपक्षी दलों को ही कान खींचने का मौका मिल जाएगा। ऐसे में जब दो धुरंधर राजनीति के मैदान में मुफ्त. मुफ्त.. मुफ्त... की आवाज लगा रहे हैं। तब शिवराज इस खेल में बुरी तरह पिछ़ड़ते जा रहे हैं।
कांग्रेस की नजर ऐसी बहनों पर हैं जो लाड़ली की जगह रूठी बहनें बन चुकी हैं
लाड़ली बहना से बीजेपी को खासी उम्मीदे हैं, लेकिन इस एक स्कीम से सारी महिला वोटर्स को रिझाना आसान नहीं है। जो चूकीं वो गुस्सा दिखा रही हैं। कांग्रेस की नजर भी ऐसी बहनों पर ही हैं जो लाड़ली बनने की जगह रूठी बहनें बन चुकी हैं। उन पर नारी सम्मान का दांव खेला ही जा चुका है। अब जब चुनावी मैदान में आधे से कम दाम में सिलेंडर मिल रहा है और बिजली भी कम में मिलने वाली है तब मतदाता किस ओर जाएगा। उस पर पुरानी पेंशन योजना कर्मचारियों को भी आकर्षित कर रही है। मुफ्त की घोषणाओं से एतराज है तो बीजेपी इसकी क्या काट निकालेगी या तलाश रही है।
मुफ्त का लालच देकर की जा रही ये घोषणाएं 2023 के रण को दिलचस्प बना सकती हैं
2023 का रण जीतने के लिए कमलनाथ हर चाल चलने पर अमादा हैं। धर्म, संस्कृति, युवा, कर्मचारी हर वर्ग पर नजर है। नजर तो शिवराज की भी है, लेकिन नजरें इनायत से पहले मंजूरी का इंतजार करना पड़ता है। इस खेल में केजरीवाल के आने पर कुछ और ट्विस्ट आ सकते हैं। चुनावी बाजार में मुफ्त की घोषणाओं की दुकान तो क्या स्टोर सज सकते हैं। दोनों नेताओं को ऐसी घोषणा करने की पूरी छूट भी है, लेकिन शिवराज समेत बीजेपी के हाथ बंधे हैं। केंद्र के स्तर पर इन्हें रेवड़ी करार कर बीजेपी विरोधियों पर जमकर निशाना साध चुकी है। अब खुद उस रास्ते जाने से पहले कोई ऐसा तरीका तलाशना होगा कि रेवड़ी बांटे भी और इल्जाम से भी बच सके। जब तक ऐसा नहीं हो पाता। तब तक स्टोर खोलना तो दूर शिवराज के लिए छोटी मोटी गुमठी खड़ी करना भी मुश्किल है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाला चुनाव सत्ताधारी दल के लिए कितना मुश्किल हो सकता है।