BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनावी साल में एक बार फिर व्यापमं का जिन्न बाहर आ गया है। ऐसे में संभावना है कि शिवराज सरकार के तमाम मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को एक बार फिर व्यापमं घोटाले पर सफाई पेश करना पड़ सकती है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की 8 साल पुरानी शिकायत पर एफआईआर होना ये साफ इशारा कर रहा है कि व्यापमं घोटाला बीजेपी को चैन नहीं लेने देगा।
न्यूज स्ट्राइक के पास FIR की कॉपी
न्यूज स्ट्राइक के हाथ एफआईआर की कॉपी लगी है जिसमें प्रदेश मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेताओं का जिक्र है। साल 2022 जाते-जाते 8 साल पुराने जख्म फिर हरे कर गया है। ये जख्म हैं व्यापमं घोटाले के जिन्हें छुपाने के लिए बीजेपी ने 8 साल पूरे सिस्टम की खूब मल्हम-पट्टी की। इसके बावजूद अपनी ही सरकार में एफआईआर होने से नहीं रोक सके।
2014 में दिग्विजय सिंह ने की थी शिकायत
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने 2014 में इस मामले पर शिकायत दर्ज करवाई थी जिसमें व्यापम घोटाले के लिए सीधे-सीधे बीजेपी के कुछ आला नेताओं पर सांठगांठ का आरोप लगाया है। एसटीएफ की जांच में शिकायत सही पाई गई जिसके चलते दिसंबर में एफआईआर दर्ज की गई। इस एफआईआर में बीजेपी मंत्री और वरिष्ठ नेताओं का जिक्र होना कई सवाल खड़े करता है। इस एफआईआर को लेकर चुनाव से पहले बीजेपी में बड़ी उथल-पुथल या कलह हो भी जाए तो ताज्जुब नहीं होगा।
व्यापमं घोटाले में 8 आरोपियों के खिलाफ केस
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बहुचर्चित रहे व्यापमं घोटाले मामले में एफआईआर दर्ज हो गई है। एसटीएफ ने इस मामले में 8 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। इन आरोपियों ने PMT मतलब प्रदेश में होने वाले मेडिकल एंट्रेंस के जरिए साल 2008 और 2009 में गलत तरीके से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लिया था। इस मामले में एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने साल 2014 में STF को संदिग्ध विद्यार्थियों की एक सूची सौंपी थी।
जांच एजेंसी ने लगा दिए 8 साल
उस सूची के आधार पर जांच करने में जांच एजेंसी ने पूरे 8 साल का वक्त लगा दिया। जांच में ये पता चला है कि इन 8 आरोपियों ने अपनी जगह किसी और को बैठाकर पीएमटी परीक्षा दिलाई और पास की थी। एफआईआर के मुताबिक इन 8 आरोपियों ने साल 2008 और साल 2009 में पीएमटी एग्जाम में बड़ा फर्जीवाड़ा किया और गांधी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया था।
दिग्विजय सिंह ने STF को दी थी 3 लिस्ट
8 साल पहले इस मामले में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने एसटीएफ को तीन अलग-अलग तरह की लिस्ट सौंपी थी। लिस्ट में संदिग्धों के निवास का पता एक जैसा था। दूसरी सूची में सभी के स्कूल की जानकारी थी। सभी ने उत्तर प्रदेश बोर्ड से बारहवीं परीक्षा पास की और एमपी के मूल निवासी के प्रमाण पत्र थे। तीसरी सूची में परीक्षा फॉर्म में लगे फोटो और सीट आवंटन के लेटर में लगे फोटो अलग-अलग थे। अब जिन आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई है वो हैं। प्रशांत मेश्राम, अजय टेंगर, कृष्णकुमार जायसवाल, अनिल चौहान, हरिकिशन जाटव, शिवशंकर प्रसाद, अमित बड़ोले, सुलवंत मौर्य हैं। ये सभी बालाघाट, मुरैना, बड़वानी, रीवा, झाबुआ और छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर के हैं।
शिवराज सरकार की नाक के नीचे भोपाल में दर्ज हुई FIR
व्यापमं का नाम बदलकर इस घोटाले के दाग को धोने की पूरी कोशिश कर शायद बीजेपी आश्वस्त थी कि अब व्यापमं से पीछा छूट गया है लेकिन कांग्रेस ने चैन नहीं लिया शिवराज सरकार की नाक के नीचे ही भोपाल में ये एफआईआर दर्ज हुई है जिसमें दिग्विजय सिंह ने बीजेपी मंत्री और वरिष्ठ नेताओं की सांठगांठ का जिक्र भी किया है। इस एफआईआर की भाषा से ये साफ है कि दिग्विजय सिंह आसानी से पीछा छोड़ने वाले नहीं है। चुनावी साल में इस एफआईआर का दर्ज होना कई तरह के सवाल उठा रहा है उन सवालों पर भी फोकस करेंगे।
FIR के बहाने कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी
ये वो एफआईआर है जो दिग्विजय सिंह की शिकायत पर पूरे 8 साल बाद दर्ज हुई है। इसके एक-एक पन्ने पर 8 आरोपियों के नाम हैं जिनके खिलाफ शिकायत दर्ज हो चुकी है। इसके बाद दिग्विजय सिंह का शिकायती पत्र भी यहां दर्ज है जिसमें उन्होंने घोटाले और इन आरोपियों से जुड़े कई राज खोले हैं। सबसे ज्यादा चौंकाती है कुछ खास लाइनें जिसमें घोटाले के लिए व्यापमं के तत्कालीन अधिकारियों को तो निशाने पर लिया ही गया है। ये भी लिखा गया है कि बीजेपी के नेता और मंत्रियों की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसमें भूमिका हो सकती है। इस मामले में पहले भी बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े कई नेताओं पर इस घोटाले की आंच आ चुकी है। पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा कई बीजेपी और कांग्रेस के नेता जेल भी जा चुके हैं। अब एक बार फिर एफआईआर के बहाने कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी है।
चुनावी साल में इस एफआईआर के दर्ज होने के क्या मायने हैं। राजनीतिक गलियारों में खलबली तो मचनी तय है, बीजेपी पर भी इसका असर पड़ेगा।
एक FIR पर कितने सवाल ?
- चुनावी साल में ही ये एफआईआर दर्ज क्यों की गई, क्या इसके पीछे कोई बड़ा सियासी खेल है ?
चुनावी साल में इस एफआईआर का दर्ज होना ये तो साफ कर ही रहा है कि बीजेपी की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. इसकी आंच से क्या खुद शिवराज सिंह चौहान बच सकेंगे। 8 साल बाद ये जिन्न एक बार फिर बाहर आया है। तय है कि ये कुछ न कुछ नया गुल जरूर खिलाएगा।
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व्यापमं की आग भड़की तो बीजेपी को होगा नुकसान
दिग्विजय सिंह ने अपनी शिकायत के अंत में ये भी लिखा है कि संतोषजनक जवाब न मिलने पर वो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने सारे साक्ष्य पेश करेंगे। इस तेवर से ये समझा जा सकता है कि दिग्विजय सिंह समेत पूरी कांग्रेस अब व्यापम कांड को एक बार फिर से जोरशोर से हवा देने के मूड में है। ये सही है कि इसकी आग ज्यादा भड़की तो थोड़े हाथ तो कांग्रेस के भी जलेंगे पर ज्यादा नुकसान तो बीजेपी का ही होगा। कुछ बड़े नेताओं की कलह भी सामने आ सकती है। हो सकता है चुनावी तैयारी में एक साथ जुटने से पहले बीजेपी ही सिविल वॉर का शिकार हो जाए। अपने ही अपनों के दुश्मन बन जाएं। चुनाव से पहले कांग्रेस इन हालातों का फायदा उठाने में पीछे रहने वाली नहीं है।