योग्यता की किसी की बपौती नहीं, प्रेमचंद की ‘सौभाग्य के कोड़े’ यही बताती है

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मुंशी प्रेमचंद दुनिया के महान कहानीकारों में से एक हैं। उन्होंने करीब 300 कहानियां लिखीं। मानसरोवर के 8 भागों में प्रेमचंद की कहानियां हैं। सौभाग्य के कोड़े एक अनाथ लड़के नथुवा की कहानी है। नथुवा राय भोलानाथ के घर रहता है। नथुवा उनके घर झाड़ू लगाता है, जूठन खाता है। 

रायसाहब की एक बेटी रत्ना है। रत्ना बेहद सुशील है, उसे पढ़ाने दो मैडम आती हैं। रत्ना बचपन से ही नथुवा को चाहती है, ये अबोला प्रेम है। एक दिन नथुवा झाड़ू हुए रत्ना के बिस्तर में सो जाता है। ये देखकर रायसाहब उसे बहुत मारते हैं। रत्ना बीच-बचाव करती है, रायसाहब उसे भगा देते हैं। 

नथुवा भागते हुए भंगियों की बस्ती में पहुंचता है, वहां लोग उसे कुछ गाने को कहते हैं। नथुवा गाता है तो वहां एक उस्ताद उसे परख लेता है। उस्ताद घूरे नथुवा को संगीत सिखाते हैं। नथुवा उस्ताद के साथ ग्वालियर के समारोह में जाता है जहां उसे बहुत शोहरत मिलती है। नथुवा ग्वालियर में शिक्षा लेता है और नथुवा नाथूराम आचार्य हो जाते हैं।

नथुवा पाश्चात्य संगीत सीखने जर्मनी, इटली भी जाते हैं। देश लौटने के बाद एक कंपनी उन्हें रख लेती है और वे लखनऊ में रहने लहते हैं, जहां उनकी मुलाकात रत्ना से हुई। नाथूराम रायसाहब के बंगले में पहुंचते हैं। वे बंगले में रहने से सकुचाते हैं।

एक दिन रत्ना के साथ भोलानाथ नाथू से मिलने आते हैं, रायसाहब नाथू को अपनी व्यथा बताते हैं।

रत्ना नाथू के गुणों पर मोहित है और नाथू रत्ना की लावण्यता पर मोहित है।अब रायसाहब रोज नाथू के पास आने लगते हैं, एक दिन रायसाहब नाथू से रत्ना की शादी की बात करते हैं। नाथू कुछ कह नहीं पाते, अपना सच नहीं बोल पाते। शादी के एक महीने बाद रत्ना को सच बताते हैं। रत्ना कहती है, मैं तो ये सब पहले से जानती थी। रत्नी कहती है- मैं बचपन से तुम्हें चाहती थी। कहती है- पिताजी से कुछ मत कहना, उनके पास प्रायश्चित के लिए कुछ नहीं बचा।