UJJAIN. महाकाल की नगरी उज्जैन की एक और सीट है उज्जैन दक्षिण। उज्जैन दक्षिण ऐसी सीट है जो शहरी के साथ साथ ग्रामीण इलाके में आती है और इसे आप नया उज्जैन भी कह सकते हैं। सिंहस्थ के दौरान पूरे उज्जैन को ही कई सारी सौगातें मिली है और इसमें उज्जैन दक्षिण में कई सारे विकास काम हुए हैं। जहां तक सियासी मिजाज की बात करें तो ये सीट पिछले 20 साल से बीजेपी के कब्जे वाली सीट है। पार्टी यहां से चेहरे बदलती रही लेकिन दक्षिण की जनता बीजेपी उम्मीदवारों को ही चुनती रही है
सियासी मिजाज
उज्जैन दक्षिण सीट 1957 में अस्तित्व में आई और इस सीट से पहले विधायक चुने गए कांग्रेस के अयाचित विश्वनाथ वासुदेव, इसके बाद 1962 के चुनाव में कांग्रेस की हंसाबेन यहां से विधायक चुनीं गईं। 1967 के चुनाव में उज्जैन दक्षिण सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई और भारतीय जनसंघ के गंगाराम ने यहां से जीत दर्ज की। इसके बाद 1972 के चुनाव में यही सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई और कांग्रेस के दुर्गादास सूर्यवंशी यहां से विधायक बने। 1977 से उज्जैन दक्षिण सीट अनारक्षित हो गई और 77 में गोविंद नायक ने चुनाव जीता इसके बाद 1980और 1985 का चुनाव भी कांग्रेस ने ही जीता बीजेपी ने 1990 में यहां पहली जीत दर्ज की और बाबूलाल महेरे यहां से चुनाव जीते इसके बाद केवल 1998 का चुनाव था जब कांग्रेस की प्रीति भार्गव विधायक चुनी गईं इसके बाद से तो बीजेपी का इस सीट पर पूरा कब्जा है।
सियासी समीकरण
उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट के सियासी समीकरण ऐसे हैं कि बीजेपी से शिवराज सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव प्रबल दावेदार हैं वो दो बार विधायक रह चुके हैं। इसी साल हुए नगर निगम चुनाव में मोहन यादव बीजेपी के लिए जीत की संजीवनी बूटी लेकर आए क्योंकि बीजेपी ने मेयर का चुनाव बेहद कम वोटों के अंतर से जीता तो उसमें उज्जैन दक्षिण विधानसभा का अहम रोल था लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि उज्जैन जनपद जो कि ग्रामीण इलाका है और इसके 25 वार्ड का ज्यादातर हिस्सा दक्षिण विधानसभा में आता है वहां से जनपद अध्यक्ष बीजेपी का चुना नहीं जा सका ये मोहन यादव के लिए झटके से कम नहीं है हालांकि इस हार का बदला बीजेपी ने जिला पंचायत अध्यक्ष बनाकर लिया। झटके वाली बात ये भी है कि कोर्ट ने भी जनपद चुनाव को लेकर लगाई याचिका खारिज कर दी। बीजेपी अपना अध्यक्ष नहीं बना सकी क्योंकि बीजेपी में फूट पड़ गई थी। बहरहाल इस बार भी मुकाबला कांग्रेस के राजेंद्र वशिष्ठ और मोहन यादव के बीच मुकाबला हो सकता है। वशिष्ठ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं और अभी भारत जोड़ो यात्रा के सह समन्वयक भी हैं. हालांकि, वशिष्ठ के साथ कई और दावेदार भी दौड़ में शामिल हैं.
जातिगत समीकरण
उज्जैन दक्षिण सीट पर भी करीब 40 से 50 हजार वोट मुस्लिम समुदाय के हैं और यहां राजपूत समाज के वोटर्स की संख्या भी अच्छी खासी है जो हर बार दोनों पार्टियों से टिकट की मांग करता है.. पिछली बार राजपूत समाज ने कांग्रेस से टिकट मांगा था मगर पार्टी ने राजेंद्र वशिष्ठ को टिकट दिया तो दिग्विजय सिंह को राजपूत समाज के लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए आना पड़ा था..
मुद्दे
उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट के नगरीय इलाकों में पेयजल का मुद्दा अहम है क्योंकि कई नई कॉलोनियां बनी हैं जहां पानी नहीं पहुंचता। दूसरी तरफ ग्रामीण इलाके की बात करें तो यहां खराब सड़कों का मुद्दा अहम है