BHOPAL. 2023 में जीत के लिए बीजेपी की नजर आकांक्षी सीटों पर टिकी है। आकांक्षी सीटें यानी वो सीटें जिस पर बीजेपी का लंबे समय से खाता नहीं खुला है और अब वो तकरीबन कांग्रेस के गढ़ में तब्दील हो चुकी है। बीजेपी अब कांग्रेस के इन्हीं गढ़ों को भेदना चाहती है। इस महत्वकांक्षा के साथ बीजेपी ने जबरदस्त रणनीति तैयार कर ली है, लेकिन जो सोचा था उसका उल्टा होता नजर आ रहा है। होना ये चाहिए था कि इस रणनीति का खुलासा होते ही कांग्रेस अपने गढ़ को बचाने में जुट जाती। लेकिन हुआ ये है कि इस नई रणनीति से बीजेपी के नेताओं में ही खलबली मची है। अंदरखानों की खबर ये है कि बहुत से बीजेपी नेता ही नहीं चाहते कि इस रणनीति पर अमल हो।
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अब आकांक्षी सीटों पर फोकस करने की तैयारी है
चुनाव के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे हैं। सरगर्मियां और तेज होती जा रही हैं। चुनावी बिगुल फूंकने तो खुद अमित शाह प्रदेश आ चुके हैं। अब की बार हर संभाग में चुनावी यलगार सुनाई दे रही है। कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने और पुराने नेताओं को मनाने के लिए हर क्षेत्र के दिग्गज को जिलाना शुरू किया ही जा चुका है। अब आकांक्षी सीटों पर फोकस करने की तैयारी है। माइक्रोप्लानिंग में एक्सपर्ट बीजेपी ने आकांक्षी सीटों के लिए खास रणनीति तैयार की है। टिकट वितरण में इस रणनीति पर अमल होता दिखाई देगा, लेकिन डर ये भी है कि ये रणनीति अगर रेसिप्रोकेट कर गई तो नुकसान कांग्रेस की जगह बीजेपी को ही हो सकता है। वो भी थोड़ा बहुत नहीं दोगुना नुकसान हो सकता है। खबर है कि इसी डर से बीजेपी के ही नेता इस रणनीति से पैर पीछे खींच रहे हैं।
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बीजेपी के लिए 'माया मिली न राम' वाला हाल न हो जाए
नई रणनीति से कोशिश है कि कांग्रेस की जड़े कमजोर की जा सकें। डर ये भी है कि कहीं कांग्रेस की जड़ हिलाते हिलाते अपनी ही जड़ों से समझौता न करना पड़ जाए। बस इसी डर के चलते बीजेपी के नेता ही इस रणनीति का खुलकर समर्थन नहीं कर पा रहे हैं। डर इस बात का है कि हाल माया मिली न राम वाला हो जाए। कांग्रेस की सीट तो जीत ही न सकें, उल्टे अपनी सीट भी गंवानी पड़ जाए। एक ही सीट पर जमे अपने विधायकों को बीजेपी कंफर्ट जोन से बाहर निकालना चाहती है और परखना चाहती है। नेताओं को डर ये है कि इस चैलेंज के चक्कर में कहीं वो लंबी मुसीबत में न पड़ जाए।
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बीजेपी कद्दावर विधायकों पर बड़ा दांव खेलने जा रही है
आकांक्षी सीटों को जीतने के लिए बीजेपी अपने ही कद्दावर विधायकों पर बड़ा दांव खेलने जा रही है। बीजेपी की तैयारी इस बात है कि जो विधायक लगातार अपनी सीटों से जीतते आ रहे हैं उनकी सीट बदल दी जाए। ऐसे विधायकों को अब उस सीट से टिकट दिया जाएगा जो उनके क्षेत्र से लगी हुई और कांग्रेस का गढ़ हो। रणनीति के पीछे सोच ये है कि जमे जमाए विधायक अपनी पहुंच, पैठ और संसाधनों का लाभ उठाकर कांग्रेस की सीटों को जीतने में जुट जाएंगे। बीजेपी को उम्मीद है कि ऐसा करने से वो कांग्रेस के गढ़ को आसानी से भेद सकेंगे।
खबर तो यहां तक है कि बीजेपी में ऐसे विधायकों की लिस्ट तक तैयार हो चुकी है। जिनकी सीट इस बार बदली जा सकती है। इस सूची में अधिकांश नाम मालवा और निमाड़ के विधायकों के हैं...
- रमेश मंदोला का मुकाबला कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी से कराने की तैयारी हो सकती है।
इस रणनीति के बाद से विधायकों में ही इस बात का डर है कि नतीजे मनमाफिक नहीं मिले तो दूसरी सीट तो मिलना मुश्किल होगी ही अपनी सीट भी हाथ से निकल जाएगी। इस सोच के साथ बीजेपी के उन विधायकों में सबसे ज्यादा खलबली है जो हर बार अपनी जीत के लिए आश्वस्त रहते आए हैं। ये बात अलग है कि सवाल होने पर पार्टी के आदेश को मानने की बात कहना लाजमी है।
नई रणनीति अपनाकर बीजेपी अपनी ही मश्किल न बढ़ा ले
रणनीति सुनने में थोड़ी अजीब और जोखिम भरी है, लेकिन इससे बीजेपी को दो फायदे हो सकते हैं, जबकि विधायकों को नुकसान। बीजेपी की सोच ये है बरसों से जमे विधायक चुनाव जीत गए तो कांग्रेस के गढ़ में सेंध लग जाएगी, लेकिन हारे तो पार्टी अगली बार उनका टिकट काट सकती है और नए, ताजे चेहरों को मौका दे सकती है। विधायकों को डर ये है कि हार गए तो अपनी सीट से दोबारा मौका मिलना मुश्किल हो जाएगा। ये भी हो सकता है कि ऐसी रणनीति अपनाकर बीजेपी अपनी ही मश्किल को ज्यादा बढ़ा ले।
टिकट की जोड़तोड़ और नया फेरबदल जमे हुए विधायकों को कितना रास आता है वो रवैया इस रणनीति की कामयाबी असल में तय करेगा।
अंदरखानों में इस रणनीति की खिलाफत शुरू हो चुकी है
इस रणनीति की कामयाबी की सौ फीसदी गारंटी देना मुश्किल है, लेकिन एक बात तय है कि आकांक्षी सीट जीते तो बीजेपी को फायदा एक सीट का होगा और हारी तो नुकसान दो सीटों का होगा। डर ये भी कि जो सीट बरसों से जीतती आ रही है अगर वो सीट भी हाथ से निकल गई। तो हालात उलट भी सकते हैं। बिना कुछ मगजमारी किए ही कांग्रेस के हाथ में बीजेपी की सीट आ जाएगी। यही वजह है कि अंदरखानों में इस रणनीति की खिलाफत शुरू हो चुकी है। अब देखना ये है कि जिन विधायकों पर भरोसा कर उनका टिकट बदलने की तैयारी है। उन्हीं के विरोध के बाद भी क्या पार्टी इस लाइन पर आगे बढ़ती है या कदम वापस पीछे खींच लेती है।