BHOPAL. बहुत पुराना गाना है... दोस्त दोस्त न रहा, प्यार प्यार न रहा। ये दर्दभरा नगमा तकरीबन हर उस विधानसभा सीट पर बीजेपी के लिए फिट है जहां-जहां शिवराज कैबिनेट के मंत्री है। अभी कुछ ही दिन की बात है मप्र की सियासत में क्यूआर कोड का शगूफा बहुत चला। कहीं कमलनाथ के पोस्टर लगे जिसका क्यूआर कोड स्केन करने पर भ्रष्टाचारों की लंबी सूची खुलने लगी। तो शिवराज सिंह चौहान के पोस्टर लगते भी देर नहीं लगी। क्यूआर कोड की जुबानी भ्रष्टाचार की कहानी कहने वाले ऐसे पोस्टर्स का बोलबाला रहा। ये किसकी कारस्तानी हो सकती है इसको लेकर भी खूब बातें चलीं। कमलनाथ पर जो आरोप हैं वो अलग बात है, लेकिन बीजेपी की मुश्किल इन पोस्टरों से ज्यादा उसके मंत्री और विधायक बन चुके हैं। ऐसे मंत्रियों की लिस्ट लंबी होती जा रही है जिनके क्षेत्र में विधायक या कोई अन्य नेता ही मंत्रियों के कारनामों का कच्चा चिट्ठा खोल रहा है। इस आपसी कलह को बीजेपी प्रेशर पॉलीटिक्स का नाम देकर दरकिनार तो करने की कोशिश में है पर अफसोस सारी कोशिशें अब तक नाकाम साबित हो रही है।
बीजेपी नेताओं का अपने-अपने क्षेत्र में लगातार विरोध
आग चाहें कहीं से भी भड़की हो, लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी से लेकर मंत्रालय में सीएम कक्ष तक जो लपट पहले पहुंची वो सागर जिले की थी। जिले में मंत्री भूपेंद्र सिंह और जिलाध्यक्ष के खिलाफ जमकर नाराजगी है। जिसका नतीजा ये है कि सागर के ही कुछ नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे चहेते और करीबी मंत्री भूपेंद्र सिंह की शिकायत लेकर पहुंचे। इसके बाद कार्रवाई का तो कुछ पता नहीं, लेकिन अगले दिन शिकायत लेकर जाने वालों में से एक गोपाल भार्गव सुर बदलने पर मजबूर जरूर हुए। गोपाल भार्गव सीनियर नेता हैं पार्टी के डिसिप्लीन से वाकिफ हैं। या यूं कहें कि उसी में रचे बसे हैं, लेकिन हर नेता बीजेपी की पुरानी मिट्टी से नहीं बना है। जो अपने-अपने क्षेत्र में लगातार विरोध के सुर ऊंचे करने के साथ अपनी ही पार्टी के दूसरे नेताओं का कच्चा चिट्ठा खोल रहे हैं।
बीजेपी अपने ही नेताओं का बर्ताव संभालने में नाकाम हो रही
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में अंतर्कलह के कई मामले सामने आना अब आम बात हो गई है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि एक साथ कई मंत्रियों के खिलाफ उन्हीं के इलाके के नेता खुलकर शिकायतें कर रहे हैं। खास बात यह है कि ये सभी शिकवे और शिकायतें कोर ग्रुप की बैठकों तक पहुंच रहे हैं या अखबारों में छप रहे हैं। सख्त अनुशासन फॉलो करने वाली बीजेपी अपने ही नेताओं का ये बर्ताव संभाल पाने में अब तक नाकाम हो रही है।
बीजेपी के अंदर ही अंदर सुलग रही आग फैलती ही जा रही है
चुनाव से पहले ये दस्तूर आम है, ये नजारे भी आम है। टिकट की आस में दावेदार पुराने दावेदारों की पोल पट्टी ऐसे ही खोलते हैं, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग है। इस बार बीजेपी में मंत्रियों के खिलाफ कोई न कोई विधायक या नेता मोर्चा खोले बैठा है। लगातार शिकायतें दर्ज करवा रहा है। संगठन बार-बार ताकीद कर चुका है कि घर की बात घर में ही रहने दी जाए। लेकिन बीजेपी के अपने ही नेता हर कलह को दुनियाभर के सामने नुमाया करने पर अमादा नजर आ रहे हैं। बीजेपी के आला नेता इस आग को बुझाने की जगह हर बार इसे दबाने की कोशिश कर रहे हैं। नतीजा ये है कि अंदर ही अंदर सुलग रही आग फैलती ही जा रही है।
जहां सिंधिया समर्थक नहीं वहां बीजेपी का हाल तो वहां भी बुरा है
अब तक सुनने में आ रहा था कि बीजेपी में पुराने और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए समर्थकों की वजह से गुटबाजी बढ़ रही है। कलह बढ़ रही है, लेकिन सिर्फ सिंधिया के समर्थकों पर इल्जाम लगाना कितना सही है। क्योंकि, बीजेपी का हाल तो वहां भी बुरा है जहां सिंधिया समर्थक नहीं है। मनमुटाव लगातार सिर्फ बढ़ ही नहीं रहा है बल्कि दिखने भी लगा है।
- ताजा मामला बालाघाट का है, जहां प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा मंच पर भाजपा के वरिष्ठ नेता गौरीशंकर बिसेन का हाथ नीचे करते नजर आ रहे हैं।
शिवराज कैबिनेट के 7 मंत्रियों के खिलाफ उन्हीं के क्षेत्र में नाराजगी
ऐसे मनमुटावों को बीजेपी आम बात मानकर चल रही है। पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि चुनावी साल में ऐसा होता रहता है, लेकिन चुनावी साल में क्या मंत्रियों के कारनामों की लिस्ट सरेआम जनता के बीच पहुंच जाती है। कभी पोस्टर के जरिए कभी शिकायतों के जरिए तो कभी किसी और माध्यम से। शिवराज कैबिनेट के सात ऐसे मंत्री हैं जिनके खिलाफ उन्हीं के क्षेत्र में विधायक या नेता नाराजगी जाहिर करने लगे हैं।
मोहन यादव
उज्जैन में मंत्री मोहन यादव के खिलाफ पूर्व मंत्री पारस जैन और पूर्व सांसद चिंतामणी मालवीय एक हो गए हैं। कोर ग्रुप की बैठक में मास्टर प्लान के बहाने मोहन यादव पर इल्जाम लगे। उन पर सिंहस्थ की जमीन को अपना बनाने के आरोप हैं।
भूपेंद्र सिंह
भूपेंद्र सिंह और पार्टी के जिलाध्यक्ष के खिलाफ नाराजगी है।
हरदीप सिंह डंग
हरदीप सिंह डंग पर गौ तस्करों को संरक्षण देने का आरोप लग रहा है। बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता भी हरदीप सिंह डंग से नाराज हैं।
बिसाहू लाल सिंह
मंत्री बिसाहू लाल सिंह और पूर्व विधायक राम लाल का गुट अनूपपुर में आमने सामने है। पुराने कार्यकर्ता भी सिंह से नाराज है।
इन मंत्रियों के अलावा राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और मीना सिंह जैसे मंत्रियों के खिलाफ भी बगावत बढ़ती जा रही है। भाजपा विधायक और नेता ही अपनी सरकार के मंत्रियों की अवैध सम्पत्ति और कथित भ्रष्टाचार की फाइलें तैयार करने में लगे हुए हैं। कुछ फाइलें लोकायुक्त पहुंच गई हैं। कुछ पहुंचाने की तैयारी है।
नए और पुराने नेताओं के बीच बीजेपी उलझकर रह गई है
चुनाव विश्लेषकों की माने तो बीजेपी में या किसी भी अन्य दल में चुनाव से पहले प्रेशर पॉलीटिक्स आम रही है। लेकिन इस बार बीजेपी इन पर काबू पाने में नाकाम होती जा रही है। इसकी वजह कांग्रेस से बीजेपी में आए नेता भी माने जा रहे हैं। जिनके चलते बीजेपी का डीएनए भी बदला है और चाल, चरित्र भी। नए और पुराने नेताओं के बीच पार्टी यहां उलझकर रह गई है। चुनाव नजदीक आते-आते ऐसे नेताओं से निपटना और गुस्से की आग को ठंडा करना बीजेपी के बस से बाहर होता जा रहा है।
मध्यप्रदेश में अब बीजेपी वर्सेज बीजेपी होता जा रहा है
बीजेपी हर मोर्चे पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को घेरने में जुटी हुई है, लेकिन असल लड़ाई कांग्रेस बीजेपी की नहीं है। बल्कि, मध्यप्रदेश में अब बीजेपी वर्सेज बीजेपी ही होता जा रहा है। चुनाव जीतना है तो बीजेपी को पहले बीजेपी से ही लड़ना है। जिसमें नई और पुराने की खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि बड़े-बड़े रणनीतिकार और संगठन के दिग्गज भी उसे पाटने की कोई कारगर जुगत नहीं तलाश पा रहे हैं। हाल यही रहा तो बीजेपी को हराने के लिए किसी कांग्रेसी की जरूरत नहीं होगी।