मध्यप्रदेश के लिए टीम शिवराज की जगह तैयार होगी टीम मोदी, जीत के लिए बीजेपी दिल्ली से चलेगी बड़ा दांव!

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश के लिए टीम शिवराज की जगह तैयार होगी टीम मोदी, जीत के लिए बीजेपी दिल्ली से चलेगी बड़ा दांव!

BHOPAL. मध्यप्रदेश में शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार होगा या नहीं इस बात को लेकर भले ही धुंध छंट न रही हो, लेकिन आलाकमान ने इसका तोड़ निकाल लिया है। अब टीम शिवराज के भरोसे नहीं टीम मोदी के भरोसे मध्यप्रदेश को फतह करने की तैयारी की जाएगी। टीम मोदी में कुछ नए चेहरे शामिल होंगे तो कुछ पुराने चेहरे गायब हो जाएंगे। ये तो तय मान लीजिए कि नए चेहरों की फौज में कई चुनावी समीकरण साधने की कवायद भी छिपी होगी। कुछ अंचलों का तालमेल बिठाया जाएगा तो कुछ तबकों को संभाला जाएगा। इस पूरी उठापटक में किसी का कद बढ़ेगा तो किसी का घटेगा। तो क्या ये मान लिया जाए कि बीजेपी के कुछ दिग्गज भी इस चुनावी तैयारी के तहत किसी घाटे का शिकार होंगे।



मध्यप्रदेश में चुनावी कसावट का काम अब टीम मोदी से शुरू होगा



बीजेपी में बदलाव की बयार कभी भी शुरू हो सकती है। अब तक तो बस यही अटकलें थीं कि शिवराज रहेंगे या जाएंगे। वीडी शर्मा प्रदेशाध्यक्ष पद पर बने रहेंगे या नहीं। इन सबके बीच अब अटकलों का नया बाजार गर्म है। अब बात टीम शिवराज से ऊपर उठकर टीम मोदी की हो चुकी है। मध्यप्रदेश में चुनावी कसावट लाने का काम अब टीम मोदी से शुरू होगा। इस टीम को बनाने के लिए प्रदेश में बड़ी उठापटक होने की संभावना है। इस उठापटक के साथ विंध्य और बुंदेलखंड की नाराजगी को भी मैनेज किया जाएगा साथ ही हर वर्ग और हर तबके का संतुलन बनाकर प्रदेश में एक नया मैसेज देने की कोशिश की जाएगी। आलाकमान की हर कोशिश ये होगी कि टीम ऐसी हो जो पीएम नरेंद्र मोदी के लोकप्रिय फेस को जस्टिफाई कर सके और प्रदेश के हालात भी बेहतर कर सके। इसके लिए किसी दिग्गज को टीम से बाहर करना है या उसका ओहदा घटाना है तो उससे भी केंद्र सरकार के पीछे हटने की संभावना कम ही दिखाई देती है।



मप्र के कुछ नाम मोदी केबिनेट का हिस्सा बन ऑल इज वेल का मैसेज भेजेंगे



अब तक बीजेपी की चुनावी तैयारियों को देखकर यही कहा जा सकता है कि आने वाला चुनाव किसी खास चेहरे पर न हो कर पीएम मोदी के फेस को आगे रखकर ही लड़ा जाएगा। लेकिन कर्नाटक में ये प्रयोग बीजेपी को रास नहीं आया। इसलिए मध्यप्रदेश में कुछ और इंजीनियरिंग करने की जरूरत महसूस हो रही है। टीम मोदी को स्वरूप देना इसी कोशिश का एक हिस्सा माना जा रहा है। टीम में नए मेंबर्स को जगह देने के लिए कुछ पुराने चेहरे सत्ता से बेदखल कर संगठन में भेजे जा सकते हैं। इसके बाद मध्यप्रदेश के कुछ और नाम मोदी केबिनेट का हिस्सा बन सकते हैं जिनके जरिए क्षेत्र में ऑल इज वेल का मैसेज भेजा जाएगा। 



मप्र में जीत हासिल करने के लिए टीम मोदी में बड़े उलटफेर का प्रस्ताव है



फिलहाल मौजूदा महीने में बीजेपी केंद्र में नौ साल पूरे होने का जश्न मनाने में व्यस्त है। इसके साथ ही लोकसभा का चुनावी मोड ऑन हो चुका है, लेकिन लोकसभा से पहले बीजेपी को विधानसभा चुनाव का इम्तिहान पास करना है। जिसमें मध्यप्रदेश एक अहम राज्य है। यहां 20 साल से जमी जमाई सरकार को बीजेपी किसी हाल में नहीं गंवाना चाहती। यहां जीत हासिल करने के लिए टीम मोदी में बड़े उलटफेर का प्रस्ताव है। यही वजह है कि प्रदेश में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण साधने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। इसी रणनीति के तहत प्रदेश के कुछ सांसद मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा बन सकते हैं।



गणेश सिंह और राकेश सिंह के जरिए महाकौशल में बिगड़ी बात बन सकती है



चर्चा में सबसे ऊपर है गणेश सिंह और राकेश सिंह जो लगातार चार बार से सांसद भी रहे हैं। गणेश सिंह के भरोसे बीजेपी विंध्य और ओबीसी दोनों का गणित संभाल सकती है। उन्हें मंत्री बनाकर बीजेपी एक पंथ दो काज कर सकती है। राकेश सिंह भी बीजेपी संगठन के बड़े नेता हैं। उनके जरिए महाकौशल में बिगड़ी बात बन सकती है। इन नामों के अलावा सुमेर सिंह सोलंकी और दो अन्य नामों की चर्चा जोरों पर है।



कुलस्ते की जगह सुमेर सिंह सोलंकी को भी मौका मिल सकता है



नए चेहरे शामिल होंगे तो कुछ पुराने चेहरे हटाए भी जाएंगे। हटने वालों में फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम हो सकता है। वैसे कुलस्ते आदिवासी नेता हैं, लेकिन जयस की बढ़ती पैठ के बाद बीजेपी संगठन मालवा से ताल्लुक रखने वाले किसी आदिवासी नेता को मौका देना चाहता है। उनकी जगह सुमेर सिंह सोलंकी को भी मौका मिल सकता है। कोई चैंकाने वाला नाम इस फेहरिस्त का हिस्सा बन जाए तो भी हैरानी नहीं होगी। ये नाम जबलपुर से आने वाली राज्यसभा सदस्य सुमित्रा वाल्मीकि का हो सकता है जो अनुसूचित जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। सुमित्रा वाल्मीकि की वजह से वीरेंद्र खटीक की छुट्टी हो सकती है। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी इस उठापटक का शिकार हो सकते हैं। क्या इस फेरबदल का असर एक ही क्षेत्र से आने वाले नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी पड़ेगा। इन नामों के अलावा प्रहलाद पटेल का नाम भी प्रदेश की सत्ता में जोरों से लिया जाने लगा है।



ये बदलाव इसी उम्मीद से होगा कि मध्यप्रदेश के चुनाव पर इसका कुछ पॉजीटिव असर पड़ेगा।



फिलहाल यहां हालात तो ये हैं कि मंत्री ही मंत्री से लड़ने पर अमादा है



मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार केंद्र ही नहीं प्रदेश में भी पूरी शिद्दत से हो रहा है। पद तो शिवराज मंत्रिमंडल में भी खाली हैं, लेकिन नाराजगी और बढ़ने के डर से न आलाकमान और न प्रदेश का सत्ता संगठन इस दिशा में आगे कोई कदम उठा रहा है। मसला एक नहीं है जितना प्रदेश के अंचलों का संतुलन बनाना जरूरी है उतना ही बीजेपी के अपने मंत्री और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बिठाना भी जरूरी है। फिलहाल यहां हालात तो ये हैं कि मंत्री ही मंत्री से लड़ने पर अमादा है। यही हाल रहा तो समझा जा सकता है कि एक गलत फैसला बात बनाने की जगह बीजेपी की बात और खराब कर सकता है और इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।


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