प्रताप नारायण और सुरसती ने एक पुराण सुना और आ गए हरिवंश; जादू की एक छोटी सी लव स्टोरी

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कल मकर संक्रांति है। आप सभी को मकर संक्रांति पर्व की बहुत शुभकामनाएं। मकर संक्रांति यानी सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। और माना जाता है कि पिता और बेटे के बीच मतभेद भुलाकर अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए सूर्य इस दिन अपने बेटे की राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के उत्तरायण के दिन ही भीष्म ने देह त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया था। आज भी आपको दो छोटी-छोटी कहानियां सुनाने जा रहा हूं। 17 जनवरी को जावेद अख्तर साहब का जन्मदिन है। आज ही के दिन वे 1945 में ग्वालियर में जांनिसार अख्तर के घर पैदा हुए थे। 18 जनवरी को हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि है। 2003 में उनका निधन हो गया था। आज इन्हीं दोनों के कुछ संस्मरण सुना रहा हूं। 

पहले बात हरिवंश राय बच्चन की। वे कायस्थ थे। बच्चन उनका टाइटल, तखल्लुस कह सकते हैं।  हरिवंश राय के पिता लाला प्रताप नारायण श्रीवास्तव और मां सुरसती देवी प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव के रहने वाले थे। सुरसती देवी को शुरू में 2 संतान हुई, लेकिन पैदा होते ही उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद दोनों एक पंडित से मिले। पंडित ने सुरसती देवी और लाला प्रताप को 3 बर्तन दिए और कहा कि इस बर्तन को लेकर अपने घर से दक्षिण की तरफ जाओ। जहां शाम हो जाए, वहीं रुक जाना। फिर वहीं घर बनवाकर हरिवंश पुराण सुनना तो संतान सुख मिलेगा। दोनों बर्तन लेकर गांव से पैदल चले और शाम तक करीब 54 किलोमीटर दूर इलाहाबाद के चक जीरो रोड पहुंचे और रुक गए। लाला प्रताप नारायण ने वहीं घर बनवा लिया और पत्‍नी सुरसती देवी के साथ रहने लगे।

कुछ दिनों बाद चक जीरो रोड में सुरसती देवी ने एक बेटी बिट्टनदेई को जन्‍म दिया। इसके बाद भगवानदेई हुईं। लगातार 2 बेटी होने से लाला प्रताप परेशान हो गए, उन्‍हें वंश चलाने के लिए एक बेटा चाहिए था। इसके बाद दंपती ने पंडित के कहने के मुताबिक, जीरो रोड मकान में ही हरिवंश पुराण सुना, जिसके बाद हरिवंश राय बच्‍चन का जन्म हुआ। लाला प्रताप नारायण ने हरिवंश पुराण सुनने के बाद बच्चे का नाम हरिवंश ही रखा। उसके बाद एक और बेटा शालिग्राम हुआ। हरिवंश राय बच्चन कुल 6 भाई-बहन थे। कुछ समय बाद इनके पिता ने यमुना किनारे स्थित जमुना क्रिश्चियन कॉलेज के सामने गली में एक मकान बनाया। यहीं 1935 में हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला की रचना की।

उन्होंने ही कवियों के लिए मानदेय की परिपाटी की शुरुआत करवाई। 'पहले कवियों का सम्मेलन तो जरूर होता था, लेकिन उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता था। साल 1954 में इलाहाबाद के पुराने शहर जॉनसेनगंज में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें डॉ. हरिवंश राय बच्चन, गोपीकृष्ण गोपेश और उमाकांत मालवीय सरीखे कई लोकप्रिय कवि बुलाए गए थे। प्रोग्राम शाम को होना था। सभी कवि सम्मेलन में पहुंचे। हरिवंश राय बच्चन जी ने पहुंचते ही गुस्से में काव्य पाठ करने से मना कर दिया।

उनका कहना था-'जब टेंट-माइक वाले को पैसे मिलते हैं तो कवि को क्यों नहीं? जबकि कवियों की वजह से ही महफिल सजती है, वरना कवि सम्मलेन का क्या मतलब? 'उस दौरान बच्चन साहब की 'मधुशाला' से लेकर 'मधुकलश', 'मधुबाला' जैसी काव्य रचनाएं धूम मचा रही थी। उनकी बात मान ली गई।' 'कवि सम्मेलन खत्म होने के बाद बच्चन साहब को आयोजक मंडल ने 101 रुपए दिए। वहीं, उनके दोस्त कवि गोपीकृष्ण को 51 रुपए और उमाकांत मालवीय को 21 रुपए मानदेय मिला।' 

पढ़ाई पूरी करने के बाद अमिताभ नौकरी की तलाश में दिल्ली गए थे, वहां उन्होंने कई जगह पर नौकरी की तलाश की, लेकिन कहीं भी उन्हें नौकरी नहीं मिली, यहां तक कि आकाशवाणी में भी उन्हें ये कहते हुए अनाउंसर की नौकरी नहीं दी गई कि उनकी आवाज इस लायक नहीं है। इसी वजह से युवा अमिताभ बेहद हताश और परेशान हो चुके थे। एक दिन बेरोजगारी से हतोत्साहित होकर उन्होंने पहली बार अपने पिता के सामने जाने का फैसला किया। वो सीधे हरिवंश राय बच्चन के कमरे में घुसे और ऊंची आवाज में पूछा- आपने हमें पैदा ही क्यों किया? बेटे का ये सवाल सुनते ही हरिवंश जी चुप हो गए। हैरान पिता काफी देर तक अपने बेटे की ओर देखते रहे। उस वक्त वो अपने बेटे के सवाल का कोई जवाब नहीं दे पाए। कमरे में काफी देर तक सन्नाटा था।  पिता से कोई जवाब न मिलने पर युवा अमिताभ को भी असहजता महसूस हुई और वे चुपचाप वहां से चले गए।

अगले दिन सुबह हरिवंश राय अमिताभ के कमरे में आये, उन्हें जगाया और उनके हाथ में एक लिफाफा थमाकर चले गए। अमिताभ ने जब वो लिफाफा खोला तो उसमें एक कागज पर एक कविता लिखी थी, जिसे हरिवंश राय ने अमिताभ के लिए लिखी थी। उस कविता का नाम था- ‘नयी लीक।’ 

जिंदगी और जमाने की कशमकश से घबराकर,

मेरे लड़के मुझसे पूछते हैं,

"हमें पैदा क्यों किया था?

और मेरे पास इसके सिवा

कोई जवाब नहीं है कि,

मेरे बाप ने भी मुझसे बिना पूछे

मुझे पैदा किया था

और मेरे बाप से बिना पूछे उनके बाप ने उन्हें

और मेरे बाबा से बिना पूछे ,उनके बाप ने उन्हें...

जिंदगी और जमाने की कशमकश

पहले भी थी,

अब भी है, शायद ज्यादा,

आगे भी होगी, शायद और ज्यादा…

तुम ही नई लीक धरना,

अपने बेटों से पूछकर उन्हें पैदा करना!

अब बात शोले, दीवार, डॉन जैसी फिल्मों के को-राइटर रहे जावेद अख्तर के बारे में (यहां इन फिल्मों के शॉट्स लगेंगे)। जावेद की पहली शादी हनी ईरानी से हुई थी। इसके बाद जावेद और शबाना आजमी की शादी हुई। दोनों की कमाल की लव स्टोरी रही। इस प्रेम कहानी की शुरुआत 1970 में शबाना के घर से हुई थी। शबाना मशहूर शायर कैफी आजमी की बेटी हैं और जावेद उनके घर उन्हें लिखने की कला सिखा रहे थे। इसी सिलसिले में जावेद अक्सर ही कैफी आजमी की कविताएं सुनने के लिए उनके घर आया करते थे। शाम के समय में वहां महफिल जमा करती थीं, जिसमें शबाना भी अपनी मां के साथ हिस्सा लेती थीं। 

जावेद अख्तर का शबाना आजमी के घर आना-जाना लगा रहता था। ऐसे में दोनों की दोस्ती हो गई, जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। अभिनेत्री जावेद अख्तर के शायराना अंदाज पर फिदा हो गई थीं, लेकिन उनके प्यार को मंजिल मिल पाना इतना आसान नहीं था। जावेद पहले से शादीशुदा थे, जिसके वजह से दोनों की प्रेम कहानी में काफी-उतार चढ़ाव देखने को मिले। जब कैफी आजमी को दोनों के प्यार के बारे में पता चला तो वह काफी नाराज हुए। जावेद न सिर्फ शादीशुदा थे उनके दो बच्चे थे, ऐसे में कैफी आजमी और शौकत आजमी (शबाना की मां) ये नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी की वजह से किसी के रिश्ते में दरार आए, लेकिन शबाना मानने के लिए तैयार नहीं थीं।

जब हनी ईरानी को इस बारे में पता चला तो घर में रोज झगड़े होने लगे। जावेद और हनी के दो बच्चे फरहान अख्तर और जोया अख्तर भी थे। जब हनी को लगा कि अब इस रिश्ते में कुछ नहीं बचा और रोज झगड़े बढ़ रहे हैं, तो उन्होंने जावेद अख्तर को शादी करने की इजाजत दे दी। साथ ही हनी ने शादी के सात साल बाद जावेद अख्तर को तलाक दे दिया।

जावेद अख्तर का अपनी पहली पत्नी से रिश्ता खत्म हो गया था, लेकिन कैफी आजमी अभी भी दोनों के रिश्ते के खिलाफ थे। वो नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी किसी का घर टूटने की वजह बन जाए। शबाना ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की कि जावेद और हनी का रिश्ता उनकी वजह से नहीं टूट रहा है, वे दोनों यानी जावेद और हनी ईरानी साथ नहीं रहना चाहते। इसके बाद शबाना आजमी ने 1984 में खुद से 10 साल बड़े जावेद अख्तर से निकाह कर लिया और आज 38 साल बाद भी दोनों साथ हैं। 

आज की कहानियों में एक साम्य है। यानी दोनों को जोड़ने वाली एक कड़ी है। उस कड़ी का नाम है- अमिताभ बच्चन। हरिवंश जी ने एक बार अमिताभ को अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति बताया था। जावेद अख्तर कई बार खुद को अमिताभ का अनकंडीशनल फैन बता चुके हैं। बस यही थी आज की कहानी...