मध्यप्रदेश में ‘मामा के श्राद्ध’ पर बीजेपी ने छोड़ा शिवराज का साथ, दरकिनार करने से नफा से ज्यादा होगा नुकसान?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में ‘मामा के श्राद्ध’ पर बीजेपी ने छोड़ा शिवराज का साथ, दरकिनार करने से नफा से ज्यादा होगा नुकसान?

BHOPAL. शिवराज के साथ कौन खड़ा है, ये सवाल उठना लाजमी हो चुका है 18 साल से ज्यादा के मुख्यमंत्री। दो बार पार्टी को जिताने का श्रेय और चार बार सरकार चलाने का क्रेडिट उन्हीं की झोली में जाता है। जब शिवराज सिंह चौहान ने बतौर मुख्यमंत्री प्रदेश में अपनी पारी की शुरुआत की थी तो अपने आसपास देखकर जरूर एक बात जेहन में आती होगी कि मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग जुड़ते गए-कारवां बनता गया। और, अब जब वो चार बार प्रदेश की सत्ता संभाल चुके हैं। एंटीइंकंबेंसी और कार्यकर्ताओं की नाराजी, नौकरशाही हावी जैसे आरोपों के बीच कांग्रेस उन पर हमले कर रही है। ऐसे समय में जब वो पीछे पलट कर देख रहे होंगे तो एक ही बात सोच पा रहे होंगे कि कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे। इस गुबार के बीच हलचल हुई है एक उनके बेटे के एक ट्वीट से, लेकिन उसके बाद बीजेपी में जो खलबली होना चाहिए थी वो दिखाई नहीं दी। शिवराज सीएम अब भी हैं, लेकिन कार्यकाल के दौरान उनकी वफादारी का दम भरने वाले मंत्री से लेकर संगठन में उनके निष्ठावान साथी तक सब खामोश हैं। मजबूरी में कुछ इक्का दुक्का बयान जरूर आए। बाकी तो बस यही कहानी है कि और हम लुटेलुटे, वक्त से पिटेपिटे, कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे।

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इमेज को शेयर करते हुए कार्तिकेय ने ट्वीट किया

मध्यप्रदेश की सियासत में नया बवंडर आ सकता था। शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान के एक ट्वीट से। कार्तिकेय सिंह चौहान के ट्वीट में एक तस्वीर शेयर की गई है जो किसी ट्वीट की ही नजर आती है इसमें हैंडल का नाम है विद कांग्रेस। इस ट्वीट में लिखा है मामा का श्राद्ध और नीचे लिखा है श्राद्ध में बीजेपी ने दिया शिवराज मामा को TICKET। इस इमेज को शेयर करते हुए कार्तिकेय ने नाराजगी जताई और खुद ट्वीट किया। और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने ट्वीट में कांग्रेस का जिक्र करते हुए लिखा कि पार्टी आज कितना नीचे गिर चुकी है। चुनाव से एक साल पहले अगर ये ट्वीट हुआ होता तो शायद शिवराज की नजरों में खुद को सबसे बेस्ट साबित करने के लिए ट्वीट्स की झड़ी लग जाती, लेकिन फिलहाल सन्नाटा है। होना तो ये चाहिए था कि शिवराज के मंत्रिमंडल समेत बीजेपी के बड़े नेता तक हल्ला बोल देते, लेकिन फिलहाल तो बर्फ सी ठंडक जमी हुई है। अपने सीएम पिता की आन बान शान की रक्षा का बीड़ा कार्तिकेय को उठाना पड़ा। उसके तकरीबन दो घंटे बाद कुछ नेताओं ने अपनी राय देने की मशक्कत की। दो प्रवक्ता नेहा बग्गा और नरेंद्र सलूजा ने ट्वीट कर नाराजगी जताई। और कुछ देर बाद विधायक रामेश्वर शर्मा और संजीव सिंह ने गुस्सा जाहिर किया। इसके अलावा न किसी सीनियर नेता और न किसी धुर भाजपाई प्रवक्ता ने कुछ बोलना जरूरी समझा।

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सीएम को भावनाएं जनता के सामने उढ़ेलनी पड़ रही हैं

ऋषिकेश की शांत वादियों में गंगा नदी के किनारे बैठकर शिवराज सिंह चौहान भी शायद ये अहसास कर रहे होंगे कि वो कितने अकेले पड़ चुके हैं। जिन्हें मंच से अपनी भावनाएं जनता के सामने उढ़ेलनी पड़ रही हैं और सवाल करना पड़ रहा है कि चुनाव लड़ूं या न लड़ूं आप बताएं। इससे पहले जब भी सीएम पर कांग्रेस की ओर से हमले हुए हैं उनके निष्ठावान साथी ढाल बनकर उनके सामने खड़े हुए हैं। कमलनाथ ने जब उन्हें नालायक कहा था। उस वक्त को याद कीजिए तब बीजेपी के नेताओं ने एक के बाद एक ट्वीट कर कांग्रेस को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन अब प्रतिक्रिया भी बमुश्किल नजर आ रही है। शिवराज को साइडलाइन करना बीजेपी की मजबूरी बताई जा रही है, लेकिन साथियों को साथ छोड़ने पर किसने मजबूर किया है।

कार्तिकेय के ट्वीट के बाद केंद्र के सिर्फ एक नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर नाराजगी जताई और 12 घंटे से ज्यादा समय बाद गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पूछे जाने पर इस मुद्दे पर गुस्सा जताया।

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कांग्रेस नेता ने इसे बीजेपी की ही साजिश करार दिया है

इससे पहले जब-जब कांग्रेस या कमलनाथ की ओर से शिवराज पर हमले हुए बीजेपी कभी इतनी खामोश नहीं रही। उपचुनाव से पहले सत्ता छिनने के बाद कमलनाथ शिवराज को नालायक कह गए थे और एक बार शिवराज सरकार के लिए बयान दिया था कि सरकार चलाना मुंह चलाने जितना आसान नहीं है। उसके बाद बीजेपी ने कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इस बार तो इंतजार कर कर के एक-एक प्रतिक्रिया आ रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने जरूर इस ट्वीट पर सफाई दी है। कांग्रेस नेता पियूष बबेले ने इसे ट्वीट कर कांग्रेस की जगह बीजेपी की साजिश करार दिया है। कांग्रेस इस ट्वीट को बीजेपी की साजिश बता कर शिवराज की ही पार्टी पर सवाल उठा रही है। कांग्रेस तो ये दावा करती ही आ रही है कि जिसने 18 साल तक प्रदेश में बीजेपी की सरकार चलाई, उसी चेहरे को दरकिनार किया जा रहा है। अगले सीएम कौन के सवाल पर अमित शाह ने भी गोल मोल जवाब दिया था। चुनावी रण में सांसदों को उतारकर बीजेपी भी सीएम की रेस शुरू कर ही चुकी है। हालांकि, पूछे जाने पर अब भी बीजेपी के नेता शिवराज में निष्ठा जताने की पूरी कोशिश करते हैं।

मैं चला जाउंगा तो बहुत याद आऊंगा

चुनावी रण में अलग-थलग पड़ चुके शिवराज के बयानों से उनकी बेबसी भी साफ दिखने लगी हैं। हाल ही में एक सभा में उन्होंने सवाल किया कि चुनाव लड़ें या न लड़ें, जनता बताए। इसके बाद की लिस्ट में शिवराज सिंह चौहान का नाम नजर आया। इसके बाद एक सभा में शिवराज भावुक अपील भी करते दिखे। जब कहा कि मैंने सरकार नहीं चलाई, परिवार चलाया है। आपको मेरे जैसा भाई नहीं मिलेगा। मैं चला जाउंगा तो बहुत याद आऊंगा। पांव पांव वाले भईया और बच्चियों के मामा की यही छवि का असर है की बीजेपी उन्हें पूरी तरह से मंच से बाहर नहीं कर पा रही है। शिवराज का चेहरा चुनावी मैदान में पूरी तरह से गायब करने से पहले नफा नुकसान का आकलन करना जरूरी है।

साइडलाइन शिवराज : बीजेपी को नफा या नुकसान?

  • लगातार एक ही चेहरा देख-देखकर एंटीइंकंबेंसी का डर
  • बीजेपी में कार्यकर्ताओं में पुराने चेहरों से नाराजगी
  • 2020 में बनी सरकार का श्रेय शिवराज को नहीं सिंधिया को जाता है, जिसके बाद मान लिया गया कि शिवराज का जनाधार कम हो रहा है।
  • शिवराज को डाउनप्ले करने से उनके हिस्से का वोटबैंक कटने के भी आसार हैं
  • गरीब, ग्रामीण, महिलाओं और बच्चों के बीच उनकी लोकप्रियता कायम है उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।

यही वजह है कि शिवराज को पूरी तरह से चुनावी मैदान से बेदखल नहीं किया गया है। हालांकि, चुनावी जानकार ये भी मानते हैं कि शिवराज को पूरी तरह बाहर करके बीजेपी को नुकसान ही होगा। क्योंकि, उनका खड़ा किया हुआ वोटबैंक कंफ्यूज हो सकता है। इस रणनीति के असल नतीजे अब चुनाव परिणामों के साथ ही साफ होंगे।

मोदी ने भी सभाओं में शिवराज का जिक्र तक बंद कर

अमित शाह के दौरों के साथ ही शिवराज को परे करने की शुरूआत हो चुकी थी। अमित शाह ने भले ही शिवराज का रिपोर्ट कार्ड जारी कर उनके कार्यकाल को टैन ऑन टैन मार्क्स दिए हों, लेकिन सीएम के सवाल पर उनका डब्बा गोल कर दिया था। उसके बाद शिवराज की फ्लेगशिप योजनाओं में ही उनकी तस्वीर छोटी कर पीएम मोदी का चेहरा बड़ा कर दिया गया। प्रदेश के लिए बने एंथम में तो वो कहीं नजर ही नहीं आए। इसके बाद हर चुनाव में होने वाली जन आशीर्वाद यात्राओं का एकाधिकार उनसे छीन लिया गया। उसके बाद पीएम मोदी ने हालिया सभाओं में अपने लंबे भाषणों में उनका जिक्र तक बंद कर दिया है। चुनाव नजदीक आते-आते उन्हें लगातार हाशिए के और नजदीक धकेला जा रहा है ये साफ नजर आ रहा है। पर ये रणनीति कहीं बीजेपी पर ही भारी न पड़ जाए।

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