BHOPAL. मध्यप्रदेश में कांग्रेस का हाल ये है कि वो अपने घर में भी परेशान है और अपने बाहर से भी परेशान है। बाहर की परेशानी राम मंदिर को लेकर है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पर कांग्रेस जो भी स्टेंड ले रही है, वो स्टेंड पार्टी पर उल्टा ही पड़ रहा है। फिलहाल कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि उनका कोई भी नेता समारोह का हिस्सा बनने वाला नहीं है। तर्क है शंकाराचार्यों की नाराजगी और अधूरे बने मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह नहीं हो सकता। आपको क्या लगता है क्या कांग्रेस ने ये सही फैसला लिया है। देश के कई चुनाव विश्लेषकों की तरह आप भी ये मानते हैं कि कांग्रेस अपना रहा सहा हिंदू वोटबैंक भी गंवा देगी।
जीतू पटवारी ने सख्त फैसला लिया
शायद कांग्रेस को भी इस गलती या इस फैसले से होने वाले नुकसान का अहसास है। इसलिए तो कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने कह दिया है कि कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्ता राम मंदिर दर्शन के लिए जाएगा, लेकिन पूरे विधि विधान का पालन होने के बाद। राम मंदिर के मुद्दे पर ये तर्क कांग्रेस के लिए कितना काम आएगा या काम नहीं आएगा, इसका आकलन होगा लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद। उससे पहले कांग्रेस को अपने घर में ही निपटना है। खासतौर से मध्यप्रदेश में। विधानसभा की करारी हार कांग्रेस भूली नहीं है और अब जीतू पटवारी ने हार के दोषियों से निपटने का सख्त फैसला कर लिया है। अब राम के दर्शन से पहले जीतू पटवारी अपने घर में ही विभीषणों की तलाश कर रहे हैं।
कांग्रेस नए चोले को कैसे डिजाइन करेगी
वैसे एक बात बता दूं पटवारी की ये सख्ती भी बीजेपी की ही देन है। जिस तरह कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के झूलते पुल पर खुद को साधते हुए आगे बढ़ रही है और इस कोशिश में है कि राम मंदिर की आंधी में भी इस बिना सहारे के पुल से गिर न जाए। उसी तरह बीजेपी की तरह सख्ती आजमाकर अपने घर को सुधाने की कोशिश में है। जिस तरह बीजेपी अनुशासनहीन या पार्टी लाइन को दरकिनार करने वालों पर कार्रवाई करने में पीछे नहीं रहती। उसी तरह नए अध्यक्ष की नई कांग्रेस भी सख्ती का चोला पहनने की कोशिश में हैं। पहले मैं आपको बताता हूं कि कांग्रेस को इसकी जरूरत क्यों पड़ी। फिर मैं आपको ये भी बताउंगा कि कांग्रेस इस नए चोले को किस तरह डिजाइन करेगी फिर ये भी बताउंगा कि इस चोले की फिटिंग के लिए कांग्रेस किस तरह कुछ लोगों की बखिया उधेड़ेगी और किस तरह नई सिलाई लगाने का काम करेगी। फिलहाल तो ये समझ लीजिए कि पटवारी की कांग्रेस किसी तरह के पैबंद से काम चलाने के मूड में नहीं है। उसे पूरी तरह से नया चोला पहनना है। ये जरूरी भी है और कांग्रेस की मजबूरी भी।
हार की वजह बनने वालों को ढूंढकर निकालेंगे जीतू
विधानसभा चुनाव से करीब छह महीने पहले के एमपी की फिजा को याद कीजिए। बीजेपी को लगातार एक ही बात सुनने को मिल रही थी कि प्रदेश में जबरदस्त एंटीइंकंबेंसी का माहौल है। बीजेपी का सत्ता में लौटना मुश्किल है और कांग्रेस काफी मजबूत नजर आ रही थी, लेकिन चुनाव नजदीक आते-आते माहौल बदल गया। एंटी इंकंबेंसी की हवा ने जैसे रुख मोड़ लिया हो या फिर गलत घर पर दस्तक देकर कांग्रेस को चुन लिया। जो पार्टी साल 2018 के चुनाव में सत्ता तक पहुंच गई थी। वो पार्टी 2022 के नतीजों में बहुमत के आसपास फटक भी नहीं सकी। इन नतीजों के बाद कांग्रेस के माथे पर बल पड़ना ही चाहिए थे और पड़े भी। इसके बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को पीछे कर दिया गया। अब उनके हाथ में डायरेक्ट कोई मौका नहीं है। जो भी होगा उसके जिम्मेदार अब जीतू पटवारी होंगे। जिनका पहला लक्ष्य अब सिर्फ एक है उन लोगों को चुन-चुनकर ढूंढ निकालना जिनकी वजह से पार्टी को इतनी बड़ी हार मिली है। दूसरा काम है ऐसे लोगों पर सख्त एक्शन लेना। फिलहाल जीतू पटवारी ने इसकी शुरुआत अनुशासन समिति के गठन के साथ की है।
चुनाव लड़ने वाले 39 बागियों को कांग्रेस बाहर कर चुकी है
इस समिति और एक्शन की मांग कांग्रेस में जबरदस्त तरीके से उठ रही थी। पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस प्रभारी जितेंद्र सिंह की पहली बैठक में पदाधिकारियों ने जमकर भड़ास निकाली। सबका गुस्सा फूटा भितरघात करने वाले नेताओं पर। जिला अध्यक्षों ने चुनाव में हार के लिए भितरघात को जिम्मेदार ठहराया तो कुछ ने संगठन की व्यवस्था पर ही सवाल उठाए। पार्टी विरोधी गतिविधियों को लेकर भी बहुत सी शिकायतें संगठन के पास पहुंच चुकी हैं। जिसके बाद कांग्रेस के लिए भितरघातियों के खिलाफ सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया। प्रदेश में कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़े 39 नेताओं को पहले ही बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। यह नेता निर्दलीय या अन्य दलों के टिकट से लड़ने के लिए मैदान में उतरे थे, जबकि पार्टी ने इन सीटों पर अधिकृत प्रत्याशियों को उतार दिया था। बागी हुए प्रत्याशियों पर अनुशानहीनता की कार्रवाई करते हुए पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। शाजापुर जिला अध्यक्ष योगेन्द्र सिंह बंटी को भी पार्टी विरोधी कार्य करने पर पार्टी से निष्कासित करने की कार्रवाई की गई थी।
विधानसभा के भिरतघातियों की जानकारी जुटाएगी समिति
हमारे सूत्रों ने ये भी पुख्ता जानकारी दी है कि अनुशासन समिति ने भितरघात करने वालों की लिस्ट बनाना भी शुरू कर दी है। जिसका आधार जिले से मिली रिपोर्ट बनी हैं कांग्रेस ने पार्टी के उपाध्यक्ष अशोक सिंह को अनुशासन समिति का अध्यक्ष बनाया है। कमेटी में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, पीसी शर्मा, हर्ष यादव, सईद अहमद को भी जगह दी गई है। इसके अलावा पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी के अलावा पूर्व विधायक नेहा सिंह और प्रताप लोधी को भी इस समिति में शामिल किया है। यह सभी नेता मिलकर प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव में हुए भितरघात की जानकारी जुटा रहे हैं। यह समिति विधानसभा चुनाव में भितरघात करने वाले नेताओं पर कार्रवाई करेगी। उससे पहले जिन नेताओं पर भितरघात के आरोप हैं उनकी रिपोर्ट भी तैयार करेगी। बताया जा रहा है कि रिपोर्ट के आधार पर ही पार्टी की तरफ से कार्रवाई की जाएगी। ये कार्रवाई इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कांग्रेस ने अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन दिखाया है। प्रदेश में 19 जिले ऐसे हैं जहां कांग्रेस अपना खाता ही नहीं खोल सकी। जिसके बाद से हार पर मंथन तो हो ही रहा था। साथ ही संगठन में बदलाव और कार्रवाई की मांग भी जोर पकड़ रही थी।
लोकसभा चुनाव में युवाओं को मिल सकता है मौका
जिन जिलों में कांग्रेस का खाता नहीं खुला, वहां जल्द ही अध्यक्ष बदले जा सकते हैं। विधानसभा चुनाव में ये हार कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका मानी जा रही है। क्योंकि कई जिले ऐसे हैं जहां कांग्रेस पूरी तरह से साफ हो गई। इनमें दमोह में पिछले चुनाव में कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी, इस बार एक भी नहीं जीत पाई। बता दें भाजपा ने कटनी, पन्ना, विदिशा, सीहोर, रायसेन, राजगढ़, शाजापुर, देवास, खंडवा, बुरहानपुर, उमरिया, सिंगरौली, नरसिंहपुर, बैतूल, नीमच और इंदौर जिलों से कांग्रेस को मुक्त कर दिया है। इसी तरह भोपाल ग्रामीण अध्यक्ष पर भी कार्रवाई तय मानी जा रही है। भोपाल ग्रामीण में कांग्रेस दोनों विधानसभा में बुरी तरह हारी है। इन जिलों में जिला संगठन पर गाज गिरना तय माना जा रहा है। यहां पार्टी लोकसभा चुनाव को देखते हुए युवाओं को मौका दे सकती है।
युवा चेहरों के पीछे तजुर्बेकार नेताओं का सपोर्ट जरूरी
इससे पहले कांग्रेस की अनुशासन समिति की बैठक प्रस्तावित है। ये बैठक 19 जनवरी को हो सकती है। अब ये देखना भी दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस बैठक में क्या फैसला लेती है। क्योंकि सिर्फ समिति बनाने से काम चलने वाला नहीं है। कांग्रेस के लिए बैठक भी किसी दोधारी तलवार से कम नहीं होगी। अगर कांग्रेस कोई सख्त फैसला नहीं लेती तो उसकी इमेज और खराब होगी और नेता भी अराजक होंगे। अगर कार्रवाई करते हुए भीतरघात करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाती है तो फिर कांग्रेस में बचेगा कौन। लोकसभा का टिकट देने के लिए कांग्रेस चेहरे कहां से लाएगी। मान लीजिए कांग्रेस युवा चेहरों को ही मौका देती है तो भी उनके पीछे तजुर्बेकार नेताओं का सपोर्ट तो जरूरी होगा ही न। इस मुश्किल का हल भी कांग्रेस को ही तलाशना होगा।