भगवान के लिए हम भटकते हैं, जप-तप करते हैं, पर उसे पा नहीं पाते, ईश्वर को पाने का तरीका बताती तोल्सतोय की कहानी

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किसी गांव में मूरत नाम का एक बनिया रहता था। सड़क पर उसकी छोटीसी दुकान थी। वहां रहते उसे बहुत वक्त हो चुका था, इसलिए वहां के सब निवासियों को भलीभांति जानता था। वह बड़ा सदाचारी, सत्यवक्ता, व्यावहारिक और सुशील था। जो बात कहता, उसे जरूर पूरा करता। कभी धेले भर भी कम न तोलता और न घीतेल मिलाकर बेचता। चीज़ अच्छी न होती, तो गराहक से साफ-साफ कह देता, धोखा न देता था।

चौथेपन में वह भगवत्भजन का प्रेमी हो गया था। उसके और बालक तो पहले ही मर चुके थे, अंत में तीन साल का बालक छोड़कर उसकी स्त्री भी जाती रही। पहले तो मूरत ने सोचा, इसे ननिहाल भेज दूं, पर फिर उसे बालक से प्रेम हो गया। वह स्वयं उसका पालन करने लगा। उसके जीवन का आधार अब यही बालक था। इसी के लिए वह रातदिन काम किया करता था। लेकिन शायद संतान का सुख उसके भाग्य में लिखा ही न था।

पलपलाकर बीस वर्ष की अवस्था में यह बालक भी यमलोक को सिधार गया। अब मूरत के शोक की कोई सीमा न थी। उसका विश्वास हिल गया। सदैव परमात्मा की निन्दा कर वह कहा करता था कि परमेश्वर बड़ा निर्दयी और अन्यायी है; मारना बू़े को चाहिए था, मार डाला युवक को। यहां तक कि उसने ठाकुर के मंदिर में जाना भी छोड़ दिया। एक दिन उसका पुराना मित्र, जो आठ वर्ष से तीर्थयात्रा को गया हुआ था, उससे मिलने आया। मूरत बोला—मित्र देखो, सर्वनाश हो गया। अब मेरा जीना अकारथ है। मैं नित्य परमात्मा से यही विनती करता हूं कि वह मुझे जल्दी इस मृत्युलोक से उठा ले, मैं अब किस आशा पर जीऊं।

मित्र बोला- मूरत, ऐसा मत कहो। परमेश्वर की इच्छा को हम नहीं जान सकते। वह जो करता है, ठीक करता है। पुत्र का मर जाना और तुम्हारा जीते रहना विधाता के वश है, और कोई इसमें क्या कर सकता है! तुम्हारे शोक का मूल कारण यह है कि तुम अपने सुख में सुख मानते हो। पराए सुख से सुखी नहीं होते।

मूरत—तो मैं क्या करूं? मित्र—परमात्मा की निष्काम भक्ति करने से अन्तःकरण शुद्ध होता है। जब सब काम परमेश्वर को अर्पण करके जीवन व्यतीत करोगे तो तुम्हें परमानंद मिलेगा। मित्र ने कहा कि धार्मिक ग्रंथों का श्रवण, पाठन, मनन किया करो। ये गरन्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फलों को देने वाले हैं। इनको पढ़ो-गुनो-बुनो, शांति मिलेगी।

मूरत ने ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया। थोड़े ही दिनों में इन पुस्तकों से उसे इतना प्रेम हो गया कि रात को बारह-बारह बजे तक पढता और उसके उपदेशों पर विचार करता रहता था। पहले तो वह सोते समय छोटे पुत्र को स्मरण करके रोया करता था, अब सब भूल गया। सदा परमात्मा में लीन रहकर आनंदपूर्वक अपना जीवन बिताने लगा। पहले इधर-उधर बैठकर हंसी-ठहाका  भी कर लिया करता था, पर अब वह समय व्यर्थ न खोता था। या तो दुकान का काम करता था या ग्रंथों में खोया रहता था।

एक बार मूरत पुस्तक पढ़ते हुए सोचने लगा कि जब ईश्वर सब प्राणियों पर दया करते हैं, तो क्या मुझे सभी पर दया न करनी चाहिए? क्या मुझे भी भगवान के दर्शन हो सकते हैं! यह विचारते-विचारते उसकी आंख लग गई। बाहर से किसी ने पुकारा—मूरत! बोला—मूरत! देख, याद रख, मैं कल तुझे दर्शन दूंगा। यह सुनकर वह दुकान से बाहर निकल आया। वह कौन था? वह चकित होकर कहने लगा, यह स्वप्न है या कुछ और। कुछ पता न चला। वह दुकान के भीतर जाकर सो गया। 

दूसरे दिन परातःकाल उठ, पूजापाठ कर, दुकान में आ, खाना बना मूरत अपने कामधंधे में लग गया, लेकिन उसे रात वाली बात नहीं भूलती थी। रात को पाला पड़ने के कारण सड़क पर बर्फ के ढेर लग गए थे। मूरत अपनी धुन में बैठा था। इतने में बर्फ हटाने को कोई कुली आया। मूरत ने समझा- भगवान आ गए क्या। थोड़ी देर में देखा तो खोलकर देखा कि एक बूढ़ा बर्फ हटाने आया है। वह खुद से हंसकर कहने लगा—बूढ़ा आया है और मैं भगवान समझा। वाह री बुद्धि!

बूढ़ा आदमी बर्फ नहीं हटा सका, थककर बैठ गया और ठंड के मारे कांपने लगा। मूरत ने सोचा कि उसे ठंड लग रही है, इसे आग तपा दूं।

कहा कि आओ हाथ सेंक लो। बूढ़ा व्यक्ति धन्यवाद करके हाथ सेंकने लगा। मूरत—भाई, कोई चिंता मत करो। बर्फ मैं हटा देता हूं। तुम बूढ़े हो, ऐसा न हो कि ठंड खा जाओ। बूढ़ा बोला—तुम क्या किसी की बाट देख रहे थे?

मूरत—क्या कहूं, कहते हुए शर्म सी आती है। रात मैंने एक ऐसा स्वप्न देखा है कि उसे भूल नहीं सकता। एक धार्मिक ग्रंथ पढ़ते हुए मेरी आंख लग गई। बाहर से किसी ने पुकारा—‘मूरत!’ मैं उठकर बैठ गया। फिर शब्द हुआ, ‘मूरत! मैं तुम्हें दर्शन दूंगा!’ बाहर जाकर देखता हूं तो वहां कोई नहीं। मैं इतना तो जान गया हूं कि भगवान ने साधारण जीवों को दर्शन दिए हैं। मैं उन्हीं की राह देख रहा था कि तुम आ गए। बूढ़े ने कहा कि जब तुम्हें भगवान से प्रेम है तो वे अवश्य दर्शन होंगे। तुमने आग न दी होती तो मैं मर ही गया था। वह बूढ़ा धन्यवाद करके चला गया।

उसके पीछे दो सिपाही आए। उनके पीछे एक किसान आया। फिर एक रोटी वाला आया। सब अपनी राह चले गए। फिर एक स्त्री आयी। वह फटे कपड़े पहने थी। उसकी गोद में एक बच्चा था। दोनों ठंड के मारे कांप रहे थे। मूरत—माई, तुम कौन हो? स्त्री—मैं एक सिपाही की पत्नी हूं। आठ महीने से ना जाने कर्मचारियों ने मेरे पति को कहां भेज दिया है, कुछ पता नहीं लगता। मैं एक जगह खाना बनाती थी। ज्योंही यह बच्चा पैदा हुआ, उन्होंने इस भय से कि दो लोगों को अन्न देना पड़ेगा, मुझे निकाल दिया। तीन महीने से मारी-मारी फिरती हूं। कोई नहीं रखता। जो कुछ पास था, सब बेचकर खा गई। मूरत—तुम्हारे पास कोई ऊनी कपड़ा है? महिला—कपड़ा कहां से हो, छदाम भी तो पास नहीं। मूरत ने कुछ ओढ़ने को दिया। 

स्त्री—भगवान तुम्हारा भला करे। तुमने बड़ी दया की। बच्चा ठंड के मारे मरा जाता था। मूरत—मैंने दया कुछ नहीं की। भगवान की इच्छा ही ऐसी है।

फिर मूरत ने स्त्री को रात वाला स्वप्न सुनाया। स्त्री—क्या आश्चर्य है, दर्शन होने कोई असम्भव तो नहीं। स्त्री के चले जाने पर सेब बेचने वाली आई। उसके सिर पर सेब की टोकरी थी और पीठ पर अनाज की गठरी। टोकरी धरती पर रखकर खम्भे का सहारा ले वह थोड़ा विश्राम करने लगी कि एक बालक टोकरी में से सेब उठाकर भागा। सेव वाली ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और सिर के बाल खींचकर मारने लगी। बालक बोला—मैंने सेब नहीं उठाया।

मूरत ने उठकर बालक को छुड़ा दिया। मूरत—माई, क्षमा कर, बालक है। सेब वाली बोली—यह बच्चा बड़ा उधमी है। मैं इसे बिना पीटे नहीं छोडूंगी। मूरत—माई, जाने दे, दया कर। मैं इसे समझा दूंगा। वह ऐसा काम फिर नहीं करेगा। महिला ने बच्चे को छोड़ दिया। वह भागना चाहता था कि मूरत ने उसे रोका और कहा—महिला से अपराध की क्षमा मांगो और प्रतिज्ञा करो कि चोरी नहीं करोगे। मैंने आप तुम्हें सेब उठाते देखा है। तुमने यह झूठ क्यों कहा?

बालक ने रोकर महिला से अपना अपराध क्षमा कराया और प्रतिज्ञा की कि फिर झूठ नहीं बोलूंगा। इस पर मूरत ने उसे एक सेब दे दिया। महिला बोली —वाह वाह, क्या कहना है! इस प्रकार तो तुम गांव के समस्त बालकों का सत्यानाश कर डालोगे। यह अच्छी शिक्षा है! इस तरह तो सब लड़के शेर हो जायेंगे।

मूरत—माई, यह क्या कहती हो! बदला और दंड देना तो मनुष्यों का स्वभाव है, परमात्मा का नहीं, वह दयालु है। यदि इस बालक को एक सेब चुराने का कठिन दंड मिलना उचित है, तो हमको हमारे अनन्त पापों का क्या दंड मिलना चाहिए? हम जीवों पर दया नहीं करेंगे, तो परमात्मा भी हम पर दया नहीं करेगा।

महिला ने कहा —यह सही है, लेकिन ऐसे बर्ताव से बालक बिगड़ जाते हैं। मूरत—कदापि नहीं। बिगड़ते नहीं, बल्कि सुधरते हैं। महिला टोकरा उठाकर चलने लगी कि उसी बालक ने आकर विनय की कि माई, यह टोकरा तुम्हारे घर तक मैं पहुंचा आता हूं। रात होने पर मूरत खाना करने के बाद कोई ग्रंथ पढ़ रहा था कि उसकी आंख झपकी और उसने यह दृश्य देखा—‘मूरत! मूरत!’ मूरत—कौन हो? ‘मैं—बर्फ साफ करने वाल।’ इतना कहकर बर्फ साफ करने वाला हंसता हुआ चला गया। फिर आवाज आयी—‘मैं हूं।’ मूरत देखता है कि बालक को गोद में लिए स्त्री खड़ी है। वह सामने खड़ी हुई, हंसी और लुप्त हो गई। फिर शब्द सुनाई दिया—‘मैं हूं।’ देखा कि सेब बेचने वाली और बालक हंसते-हंसते सामने आए और अन्तर्ध्यान हो गए!

मूरत उठकर बैठ गया। उसे विश्वास हो गया कि भगवान के दर्शन हो गए। आवाज आई कि मैं आया था, तुम पहचान नहीं पाए। मूरत समझ गया कि प्राणियों पर दया करना ही परमात्मा का दर्शन करना है। बस यही थी आज की कहानी...