मुरैना में करोड़ों की सरकारी जमीन अपात्रों को पट्टे पर दी; पटवारी ने पत्नी के नाम किया पट्टा, 3 तहसीलदार, 2 पटवारी सहित कई पर FIR

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Jitendra Shrivastava
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मुरैना में करोड़ों की सरकारी जमीन अपात्रों को पट्टे पर दी; पटवारी ने पत्नी के नाम किया पट्टा, 3 तहसीलदार, 2 पटवारी सहित कई पर FIR

देव श्रीमाली ,GWALIOR. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने सरकारी जमीन को गलत तरीके से अपात्र लोगों को पट्टे पर देने के एक मामले में लम्बी जांच के बाद तीन तहसीलदारों, पंजीयक, 2 पटवारी, स्टेनो और 13 अपात्र पट्टाधारकों खिलाफ केस दर्ज किया है।  इस कार्यवाही से पूरे प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया है। यह मामला मुरैना जिले के कैलारस तहसील क्षेत्र का है। 





कैसे हुआ यह पूरा घपला 





ईओडब्ल्यू के एसपी बिट्टू सहगल ने बताया कि सुलतान सिंह नामक एक युवक ने शिकायत की थी कि माखन यादव नमक पटवारी द्वारा उनकी मुरैना जिले में पदस्थापना के भ्रष्टाचार कर, दस्तावेजों में गड़बड़ियां करके तैयार किए गए कूटरचित डॉक्यूमेंट्स के आधार पर अपात्र लोगों को शासकीय भूमि के पट्टे वितरित कराए गए, यहां तक कि उनकी पत्नी को भी पट्टा दे दिया गया। 





प्रतिबंध के बाद भी बांटे पट्टे 





जांच के दौरान ये तथ्य सामने आया कि जब पटवारी की ग्राम सेमई में पोस्टिंग थी 2003 में तब उन्होंने शासकीय प्रतिबंध के बावजूद लोगों को सरकारी जमीन को न केवल पट्टे दिए गए। बल्कि, ये अपात्र लोगों को दिए गए। इसमें प्राथमिक आकलन के अनुसार उन्होंने 2 करोड़ 43 की जमीन अपात्र लोगों को अवैधानिक ढंग से बांट दी गई। इसी तरह ग्राम गुलपुरा में 11 लाख 40 की भूमि बांट दी गई।  





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पटवारी ने पत्नी के नाम भी ले ली करोड़ों की जमीन 





सहगल ने बताया कि जांच के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य ये भी भी प्रकाश में आया कि पटवारी ने अपनी पत्नी के नाम पर भी गुलपुरा  कीमती भूमि का पट्टा कारित करके कब्जा दिला दिया गया और इसी तरह ग्राम सुरापुरा में भी उनके द्वारा एक वसीयत में कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर अपनी पत्नी का नाम भी शामिल करवा कर उसे हथिया लिया। ये शासकीय सर्वे की भूमि थी जो वितरित होनी थी जिसका एक हिस्सा उन्होंने अपनी पत्नी के नाम कम्प्यूटर पर दर्ज करवा लिया। 





इस मामले में तीन एफआईआर दर्ज हुईं  





एसपी ईओडब्ल्यू बिट्टू सहगल के अनुसार इस मामले में तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई है धारा 420, 467, 468, 120 बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत प्रकरण पंजीबद्ध कर लिया गया है। इसकी विवेचना की जा रही है। 





12 साल तक अफसरों ने मिलकर किया सरकारी जमीन का बंदरबांट 





प्राथमिक तौर पर अभी जो जांच हुई है उससे पता चलता है कि सरकारी जमीन की यह बंदरबांट 2005 से लेकर 2017 तक हुआ है और मजेदार बात ये कि इस दौरान एक तहसीलदार और नायब तहसीलदार बदल गए, लेकिन किसी ने भी जांच करने की जहमत नहीं उठाई, बल्कि उसी में लिप्त हो गए।



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