ड्यूटी और जज्बात की कहानी; लाड़ली को खोने वाले पिता को ही मिली आतंकी कसाब की सुरक्षा की जिम्मेदारी, जानिए कैसे निभाई चुनौती

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Jitendra Shrivastava
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ड्यूटी और जज्बात की कहानी; लाड़ली को खोने वाले पिता को ही मिली आतंकी कसाब की सुरक्षा की जिम्मेदारी, जानिए कैसे निभाई चुनौती

NEW DELHI. मुंबई हमले में उसकी बेटी को आतंकी कसाब ने मार दिया... जिस पिता ने अपनी लाड़ली को गोद में खिलाया, उंगली पकड़कर चलना सिखाया। जब पिता अपनी बेटी के हाथ पीले करने की तैयारी करने लगा तब उसे मालूम चला कि लिखने वाले ने उसके लिए कुछ और ही लिख दिया था। मुंबई हमले में उसकी बेटी को आतंकी कसाब ने मार दिया। किस्मत का खेल देखिए, इसके बाद जेल में कसाब की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी आईटीबीपी को सौंपी गई। आईटीबीपी में आईजी रहे पिता के सामने, ड्यूटी और जज्बात, इनमें से किसी एक राह पर चलने की चुनौती थी, लेकिन बेटी जैसमीन को खो चुके पिता ने जज्बात पर काबू पाकर अपनी ड्यूटी निभाई।

कसाब की फांसी के बाद थोड़ा सुकून मिला

मुंबई हमले के बाद में कसाब की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उस अर्धसैनिक बल को मिली, जिसके ऑपरेशन की जिम्मेदारी जैसमीन के पिता और आईटीबीपी के तत्कालीन आईजी (ऑपरेशन) एमएस भुर्जी निभा रहे थे। उन्होंने अपनी बिटिया के हत्यारे को फांसी के फंदे पर लटकने तक उसकी सुरक्षा करने में कोई चूक नहीं होने दी। भुर्जी 2017 में रिटायर हुए थे। मुंबई के 26/11 के हमले के दौरान होटल ओबरॉय ट्रायडेंट में आतंकवादियों की पहली गोली रिसेप्शन पर मौजूद जैसमीन को लगी थी। कसाब की फांसी के बाद उस पिता के दिल को थोड़ा सुकून मिला, जिसने उसकी लाड़ली जैसमीन को छीन लिया था। कई वर्ष पहले हुई बातचीत में एमएस भुर्जी का कहना था कि घाव अभी नहीं भरे। थोड़ा सुकून इसलिए है कि निर्दोष लोगों को मारने वाले कसाब की फांसी से वे देश सबक लेंगे, जो तोड़फोड़ की मंशा रखते हैं।

...तो कोई अपने आंसू नहीं रोक पाया था

भुर्जी ने बताया था, होटल प्रबंधन की पढ़ाई करने के बाद जैसमीन, ताज मुंबई में ट्रेनिंग के लिए गई थी। हमें ही नहीं, बल्कि परिवार और रिश्तेदारों को भी वह खूब हंसाती थी। बेशक वह फोन पर बात करती, मगर ऐसा लगता था कि जैसे सामने बैठकर बोल रही है। ड्यूटी के दौरान भी उसका यह अंदाज नहीं बदला। मोहाली में अंतिम संस्कार के वक्त होटल प्रबंधन से आए अधिकारियों ने जब परिवार के साथ उसकी यादें सांझा की तो कोई अपने आंसू नहीं रोक पाया था।

कसाब मामले में कानून की चुस्ती काबिल-ए-तारीफ है

एमएस भुर्जी ने कहा, इस तरह के मामलों का निपटारा होने में दशक लग जाते हैं। कसाब के मामले में कानून की चुस्ती-फुर्ती काबिल-ए-तारीफ है। यह फैसला एक उदाहरण बनना चाहिए। हम बदले की भावना से काम नहीं करते। खासतौर से आतंकियों का समर्थन करने वाले देश अब यह सोचें कि भारत इस तरह का निर्णय भी ले सकता है।

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