संजय गुप्ता, INDORE. व्यापारिक संस्था मालवा चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के फाउंडर व समाजसेवी प्रीतमलाल दुआ का 96 साल की उम्र में निधन हो गया। निधन की खबर आते ही शहर के समाजजनों, बुद्धिजीवियों में शोक की लहर दौड़ गई। निधन दोपहर साढ़े बारह बजे करीब हुआ। प्रीतम दुआ का अंतिम संस्कार कल 24 मई को सुबह 10:00 बजे सयाजी मुक्तिधाम पर होगा। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले गिरने से प्रीतमलाल दुआ का स्वास्थ्य खराब था और अस्पताल में भर्ती थे, लेकिन दो दिल पहले सभी चेकअप सामान्य आने के बाद वह घर आ गए थे और रिकवरी पर थे।
अभ्यास मंडल से भी जुड़े हुए थे दुआ
मालवा चेंबर के अजीत सिंह नारंग ने बताया कि कल भी उनसे बात हुई वह स्वस्थ थे, लेकिन अचानक दोपहर में निधन की खबर आई। अंतिम संस्कार बुधवार को किया जाएगा। दुआ अभ्यास मंडल से भी जुड़े हुए थे। शहर के सभी वरिष्ठ जन, समाजसेवियों ने दुख जताया है। इंदौर में अवंतिका एक्सप्रेस, निजामुद्दीन ट्रेन के जरिए शहर को मुंबई, दिल्ली से जुड़वाने में इनका सबसे अहम योगदान था।
प्रीतमलाल दुआ यानि शहर में रेल मार्ग की सुविधा
इंदौर में देश की स्वतंत्रता के 30 वर्ष बाद तक शहर में बड़ी लाइन की कोई ट्रेन नहीं थी। रेल मार्ग से यदि किसी को इंदौर आना है तो उसे या तो पहले रतलाम आना पड़ता था या खंडवा। वहां से छोटी लाइन की ट्रेन के जरिए इंदौर आना पड़ता था और वह भी अगर जगह मिल जाए तो ठीक अन्यथा सड़क मार्ग ही चुनना पड़ता था। ऐसे में शहर के विकास की गति भी धीमी पड़ चुकी थी। शहर की कुछ मिलें बंद हो चुकी थीं और कुछ बंद होने की कगार पर थीं। आवागमन की असुविधा के चलते नए उद्योग यहां स्थापित नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में प्रीतमल लाल दुआ ने रेल मार्ग सुविधा बढ़ाने के लिए भागीरथी प्रयास शुरू किए।
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1970 में जन सुविधा समिति का गठन किया
दुआ ने सबसे पहले 'सबके साथ सबका विकास' की बात को अपनाते हुए 1970 में जन सुविधा समिति का गठन किया। समिति का लक्ष्य स्थायी विकास करना था और इसकी शुरुआत शहर को रेलमार्ग से सीधे मुंबई और दिल्ली से जोड़ने की पहल के साथ हुई। शहर में मीटर गेज की लाइन बिछाए हुए 100 वर्ष होने के बाद भी जब ब्रॉड गेज की सुविधा नहीं मिली तो हस्ताक्षर अभियान चलाया और फूलचंद वर्मा के जरिए तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष रेल सुविधा की मांग रखी। जिसकी बदौलत पहले कोच और बाद में पृथक ट्रेन की सुविधा मिल गई। जब शहर को ट्रेन की सुविधा मिली तो उद्योगपतियों का ध्यान भी शहर की ओर आकर्षित होने लगा। छोटे उद्योग तो यहां पहले से थे और यहां का बाजार व मंडी भी व्यापक थी, लेकिन अब बड़े उद्योगों की स्थापना के लिए प्रयास तेज हुए और मेहनत रंग लाई।
रेल मार्ग के बाद उद्योग, व्यापार पर दिया ध्यान
शहर में इंडस्ट्रियल कांप्लेक्स बना और उद्योगपतियों ने यहां रुख करना शुरू किया। साल 1974 में बने मास्टर प्लान में रिंग रोड बनना प्रस्तावित था, लेकिन कार्य कई वर्षों तक शुरू नहीं हो पाया। ऐसे में दुआ को तत्कालीन महापौर राजेंद्र धारकर ने इस मुद्दे को भी हाथ में लेने की बात कही और जनता को जागरूक कर एक और लड़ाई पूर्वी क्षेत्र में एबी रोड और लिंक रोड बनने की शुरू हुई। करीब तीन-चार वर्षों बाद यह लड़ाई जीत में बदली और शहर के विकास के नए मार्ग खुले।