Bhopal. भोपाल मास्टर प्लान को लेकर आए दिन आप अखबारों में कई तरह की खबरे पढ़ते होंगे, लेकिन इस पूरे मामले में अब द सूत्र जो खुलासा करने जा रहा है वह चौकाने वाला है। दरअसल भोपाल के बड़े तालाब को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका विचाराधीन है। कोर्ट ने इस पूरे मामले में करीब 9 महीने पहले रूल निसि जारी कर दिया है। भोपाल के मास्टर प्लान में बड़ा तालाब बहुत महत्व रखता है। ऐसे में कोर्ट के आदेश से पहले यदि सरकार भोपाल के मास्टर प्लान को लागू भी कर देती है तो भी बड़े तालाब के कैचमेंट एरिए में होने वाले निर्माण पर हमेशा कार्रवाई की तलवार लटकी रहेगी।
बड़े तालाब के कैचमेंट में निर्माण की अनुमति देने का है प्रस्ताव
भोपाल मास्टर प्लान में बड़े तालाब के कैचमेंट में अनुमति देने का प्रस्ताव है और मास्टर प्लान में 18 साल से लगे ग्रहण की मुख्य वजह भी यही है। बड़े तालाब के कैचमेंट एरिए में रातीबड़ में व्हिसपरिंग पाम कवर्ड कैंपस कॉलोनी है, इस कॉलोनी में IAS-IPS अफसरों ने 10 से 15 हजार स्क्वेयर फीट के प्लाट पर करोड़ों रुपए के आलीशान बंगले बना रखे हैं। कैचमेंट खत्म होता है तो ये सभी बंगले वैध हो जाएंगे। बड़े तालाब के लगभग 360 वर्ग किमी के कैचमेंट एरिया में फिलहाल ग्रामीण क्षेत्र में एग्रीकल्चर लैंडयूज है। यहां लैंडयूज में बदलाव की अनुमति नहीं मिलती। इस कारण यहां किसी भी तरह का निर्माण अवैध ही माना जाता है। नए प्रस्तावित मास्टर प्लान में अब इस कैचमेंट एरिया को कई भागों में बांट दिया गया है। जिसमें बफर जोन को छोड़कर बाकी हिस्से को सरकार ने खोल दिया है।
अब समझे क्या है rule nisi
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील आयुष गुप्ता ने बताया कि 29 जून 2022 को हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए रूल निसि जारी कर दिया। rule nisi का मतलब यह होता है कि कोर्ट को प्रथम दृष्टया मामला सही और गंभीर लग रहा है। रूल निसि का मतलब यह हुआ कि यदि रिसपोंडर नहीं आए तो रूल एबस्यूलूट हो जाएगा और जो भी हमने रिलीफ मांगी है वह हमें मिल जाएगी। सामान्य शब्दों में कहें तो कोर्ट पूरे मामले को प्रथम दृष्टया सही मान रही है और अब इस मामले में सरकार को जवाब देना है। एडवोकेट आयुष गुप्ता ने कहा कि कोर्ट के आदेश का मास्टर प्लान के हर उस बिंदु पर असर पड़ेगा जिसका संबंध बड़े तालाब और उसके कैचमेंट से जुड़ा है।
rule nisi से आप पर यह असर
हाईकोर्ट ने पूरे मामले में किसी तरह का कोई स्टे नहीं दिया है, मतलब बड़े तालाब के कैचमेंट को खत्म कर जोन आफ इंफुलेंस व्यवस्था लागू करने के लिए जो प्रक्रिया भी चल रही है, उस पर कहीं कोई रोक नहीं है, लेकिन इसी मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका लंबित है जिस पर रूल निसि लागू है। अब आप इसे ऐसे समझिए कि मान लीजिए सरकार 2023 में मास्टर प्लान लागू कर देती है, मतलब अब कैचमेंट में भी निर्माण की अनुमति मिल जाएगी, आपने निर्माण कर लिया और मान लीजिए तीन साल बाद यानी 2026 में कोर्ट फैसला सुना देती है कि कैचमेंट एरिया बरकरार रहेगा तो फिर आप खुद समझदार है कि आपके निर्माण का क्या होगा। जाहिर सी बात है वह सारे निर्माण अवैध हो जाएंगे, जिन पर हमेशा कार्रवाई की तलवार लटकी रहेगी।
वैटलैंड अथॉरिटी ने ऐसे खेला पूरा खेल
भोपाल बड़े तालाब के संरक्षण की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश वैटलैंड अथारिटी की है। पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष पांडे ने बताया कि वैटलैंड के संरक्षण और संवर्धन के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में जो वैटलैंड रूल्स बनाए थे, उन्हें वर्ष 2017 में रिवाइस किया गया। नियम के मुताबिक नए संसोधन के लिए मिनिस्ट्री आफ इंवारमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेंट चेंज यानी एफओईएफ में पहले अथारिटी को रजिस्ट्रेशन कराना था, ताकि कोई भी संसोधन से पहले पब्लिक हीयरिंग कर सभी पक्षों पर गौर कर सके, पर मध्यप्रदेश वैटलैंड अथारिटी ने ऐसा नहीं किया क्योंकि इसमें आपत्तियों की भरमार आने की आशंका थी। वैटलैंड अथॉरिटी ने राज्य शासन के उच्चाधिकारियों के साथ मिलकर अलग से ही आदेश निकाल दिया। जिसमें कैचमेंट शब्द खत्म कर जेडओआई यानी जॉन ऑफ इंफ्लूऐंस शब्द लाया गया। जिसके अनुसार शहरी क्षेत्र में 50 मीटर और ग्रामीण क्षेत्र में 250 मीटर को आरक्षित किया गया। मतलब इस एरिए को छोड़कर बाकि बंदिशे खत्म जैसी ही मानी जाए।
कैचमेंट का महत्व और क्या फसा है पेंच
कैचमेंट वह जलग्रहण क्षेत्र होता है जिसमें बारिश के समय बरसने वाला पानी नदी—नालों के माध्यम से उस वॉटर बॉडी तक पहुंचता है। जाहिर सी बात है...यह उस वॉटर बॉडी के लिए कभी कम तो हो ही नहीं सकता। यानी बड़ा तालाब में आज हम जो पानी देख रहे हैं यह कैचमेंट में हुई बारिश के समय वहां के नदी नालों से होता हुआ बड़े तालाब तक पहुंचा। कैचमेंट में निर्माण को लेकर सख्ती ही इसलिए की जाती है ताकि बारिश के समय वॉटर बॉडी तक पानी जाने में कोई रूकावट न आए। मास्टर प्लान में बड़े तालाब के कैचमेंट में आने के कारण व्हिसपरिंग पाम को लो डेनसिटी की श्रेणी में रखा गया है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की सरकारी भाषा में लो डेनसिटी एरिया में 0.06 एफएआर दिया जाता है। यानि कि 10 हजार स्क्वेयर फीट के प्लाट पर मात्र 600 वर्गफीट तक ही बना सकते हैं, इसमें सर्वेंट क्वार्टर, कार पार्किंग, लिफ्ट एरिया जैसी सुविधाएं शामिल नहीं है, इन्हें भी जोड़ लिया जाए तो अधिकतम 1500 वर्गफीट ही बना सकते हैं। इसके बावजूद व्हिसपरिंग पाम में 5 हजार वर्गफीट से ज्यादा का निर्माण किया गया है। ये पूरी कवायद इन अवैध निर्माण को वैध कराने के लिए ही की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश, पुराने मास्टर प्लान से नहीं की जा सकती छेड़छाड़
लोकायुक्त से रिटायर्ड डीजी अरूण गुर्टू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि पुराने मास्टर प्लान में जो प्रावधान कर दिए गए हैं उनमें छेड़छाड़ नए मास्टर प्लान के लिए नहीं की जा सकती। नया मास्टर प्लान जो शहरी क्षेत्र बढ़ा है उसके विकास के लिए होता है। ऐसे में तो पुराने मास्टर प्लान का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। एफएआर बदलने का प्रस्ताव गलत है। इसे इस तरह से समझिए के यदि तालाब या डेम के खाली क्षेत्र में 100 प्रतिशत तक निर्माण हो गया तो बारिश के समय इन वॉटर बॉडी में पानी कहां से आएगा। वहीं तालाब या डेम के जलभराव क्षेत्र से कुछ दूरी तक जमीन दलदलीय हो जाती है। ऐसे में यहां बड़े निर्माण हुए तो दुर्घटना भी हो सकती है। यही कारण है कि लो डेनसिटी में शर्तों के साथ निर्माण की अनुमति दी जाती है।