BHOPAL. मध्यप्रदेश में बीजेपी के कई मंत्री और विधायकों को बुरी खबर मिलने वाली है। कई को तो ये अंदाजा भी हो ही चुका होगा कि ये साल उनके लिए बड़ी खुशखबरी लेकर नहीं आने वाला है। उल्टे उनके सियासी कॅरियर पर फुल स्टॉप लगने की खबर उन्हें कभी भी मिल सकती है। पर, ये खबर जितनी बुरी मंत्री या विधायकों के लिए होगी, मध्यप्रदेश में बीजेपी को भी उतना ही बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। मुमकिन है कि थोड़ी आंच सीएम शिवराज सिंह चौहान तक भी पहुंचे।
क्या गुजरात जितनी आसान होगी एमपी में दिग्गजों की टिकट कटिंग
चुनाव में अभी थोड़ा वक्त है, लेकिन टिकट की हसरत रखने वाले नेताओं ने अभी से इसके लिए जोड़ तोड़ शुरू कर दी है। नेता जितनी जल्दी में हैं बीजेपी इस मसले पर उतनी ही गंभीर है। जो अब तक ये तो साफ कर ही चुकी है कि गुजरात की तर्ज पर ही एमपी में भी टिकट बंटेंगे। आलाकमान के इस फरमान ने सिटिंग एमएलएज की नींद उड़ा दी है। क्योंकि गुजरात फॉर्मूला लागू होना का सीधा सा मतलब ये है कि दिग्गजों के टिकट पर भी कैंची चल सकती है। जिसके बाद खलबली तो मचनी ही है, लेकिन गुजरात में दिग्गजों के टिकट काटना जितना आसान था एमपी में भी क्या बीजेपी के लिए ये उतना ही आसान है। या बीजेपी कोई नया जोखिम लेने की गलती कर सकती है।
चुनाव तक पहुंचने का पहला लेवल सिटिंग एमएलएज के लिए भी मुश्किल
चुनाव के सीजन यानी नेताओं के लिए जी तोड़ मेहनत करने का मौका है। पहले तो उन्हें टिकट हासिल करने की जंग लड़नी है। उसके बाद सीट जीतने की मशक्कत करनी है। जीत गए तो और भी तमाम कवायदों से गुजरना है, लेकिन इस बार चुनाव तक पहुंचने का पहला लेवल ही बीजेपी नेताओं खासतौर से सिटिंग एमएलएज के लिए बहुत मुश्किल है। कम अनुभवी नेताओं की बात तो छोड़िए अभी तो तलवार उन नेताओं पर भी लटक रही है जो अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं। उस सीट से कई चुनाव जीत चुके हैं या शिवराज कैबिनेट में ही क्यों न शामिल हों। बीजेपी आलाकमान के इशारे पर ऐसे नेताओं के टिकट भी काटे जा सकते हैं।
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जमे जमाए नेताओं के भविष्य पर भी खतरा मंडराने लगा है
बीजेपी ने इस बार टिकट वितरण के क्राइटेरिया में कई बदलाव किए हैं। जिसके तहत अब जमे जमाए नेताओं के सियासी भविष्य पर भी खतरा मंडराने लगा है। गुजरात में बड़ी कामयाबी हासिल करने वाली बीजेपी में ये सुगबुगाहटें हैं कि इस बार टिकट वितरण का क्राइटेरिया गुजरात चुनाव की तर्ज पर तय होगा। इस चुनाव में पार्टी ने बड़े-बड़े नेताओं को टिकट नहीं दिए थे। जिसमें पूर्व सीएम विजय रूपाणी और डिप्टी सीएम रहे नितिन पटेल भी शामिल हैं। सूत्रों की माने तो ऐसे दिग्गजों को खुद पीएम हाउस की ओर से या पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से फोन गया था कि उनके टिकट काटे जा रहे हैं। गुजरात में ये प्रयोग सफल भी रहा। जिसके बाद ये माना जा रहा है कि अब एमपी में भी यही फॉर्मूला लागू होगा।
एमपी में गुजरात फॉर्मूला लागू हुआ तो सीएम की कुर्सी डगमगा सकती है
सिर्फ यही एक फॉर्मूला नहीं मौजूदा विधायकों को कई कसौटियों पर कसा जाएगा। जिसके बाद उन्हें टिकट मिल सकेगा। जिसमें कुछ पुराने क्राइटेरिया तो शामिल हैं ही। अब गुजरात का फॉर्मूला भी जुड़ सकता है। वाकई ऐसा हुआ तो दिग्गजों को अपनी तो टिकट गंवानी ही पड़ेगी साथ ही सीएम की कुर्सी भी डगमगा सकती है। वैसे तो जेपी नड्डा और अमित शाह दोनों ये आश्वासन दे चुके हैं कि अगले चुनाव में शिवराज ही चेहरा होंगे, लेकिन गुजरात फॉर्मूला लागू हुआ तो फिर बीजेपी में बवंडर को तय माना जा सकता है।
कांग्रेस ने इस फॉर्मूले को सीएम की कुर्सी पर ही संकट बता दिया
गुजरात में पार्टी का फॉर्मूला हिट रहा, बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की। उसके बाद से बीजेपी के तकरीबन सभी नेता उस फॉर्मूले का गुणगान करते नहीं थक रहे। लेकिन कांग्रेस ने इस फॉर्मूले पर जमकर चटखारे लिए हैं और इसे सबसे पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी पर ही संकट बता दिया है।
एंटीइनकंबेंसी तो बीजेपी के पक्ष में बदली
कांग्रेस के तंज को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि चुनावी साल में बीजेपी ने गुजरात में जो उलटफेर किए उससे एंटीइनकंबेंसी तो बीजेपी के पक्ष में बदली, लेकिन पूरे के पूरे मंत्रिमंडल का ही सफाया हो गया।
यह था बीजेपी का गुजरात फॉर्मूला
- 5 साल तक सीएम रहे विजय रूपाणी समेत कई मंत्रियों को बदल दिया गया।
गुजरात फार्मूले से कई दिग्गज अपनी सियासी विरासत गंवाते नजर आ रहे हैं
इस लिहाज से कांग्रेस के तंज को खारिज भी नहीं किया जा सकता। गुजरात की तर्ज पर एमपी में भी ट्रिपल सर्वे करवाया ही जा चुका है। इस सर्वे के अलावा परिवारवाद और 70 पार के नेताओं का टिकट कटने का क्राइटेरिया भी लागू किया जाएगा। इस क्राइटेरिया के चलते कई नेताओं के बेटे टिकट से हाथ धोने या पार्टी से मुंह फेरने पर मजबूर हैं। कई दिग्गज भी अपनी सियासी विरासत को गंवाते नजर आ रहे हैं।
‘70 पार’ पर लटकी क्राइटेरिया की तलवार!
- सीताशरण शर्मा, होशंगाबाद 73 साल
शिवराज कैबिनेट के मंत्री भी इस क्राइटेरिया की बली चढ़ सकते हैं। जिसमें गोपाल भार्गव, बिसाहू लाल शामिल हैं। इसके अलावा यशोधरा राजे सिंधिया भी इस क्राइटेरिया की दहलीज पर पहुंच ही रही हैं। पर सवाल ये है कि क्या वाकई गुजरात में हिट रहा ये फॉर्मूला कांग्रेस में सफल हो सकेगा। इसमें संशय की वजह है मध्यप्रदेश बीजेपी में पहले से ही बेकाबू हो चुकी नाराजगी और असंतोष।
कैबिनेट में कई नए चेहरे शामिल होने की संभावना
16 जनवरी से बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक होनी है। जिसके आठ दिन बाद राज्यों की कार्यसमिति की बैठक होनी है। इस बैठक के बाद कई मंत्रियों के विभाग घटने और कैबिनेट में कई नए चेहरे शामिल होने की संभावना है। जिसके बाद तस्वीर काफी हद तक साफ होगी कि वाकई बीजेपी किस तर्ज पर आगे बढ़ रही है।
क्या मोदी का गुजरात जितना जादू एमपी में चल पाएगा?
गुजरात में बीजेपी के पास हर असंतोष को संभालने का सबसे बड़ा सहारा थे पीएम नरेंद्र मोदी, जिनका गुजरात में सीधा दखल था। इसलिए नए चेहरे भी आसानी से जीत गए। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में क्या उनका जादू उतना ही चलेगा जितना गुजरात में चला या एमपी में ये फॉर्मूला बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है, इसका आंकलन करना भी जरूरी है। क्योंकि बीजेपी में विधायकों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी का जो आलम है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि बीजेपी खुद ही अभी गर्म तवे पर बैठी है। एक छोटी सी चूक ही उसकी सत्ता जलाने के लिए काफी होगी।