BHOPAL. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखे जाने के लगभग 17 महीने बाद गुरुवार को कोलकाता में एक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, आरएसएस सदस्य जीसु बसु और भाजपा नेता प्रदीप जोशी निलंबित के खिलाफ बलात्कार और आपराधिक धमकी के आरोप में पुलिस जांच का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए मजिस्ट्रेट को आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली अर्जी पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।
याचिकाओं के बैच का निस्तारण करते हुए खंडपीठ ने कहा
"मामले को मजिस्ट्रेट के पास भेजने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि करते हुए हम मजिस्ट्रेट द्वारा रिमांड में दिए गए बाद का आदेश रद्द कर देते हैं। हम मामले को फिर से मजिस्ट्रेट के पास भेज देते हैं, जिससे जांच की जा सके और न्यायिक विवेक लगाया जा सके और निर्देश जारी किए जाने पर विवेक का प्रयोग किया जा सके। एक्ट की धारा 156(3) के तहत या क्या वह संज्ञान ले सकते हैं और सीआरपीसी की धारा 202 के तहत प्रक्रिया का पालन कर सकता है। मजिस्ट्रेट ललिता कुमारी में निर्धारित कानून के संदर्भ में पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच का निर्देश भी दे सकते हैं। इससे पहले आधिकारिक कागजात और दस्तावेज दाखिल किए गए अदालत और हाईकोर्ट को मजिस्ट्रेट के रिकॉर्ड में लाया जाना है। शिकायतकर्ता/सूचना उक्त दस्तावेज़ की सामग्री की वास्तविकता पर सवाल उठाने का हकदार होगा।"
एफआईआर की मांग करने वाली अर्जी की थी खारिज
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ विजयवर्गीय, बसु और जोशी द्वारा कलकत्ता हाईकोर्ट के अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली अर्जी खारिज कर दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- जमानत याचिकाओं पर विचार करें
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने अक्टूबर 2021 में अपील में नोटिस जारी किया। उसी महीने अभियुक्तों के खिलाफ आपराधिक मामले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट को उनकी अग्रिम जमानत याचिकाओं पर विचार करने की अनुमति दी। अदालत ने विजयवर्गीय को अगली सुनवाई की तारीख तक गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया, लेकिन दिसंबर 2021 में एक आदेश द्वारा विशेष अनुमति याचिकाओं के निपटारे तक सुरक्षा बढ़ा दी गई।
बेंच ने दिसंबर 2021 में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ये था मामला
पीड़िता ने विजयवर्गीय पर उसे अपने फ्लैट पर बुलाने का आरोप लगाया, जिसके बाद आरोपी ने एक के बाद एक कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया। उसने आगे आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे और उसके बेटे को जान से मारने की धमकी भी दी। इतना ही नहीं, महिला ने यह भी आरोप लगाया कि इस घटना के बाद 39 बार उसका शारीरिक शोषण किया गया, जिसके बाद अंततः दिसंबर 2019 में दो शिकायतें दर्ज की गईं। शिकायत दर्ज करने के बावजूद, कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
आपराधिक पुनर्विचार आवेदन को कोर्ट ने स्वीकार किया
चूंकि पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया, इसलिए 12 नवंबर, 2020 को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) में आवेदन दायर किया गया, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीपुर ने खारिज कर दिया। उक्त आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष एक आपराधिक पुनर्विचार आवेदन दायर करके चुनौती दी गई, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
शिकायत को FIR के रूप में मानने का निर्देश
खंडपीठ ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया और मामला उनके पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया गया। अक्टूबर 2021 में केवल कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के आधार पर मजिस्ट्रेट ने शिकायत को एफआईआर के रूप में मानने का निर्देश दिया। इस आदेश के तहत तीनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376डी, 506(ii), और 120बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।