DELHI. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया है। उन्होंने आज यानी सुबह 8.16 पर अंतिम सांस ली। वह 82 साल के थे। मुलायम सिंह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में वह वेंटिलेटर पर थे। पिछले 26 सितंबर से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई। मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई में हुआ था। पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैनपुरी के करहल स्थित जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे। पिता का सपना था कि बेटा पहलवान बने। लेकिन उन्होंने राजनीति की राह चुनी।
मुलायम सिंह यादव के बिना यूपी की राजनीति का इतिहास कभी पूरा नहीं होगा। क्योंकि उन्होंने अपने पांच दशक के राजनैतिक जीवन में यूपी की सियासत को कई मोड़ दिए। समाजवादी विचारों से प्रभावित होकर राजनीति की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह ने किसी भी पार्टी से गठजोड़ करने में गुरेज नहीं किया। यूपी जैसे राज्य की गद्दी संभालने के लिए उन्होंने केंद्र से लेकर अन्य राज्यों की राजनीति में भी हस्तक्षेप किया। उन्होंने अपने राजनैतिक सफर में आठ पार्टियों की सदस्यता ली। इसके अलावा भी उन्होंने अन्य दलों का सहयोग लिया और दिया। जानें आठ पार्टियों के जरिए कैसे बना मुलायम का पूरा सफर-
सोशलिस्ट पार्टी से राजनीति की शुरुआत
मुलायम सिंह यादव की जड़ें गांव से जुड़ी हुई हैं। 22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई में पैदा हुए मुलायम को उनके पिता सुघर सिंह पहलवान बनाना चाहते थे, लेकिन मुलायम ने राजनीति के अखाड़े में सफलता पाई। इटावा से ग्रेजुएशन किया और राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए आगरा पहुंचे। छात्र राजनीति में सक्रिय हुए। राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा से जबरदस्त रूप से प्रभावित हुए। पहली बार 1966 में इटावा पहुंचने के बाद उन्हें लोहिया का सानिध्य मिला। 1967 में उन्होंने लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा। वे जसवंतनगर सीट से उम्मीदवार बने और जीत हासिल की।
1969 में चुनाव हारे तो भारतीय क्रांति दल जॉइन किया
1967 में लोहिया के निधन के बाद सोशलिस्ट पार्टी कमजोर हुई। नतीजा यह रहा कि मुलायम सिंह यादव को भी 1969 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। यूपी में इसके बाद का दौर काफी उथल-पुथल भरा रहा। हालांकि, कुछ समय बाद ही किसान नेता चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल यूपी में मजबूत हो रहा था। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी ने जबरदस्त पैठ बना ली। लोहिया के निधन से कमजोर हो रही संयुक्त सोशलिस्ट दल को छोड़कर मुलायम भारतीय क्रांति दल के साथ हो लिए। 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीते और विधानसभा पहुंचे।
भारतीय लोकदल के प्रदेशाध्यक्ष रहे
1974 में इमरजेंसी से ठीक पहले चरण सिंह ने अपनी पार्टी का विलय कमजोर पड़ चुकी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ कर लिया। इसी के साथ भारतीय क्रांति दल बन गया लोकदल। यह मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक करियर की तीसरी पार्टी रही। मुलायम ने इस पार्टी में रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई।
जनता पार्टी की सरकार में पहली बार मंत्री बने
इस बीच इंदिरा गांधी सरकार के दौर में देशभर में आपातकाल लगा। इसके खिलाफ प्रदर्शन में शामिल रहने के लिए मुलायम सिंह यादव की मीसा में गिरफ्तारी हुई। इमरजेंसी के ठीक बाद 1977 में देश में जयप्रकाश नारायण की जनता पार्टी का उभार हुआ। चौधरी चरण सिंह के लोकदल का विलय इसी पार्टी में हो गया। 1977 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद राज्य में जनता पार्टी सरकार बनी। नई सरकार में मुलायम सिंह को मंत्री भी बनाया गया। हालांकि, जनता पार्टी 1980 में ही टूट गई और इसके घटक दल एक-एक कर अलग हो गए।
जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर दूसरी बार चुनाव हारे
जनता पार्टी की टूट से कई पार्टियां बनीं। चौधरी चरण सिंह ने भी जनता पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाई। मुलायम भी चरण सिंह के साथ चले गए। 1980 के विधानसभा चुनाव में मुलायम को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में मुलायम चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर के टिकट पर चुनाव लड़े थे।
लोकदल पर कब्जे का विवाद
1980 के चुनाव के बाद चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर का नाम बदलकर लोकदल कर दिया गया। 1985 में राज्य में हुआ विधानसभा चुनाव में मुलायम लोकदल के टिकट पर ही जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 1987 में जब चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद जब उनके बेटे अजीत सिंह और मुलायम में विवाद हो गया। इसके बाद लोकदल के दो टुकड़े हो गए। एक दल बना अजीत सिंह का लोकदल (अ) और दूसरा मुलायम सिंह के नेतृत्व वाला लोकदल (ब)।
जनता दल में बने पहली बार मुख्यमंत्री
1989 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स घोटाले को लेकर कांग्रेस से बगावत कर अलग हुए, तब विपक्षी एकता की कोशिशें फिर शुरू हुईं। इसी के साथ एक बार फिर जनता दल का गठन हुआ और मुलायम सिंह यादव ने अपने लोकदल (ब) का विलय इसी जनता दल में करा दिया। इस फैसले का मुलायम को काफी फायदा भी हुआ और वे 1989 में ही पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए।अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें मुलायम सिंह जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े।
खुद की पार्टी बनाकर बेटे को बनवाया सीएम
मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्तूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल बना। पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को 2016 में समाजवादी पार्टी का संरक्षक घोषित कर दिया था।
पीएम बनते-बनते रह गए थे नेताजी
1996 में मुलायम सिंह यादव 11वीं लोकसभा के लिए मैनपुरी सीट से चुने गए। उस समय केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उसमें मुलायम भी शामिल थे। मुलायम देश के रक्षामंत्री बने। हालांकि, यह सरकार बहुत लंबे समय तक नहीं चली। मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे।
वो घटना जिसके बाद करीब आ गए थे मुलायम और साधना
मुलायम सिंह यादव की पहली पत्नी और अखिलेश यादव की मां मालती देवी का साल 2003 में ही निधन हो गया था। उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने साधना गुप्ता को पत्नी का दर्जा दिया था। औरैया के विधूना कस्बा निवासी साधना गुप्ता एक अस्पताल में नर्स थीं। बताया जाता है कि उसी अस्पताल में सपा संरक्षक की मां भर्ती थीं। साधना गुप्ता ने मुलायम सिंह यादव की मां मूर्ति देवी की काफी सेवा की। उसी दौरान अस्पताल में एक घटना घटी।
बताया जाता है कि एक दूसरी नर्स मुलायम सिंह यादव की मां मूर्ति देवी को गलत इंजेक्शन लगाने जा रही थी, जिसे साधना ने रोक दिया था। इसके बाद से ही वह मुलायम सिंह के नजदीक आईं और पार्टी की सदस्यता ली। इस बीच उनका विवाह फर्रुखाबाद में हो गया लेकिन कुछ समय बाद 1988 में वह पति का घर छोड़ कर औरैया आ गई। इसके बाद वह पार्टी में सक्रिय रहीं। वर्ष 2007 में एक हलफ नामे में भी मुलायम सिंह यादव ने इस बात का जिक्र किया कि साधना गुप्ता उनकी पत्नी और प्रतीक बेटे हैं।
मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक करियर
- 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996- 8 बार विधायक रहे.