JAIPUR. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की नई सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है। नई सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल के गठन की ही नजर आ रही है। सरकार के नए मुखिया को जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण तो साधने ही है। इसके साथ ही पार्टी के अंदरूनी समीकरण भी साधने हैं। रोचक स्थिति ये बन रही है कि पार्टी के जो विधायक चुनकर आए हैं, उनमें कई अनुभवी विधायक पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक हैं। इन्हें मंत्री मंडल में शामिल किया जाता है, तो इस पर वसुंधरा राजे की छाप नजर आएगी और पीढ़ीगत बदलाव का संदेश नहीं जा पाएगा और यदि नए लोगों को बनाते हैं तो सरकार के कामकाज की चुनौती रहेगी क्योंकि खुद मुखिया भी पहली बार के विधायक है।
CM भजनलाल शर्मा के लिए चुनौती बना कैबिनेट गठन
राजस्थान में बीजेपी के आलाकमान ने एक बड़ा प्रयोग करते हुए सरकार में नए चेहरों को आगे करने की रणनीति पर अमल तो शुरू कर दिया है। लेकिन राजस्थान जैसे जातिगत और क्षेत्रीय विविधता वाले राज्य में पुरी नई टीम के साथ काम करना इस नई सरकार के लिए बेहद चुनौती पूर्ण काम माना जा रहा है। सरकार के मुखिया भजनलाल शर्मा को अपने मंत्रियों की टीम बनानी है और अभी सरकार के समक्ष यही एक बहुत बड़ी चुनौती दिख रही है।
थोड़ी गड़बड़ी हो चुकी है
सरकार के मुखिया को मंत्रिमंडल गठन में जातिगत समीकरण भी देखने हैं और क्षेत्रीय संतुलन भी साधना है। इस मामले में पहले ही थोड़ी गड़बड़ी हो चुकी है। सरकार के तीन प्रमुख पद मुख्यमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्री जयपुर से ही हो गए हैं। यानी क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिहाज से अभी पूरे प्रदेश को कर करना बाकी है। वहीं जातिगत संतुलन की बात की जाए तो जाट, मीणा, गुर्जर, वैश्य और आदिवासी इन सभी को प्रतिनिधित्व देना पड़ेगा। इनमें गुर्जर वैश्य आदिवासियों ने पार्टी का पूरा साथ दिया है। वहीं जाट चूंकि सबसे बड़ा वोट बैंक है इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और मीणा पहले ही अपना गुस्सा जाहिर कर चुके हैं, क्योंकि उनके सबसे बड़े नेता माने जाने वाले किरोड़ी लाल मीणा को तीनों अहम पदों में से एक भी पद नहीं मिला है। यानी जातिगत और क्षेत्रीय दोनों संतुलन बनाने बेहद जरूरी है। क्योंकि आगे लोकसभा का चुनाव भी लड़ना है और पिछले दो बार का प्रदर्शन दोहराना सरकार के नए मुखिया की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
पार्टी की अंदरूनी चुनौतियां भी कम नहीं
भजन लाल शर्मा कई बड़े नेताओं को एक तरफ बैठा कर सरकार के मुखिया बनाए गए हैं। इसलिए उनके लिए पार्टी के अंदर भी चुनौतियां कम नहीं है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल गठन की ही है। स्थिति ये है कि अनुभव के आधार पर जिन लोगों को मंत्री बनाए जाने की चर्चा चल रही है उनमें से कई पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक माने जाते हैं। जैसे कालीचरण सराफ, पुष्पेंद्र सिंह राणावत, गजेंद्र सिंह खींवसर, अनीता भदेल, अजय सिंह किलक, जसवंत यादव, कैलाश वर्मा, प्रताप सिंह सिंघवी, श्रीचंद कृपलानी आदि। ये वो नाम है जो कई बार जीत चुके हैं और पहले मंत्री पद पर भी रह चुके हैं। लेकिन इनको मंत्री बनाया जाता है, तो फिर सरकार पर वसुंधरा राजे की छाप नजर आएगी और पार्टी ने पीढ़ीगत बदलाव का संदेश देने के जिस उद्देश्य से प्रमुख पदों पर बदलाव किया है वह उद्देश्य भी पूरा नहीं होगा।
वसुंधरा से दूर रहने वाले कुछ बड़े नाम चुनाव हार गए
नए मुख्यमंत्री के लिए एक दिक्कत ये भी है कि पुराने लोगों में जो लोग वसुंधरा समर्थक नहीं है उनमें से कुछ प्रमुख नाम चुनाव हार गए हैं जैसे सबसे वरिष्ठ नेताओं में शामिल राजेंद्र राठौड़, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, तीन बार के विधायक और प्रदेश प्रवक्ता रामलाल शर्मा जैसे नेता इस बार विधानसभा में नही दिखेंगे। इनके अलावा वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया है। अब पुराने और अनुभवी नाम में प्रमुख तौर पर किरोड़ी लाल मीणा, मदन दिलावर और जोगेश्वर गर्ग के नाम रह जाते हैं। इनमें से किरोड़ी लाल मीणा को विभाग आवंटन में भी कोई गड़बड़ी रह गई तो पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। ऐसे स्थिति में यदि पूरी तरह से नए लोगों के साथ मंत्रिमंडल बनाया जाता है तो ये सरकार के लिए और ज्यादा चुनौती पूर्ण स्थिति बनेगी क्योंकि सिस्टम को समझना और तुरंत डिलीवर करना आसान नहीं होगा। जबकि पार्टी और प्रदेश की जनता दोनों की अपेक्षाएं यही रहेगी कि सरकार बदली है, तो उसका असर नजर आना चाहिए।
विपक्ष भी दमदार है
सरकार के लिए चुनौती ये भी है कि इस बार कांग्रेस विपक्ष में होकर भी बहुत ज्यादा कमजोर नहीं है। कांग्रेस और आरएलडी के मिलाकर कुल 70 विधायक हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हटा भी दिया जाए, क्योंकि वे सदन में ज्यादा सक्रिय नहीं रहते हैं तो भी सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, शांति कुमार धारीवाल, टीकाराम जूली, राजेंद्र पारीक, जुबेर खान, श्रवण कुमार, हरीश चौधरी, महेंद्रजीत सिंह मालवीय और हरीश मीणा जैसे नाम है जो औसतन 2 से 4 बार के विधायक हैं और इनमें से कई मंत्री भी रह चुके हैं।
बीजेपी के प्रमुख अनुभवी विधायक
- कालीचरण सराफ 8 बार
- प्रताप सिंह सिंघवी 7 बार
- वसुंधरा राजे 6 बार
- किरोड़ी लाल मीणा 6 बार
- पुष्पेंद्र राणावत 6 बार
- मदन दिलावर 6 बार
- अनिता भदेल 5 बार
कांग्रेस के प्रमुख अनुभवी विधायक
- दयाराम परमार 7 बार
- अशोक गहलोत 6 बार
- श्रवण कुमार 6 बार
- राजेंद्र पारीक 6 बार
- शांति धारीवाल 5 बार
- गोविंद सिंह डोटासरा 4 बार