JAIPUR. राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सरकार वाहन मालिकों से ग्रीन टैक्स तो वसूल रही है, लेकिन ये पैसा एक ऐसे फंड में डाला जा रहा है, जिससे पर्यावरण संरक्षण को छोड़ कर बाकी सारे काम किए जा रहे हैं। सरकार को खुद नहीं पता कि ग्रीन टैक्स का पैसा किस मद में खर्च हो रहा है। उधर, जमीनी हालात यह है कि राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, भिवाड़ी जैसे शहर देश और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की रैकिंग में लगातार दिख रहे हैं।
पांच साल में 1024 करोड़ ग्रीन टैक्स लिया
राजस्थान में ग्रीन टैक्स की वसूली और उसके उपयोग के सम्बन्ध में हाल में विधानसभा में खुद सरकार ने स्वीकार किया है कि उसे यह पता नहीं है कि ग्रीन टैक्स का पैसा किस मद में खर्च किया जा रहा है, क्योंकि यह पैसा जिस कोष में जाता है, उसमें दो और मदों का पैसा आता है। अब किस मद का पैसा किस काम में खर्च हो रहा है, यह सरकार भी नहीं जानती। वहीं सरकार ने इस कोष से हुए कामों का जो ब्यौरा दिया है, उसमें पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा कोई काम नहीं दिख रहा है, जबकि पिछले पांच साल में सरकार ग्रीन टैक्स के नाम पर 1024 करोड़ रूपए वसूल कर चुकी है।
वसूली परिवहन विभाग करता है लेकिन पैसा एक फंड में चला जाता है
दरअसल राजस्थान सरकार का परिवहन विभाग ग्रीन टैक्स के रूप में जो राशि वसूल करता है, वह राजस्थान परिवहन आधारभूत विकास निधि नाम के कोष में डाल दी जाती है। इस कोष में ग्रीन टैक्स के अलावा वाहन कर पर लगाया गया सेस और स्टाम्प की बिक्री पर लगाए गए सेस की राशि भी डाली जाती है। यानी इस फंड में तीन मद से पैसा आता है और इस तरह जो राशि एकत्र होती है, वह परिवहन सुविधाओं को बेहतर बनाने के नाम पर खर्च कर दी जाती है।
वसूली परिवहन विभाग करता है, ज्यादा खर्च दूसरा विभाग करता है
इस राजस्थान परिवहन आधारभूत विकास निधि में जो पैसा आता है, उसे 75:25 के अनुपात में स्वायत्त शासन विभाग और परिवहन विभाग खर्च करता है। यानी वसूली तो परिवहन विभाग करता है, लेकिन इसका 75 प्रतिशत पैसा स्वायत्त शासन विभाग खर्च करता है।
इन पर किया जा रहा है खर्च
सरकार ने अपने जवाब में बताया है कि पिछले चार साल में इस निधि में ग्रीन टैक्स, वाहन कर के अधिभार और स्टाम्प की बिक्री पर लगाए गए अधिभार के रूप में 3197.13 करोड़ रूपए जमा हुए और इसमें से सरकार ने 2285.51 करोड़ खर्च कर दिए। सरकार ने यह पैसा राजस्थान रोडवेज और जयपुर, कोटा, उदयपुर अजमेर आदि शहरों में चलने वाली सिटी बसों के सरकारी निगमों और जयपुर मैट्रो रेल कार्पोरेशन का घाटा पूरा करने, सड़क, पार्क, अम्बेडकर भवन, श्मशान, कब्रिस्तान, आधुनिक शौचालय, ड्रेनेज आदि बनाने और नगरीय निकायों में अन्य विकास कार्य करने पर खर्च कर दी है। इन कामों में पार्को को छोड़ कर एक भी काम ऐसा नहीं है, जो यह बताता पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ हो।
सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जा रहे राजस्थान के शहर
उधर,जमीनी हकीकत यह है कि राजस्थान के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जा रहे हैं। एक स्विस एयर क्वालिटी टेक्नोलॉजी कंपनी आईक्यू एयर की इस वर्ष मार्च की रिपोर्ट बताती है कि राजस्थान का भिवाड़ी दुनिया का तीसरा और देश का पहला सबसे प्रदूषित शहर है। भिवाड़ी अलवर में स्थित है और यहां काफी संख्या में औद्योगिक इकाइयां हैं। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी रिपोर्ट में जयपुर और जोधपुर को सबसे प्रदूषित 15 शहरों में शामिल कर चुका है। विधानसभा में यह सवाल लगाने वाले बीजेपी के उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया ने इस बारे में भी सरकार से जानकारी मांगी थी, लेकिन परिवहन मंत्री बृजेन्द्र ओला ने कहाकि उन्हें इस बारे में भी जानकारी नहीं है।
स्थिति यह है कि जयपुर में ही जयपुर सिटी बस ट्रांसपोर्ट सर्विस की बसें सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाती चलती हैं। सरकार ने इलेक्ट्रोनिक बसो की खरीद के लिए भी कोई गम्भीर प्रयास नहीं किए।
पर्यावरणविद और राजस्थान विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एनवायरमेंटल साइंस के निदेशक प्रो एस.एस. चैहान कहते हैं कि यह सरकार के लिए सोचने वाली बात है कि ग्रीन टैक्स के नाम पर इतना पैसा एकत्र होने के बावजूद उसे सही ढंग से उपयोग नहीं किया जा रहा है और प्रदेश के बड़े शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ता जा रहा है।