इंदौर एसपी, डीएसपी पर हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी, यह इंदौर में पैर रखने योग्य नहीं, जिला प्रशासन की कार्रवाई से भी नाराज

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Jitendra Shrivastava
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इंदौर एसपी, डीएसपी पर हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी, यह इंदौर में पैर रखने योग्य नहीं, जिला प्रशासन की कार्रवाई से भी नाराज

संजय गुप्ता, INDORE. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तीन कॉलोनियों फोनिक्स, सेटेलाइट और कालिंदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के मामले में पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर अब इंदौर हाईकोर्ट बेंच ने तीखी टिप्पणी की है। किसान गजराज सिंह पंवार की जमानत याचिका पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान 25 मिनट बहस चली, इसमें हाईकोर्ट ने लसूडिया थाना क्षेत्र के तत्कालीन एसपी (डीसीपी), डीएसपी (यानि एसीपी), लसूडिया थाने के जांच अधिकारी को लेकर तीखी टिप्पणी करते हए कहा कि इन्हें यह नहीं पता की धारा 420 की जांच कैसे की जाती है? यह इंदौर में पैर रखने योग्य नहीं है। जिला प्रशासन की ओर से तत्कालीन अपर तहसीलदार प्रीति भिस्से द्वारा कराई गई एफआईआर पर भी नाराजगी जाहिर की है और पूछा है कि आखिर यह सब किसके दबाव में हुआ है? 



यह है किसान गजराज सिंह पंवार का मामला 



कैलोद हाला के किसान गजराज सिंह पंवार व अन्य पर 14 फरवरी 2022 को अपर तहसीलदार भिस्से द्वारा यह एफआईआर कराई गई। इसमें था कि कैलोद हाला के सर्वे नंबर 260/2 की 0.743 हेक्टेयर जमीन किसान ने पहले फोनिक्स कंपनी से करार कर उन्हें बेच दी, इसमें 26 प्लॉट आ रहे हैं। बाद में किसान ने यह जमीन दीपक अग्रवाल की एजेंल इन्फ्रा से आम मुख्तयार कर बेच दी। इससे 26 पीड़ितों को नुकसान हुआ और धोखाधड़ी की गई। वहीं किसान का कहना था कि मैंने फिनिक्स, सेटेलाइट कंपनी के कर्ताधर्ताओं से कोई करार ही नहीं किया, उन्होंने गलत हस्ताक्षर कर टीएंडसीपी व अन्य से मंजूरी ले ली। मैंने इस मामले में शिकायतें भी की है, मैं तो खुद पीड़ित हूं और मेरी जमीन भूमाफिया ने हड़प ली है।



हाईकोर्ट ने इस तरह जताई सुनवाई के दौरान नाराजगी



हाईकोर्ट- क्या गजराज ने फिनिक्स से राशि ली है।



अधिवक्ता- इसके कोई दस्तावेज नहीं है, उन्होंने एंजेल इन्फ्रा से करीब 58 लाख लिए हैं, इसके दस्तावेज है। 



हाईकोर्ट- गजराज के हस्ताक्षर की जांच कराई है क्या कि जिन विभागों ने मंजूरी ली, वह हस्ताक्षर गजराज के थे या नहीं? 



शासकीय अधिवक्ता- यह जांच नहीं कराई गई है? 



हाईकोर्ट- फिर ऐसे कैसे एफआईआर करा दी, चार्जशीट भी पेश कर दी आप लोगों ने, जबकि पता है पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट की निगरानी में चल रह है, इसके बाद भी यह गलती। 



शासकीय अधिवक्ता- तहसीलदार ने एफआईआर कराई है। जांच में गड़बड़ी तो हुई है। यह सब केस चल रहे थे पीडितों के इसी दबाव में होगा? 



हाईकोर्ट- किसका दबाव, क्या कोर्ट ने कभी कोई दबाव दिया है, आप लोग किस तरह काम कर रहे हैं। एफआईआर कैसे करते हैं? जांच में क्या किया?



शासकीय अधिवक्ता-  चार सौ बीस की एफआईआर टीआई के पास आवेदन आने पर वह डीएसपी, एसपी के पास जाता है फिर होती है। 



हाईकोर्ट ने पूछा- कौन है एसपी, डीएसपी, जांच अधिकारी?



शासकीय अधिवक्ता- वह सभी ट्रांसफर हो चुके हैं, जांच अधिकारी एसआई बाबूलाल है। 



हाईकोर्ट ने कहा- जिन्हें यही नहीं पता कि 420 एफआईआर की जांच कैसे होती है तो वह इंदौर में पैर रखने योग्य नहीं है। 



हाईकोर्ट कमेटी के सामने अग्रवाल कह चुके पूर्व कलेक्टर ने बनाया था दबाव



इसी तरह इंदौर हाईकोर्ट कमेटी ने चंपू अजमेरा और प्रदीप अग्रवाल केस विवाद में भी केस का निराकरण कमेटी स्तर पर नहीं होने की बात कहते हुए मामले को हाईकोर्ट रैफर कर दिया है? इस सुनवाई के दौरान भी कमेटी के सामने अग्रवाल ने कहा कि मेरी रजिस्टर्ड डीड जिला प्रशासन व अन्य अथॉरिटी ने धमकी देकर मुझसे जमा करा ली। तत्कालीन कलेक्टर और अन्य अथॉरिटी ने धमकी दी थी कि ऐसा नहीं किया तो एफआईआर करा देंगे। यह बात भी कमेटी के सामने ऑन रिकार्ड आ चुकी है।


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