संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर हाईकोर्ट द्वारा कालिंदी गोल्ड, फोनिक्स और सेटेलाइट कॉलोनी के पीड़ितों के निराकरण के लिए बनी रिटायर जज की कमेटी ने फोनिक्स कॉलोनी में प्रदीप अग्रवाल और मैडीकैप्स के प्रमुख रमेश मित्तल से जुड़े 43 प्लॉट के मामले में सुलह होने की संभावना से साफ इंकार कर दिया है। कमेटी ने अपने आदेश में लिख दिया है कि कोई भी पक्षकार सुलह के लिए तैयार नहीं है इसलिए यह मामले हाईकोर्ट को भेजे जाते हैं। इसमें प्रदीप अग्रवाल का 13 प्लॉट और मित्तल के साथ 31 प्लाट के मामले विवादित है। उधर इस केस में अग्रवाल ने लिखित में तत्कालीन इंदौर कलेक्टर (मनीष सिंह) व अन्य अथॉरिटी पर धमकाने, संवैधानिक अधिकार का हनन करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि इन्होंने धमकाकर, अवैधानिक तरीक से फोनिक्स में मेरी जमीन की सेल डीड ली थी।
प्रदीप अग्रवाल ने क्यों लगाए हैं आरोप
फोनिक्स टाउनशिप की जमीन के कुछ सर्वे नंबर विवादित है, प्रदीप अग्रवाल का दावा है कि यह जमीन उसकी है और उसने सीधे किसान से खरीदी है ना कि चंपू अजमेरा से ली है। ऐसे में इस जमीन पर आ रहे 13 प्लॉट उससे लेकर पीड़ितों का देने का अधिकार किसी का नहीं है। इस जमीन के कुछ प्लॉट तो उलटे चंपू ने धोखाधड़ी कर दूसरों को बेच दिए हैं। अग्रवाल ने आरोप लगाए कि यह केस शुरू होने के बाद से ही तत्कालीन इंदौर कलेक्टर व अन्य अथॉरिटी ने लगातार धमकियां दी और कहा कि जमीन सरेंडर करने के लिए कहा, नहीं तो एफआईआर कराने की धमकी तक दी गई। इसके बाद मेरी रजिस्ट्री ले ली गई। जिला प्रशासन की यह कार्रवाई पूरी तरह से मनमानी, अवैधानिक थी। इसे लेकर पत्र भी लिखे, लेकिन प्रशासन ने मना कर दिया जिसके बाद मैंने हाईकोर्ट में रिट पिटीशन दायर की है जिसमें मांग की है कि वह प्रशासन को निर्देश दे कि मुझे मेरे प्लॉट मूल सेल डीड दस्तावेज वापस मिले। उधर इसी केस में चंपू के आरोप थे कि यह 13 प्लॉट का निराकरण अग्रवाल को करना है।
हाईकोर्ट कमेटी ने यह दिया फैसला
इस मामले में हाईकोर्ट कमेटी के चैयरमेन जस्टिस आईएस श्रीवास्तव ने फैसला दिया कि सभी तथ्यों को देखने के बाद इस मुद्दे में कई सवाल खड़े होते हैं जैसे कि क्या वाकई में प्रदीप अग्रवाल ने मनमर्जी से या दबाव में प्लॉट सरेंडर किए हैं? क्या अग्रवाल पीड़ितों के पक्ष में प्लॉट कर सकता है? क्या पाटर्नरशिप फर्म खत्म होने के बाद पार्टनर भी किसी कार्य के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं? यह सभी प्रश्न विधिक महत्व के हैं और हाईकोर्ट का ही यह क्षेत्राधिकार है, लेकिन इन सभी तथ्यों को देखने के बाद मैं पाता हूं कि इस मामले में समझौते की कोई गुंजाइश पक्षकारों के बीच नहीं है इसलिए यह 13 प्लॉट मामले हाईखोर्ट के सामने पुटअप करता हूं।
चंपू और रमेश मित्तल के विवाद में यह लिया फैसला
इसी तरह हाईकोर्ट कमेटी ने फोनिक्स में चंपू अजमेरा और मैडीकैप्स ग्रुप के रमेश मित्तल के बीच 31 प्लॉट को लेकर उठे विवाद में भी कहा कि कोई भी पक्षकार समझौते के लिए तैयार नहीं है, इसलिए कोर्ट द्वारा ही इसमें जिम्मेदारी तय होना चाहिए। इस मामले में चंपू का आरोप था कि 31 प्लॉट की जिम्मेदारी मित्तल की है, इसलिए वह इनका निराकरण नहीं करेगा। वहीं चिराग शाह ने कहा कि फोनिक्स में मेरा कहीं से कहीं तक कोई वास्ता नहीं है और मैं साल 13 सितंबर 2012 को ही बाहर हो चुका था। चंपू ने जवाब दिया आरके इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म के डायरेक्टरों की भी इस केस में निराकरण की जिम्मेदारी है। वहीं मित्तल ने जवाब दिया कि वह आरके इन्फ्रास्ट्रक्चर में पूर्व डायरेक्टर थे और चंपू अजमेरा द्वारा वित्तीय मदद मांगे जाने से इससे जुड़े थे, वित्तीय सुरक्षा के लिए आरके इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाई गई थी, जिसमें राशि लगाई थी। बाद में रितेश उर्फ चंपू ने फोनिक्स डेवकान्स कंपनी बना ली थी। मैं इसमें 30 जून 2009 को बाहर हो गया और इसके बाद सभी जिम्मेदारी भी मेरी खत्म हो गई थी।