BHOPAL. राजस्थान के बांसवाड़ा में भील प्रदेश की मांग को लेकर हुए जमावड़े के बाद पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में हलचल बढ़ गई है। अलग प्रदेश की मांग पर जनजातीय समाज के नेताओं में दो फाड़ नजर आ रही है। जहां समाज के कुछ नेता इसके समर्थन में हैं तो कुछ जनप्रतिनिधि इसे विदेशी और विघटनकारी शक्तियों की साजिश बता रहे हैं। जो भी हो, लेकिन बांसवाड़ा के भानगढ़ में हुई रैली के बाद आदिवासी प्रदेश की मांग प्रदेश में फिर जोर पकड़ रही है।
भील प्रदेश की मांग के इस आंदोलन में मध्यप्रदेश को धुरी क्यों माना जा रहा है? आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेता मध्यप्रदेश पर सबसे ज्यादा फोकस क्यों कर रहे हैं? एक दशक से भी पहले से चल रही भील प्रदेश की मांग अचानक आंदोलन में कैसे बदली और समुदाय के जनप्रतिनिधियों की इसे लेकर क्या सोच है? इसका मध्यप्रदेश सहित राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा 'द सूत्र' ने इसे लेकर पड़ताल की तो कई हैरान वाले तथ्य सामने आए हैं।
सवाल: भील प्रदेश की मांग को लेकर राजस्थान के बांसवाड़ा में हुई आदिवासी समुदाय की रैली के बाद यह मामला क्यों चर्चा में है?
पहले बताते हैं भील आदिवासी समाज की प्रदेश और देश में क्या स्थिति है। दरअसल, भील मूल रूप से जंगलों में रहने वाली जनजाति है। यह मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में निवासरत है। मध्यप्रदेश में इस जनजाति की संख्या करीब 60 लाख है। वहीं राजस्थान में 28 लाख, महाराष्ट्र में 18 लाख और गुजरात में 35 लाख भील आदिवासी हैं। यानी जनसंख्या के लिहाज से भील आदिवासी सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में हैं। पश्चिमी मध्यप्रदेश के आलीराजपुर और झाबुआ के अलावा रतलाम, धार, बड़वानी, खंडवा, खरगोन जिले भील आबादी बाहुल्य हैं। वहीं राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और चित्तौड़गढ़ और महाराष्ट्र में जलगांव, नासिक, ठाणे, नंदूरबाग, धुलिया और पालघर में भील सबसे ज्यादा संख्या में रहते हैं।
मध्य प्रदेश में भील जनजाति की आबादी 1.42 करोड़
यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात प्रदेशों में भील समुदाय की आबादी 1 करोड़ 42 लाख से ज्यादा है। बाकी पूरे देश में भी भील आदिवासी लाखों की संख्या में बिखरे हुए हैं। सबसे ज्यादा आबादी होने की वजह से ही भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और आदिवासी परिवार के आव्हान पर बांसवाड़ा में समुदाय की रैली निकाली गई थी। समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के भील आबादी बाहुल्य जिलों को जोड़कर अलग राज्य की मांग उठाई है। इस रैली के बाद राजनीतिक दलों से जुड़े भील समुदाय के जनप्रतिनिधियों लोगों में भी मतभेद सामने आ गए हैं। भाजपा नेता और थांदला के पूर्व विधायक कलसिंह भांबर ने इसे विदेशी ताकतों की साजिश बताया है तो सैलाना से निर्दलीय आदिवासी विधायक कमलेश्वर डोडियार भील प्रदेश की मांग का पुरजोर पक्ष ले रहे हैं। वहीं झाबुआ से कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने भील प्रदेश की मांग या विरोध में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है।
एक दशक पुरानी है मांग
अब बात करते हैं अलग भील प्रदेश की मांग और अचानक उठ खड़े हुए इस आंदोलन की। भील प्रदेश की मांग एक दशक से भी पुरानी है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात से सीमावर्ती जिलों में बसे भील-भिलाला समुदाय के लोग यह मांग उठाते रहे हैं। आदिवासी समुदाय का संगठन जयस भी इस मांग के समर्थन में कई बार आंदोलन-रैलियां कर चुका है। सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार ने फरवरी माह में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा के सत्र में भी भील प्रदेश की मांग और सरकार की कार्रवाई का मामला उठाया था। अब इस समुदाय का अचानक एकजुट होना और राजस्थान के बांसवाड़ा से भील प्रदेश की मांग बुलंद करने का राजनीति पर क्या असर होगा यह तो आने वाले दिनों में ही नजर आएगा। फिलहाल आदिवासी समुदाय के सामाजिक संगठन भी इस मांग के समर्थन में उतर आए हैं।
क्या कहते हैं समुदाय के जनप्रतिनिधि ?
कुछ संगठन जनजाति समाज को गुमराह करने के लिए भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं। भील प्रदेश कीमांग आज से नहीं जबसे मिशनरी इस अंचल में आए हैं तबसे शुरू हुई है। ये मांग उन्होंने रखी थी। साऊदी अरब के लोग नारा लगा रहे हैं जय जोहार का नारा है भारत देश हमारा है। ये किसका षडयंत्र है। आज कहा जा रहा है हमारी बहन बेटियों को की मंगलसूत्र पहनना, मांग भरना हमारा रिवाज नहीं है। ये रिवाज युगों से चले आ रहे हैं। आदिवासी समुदाय युगों से हिंदू पद्धति, परम्पराओं से पूजा पाठ करता आ रहा है। हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज उससे जुड़े हैं।
भानू भूरिया, बीजेपी नेता झाबुआ
मांग तो जायज हैं, लेकिन जातिगत तौर पर देखा जाए तो यह देश को तोड़ने वाला होगा। क्षेत्रीयता और भाषा के आधार पर हो तो ऐसा होना चाहिए। भील प्रदेश की मांग के आंदोलन में कुछ लोग तो ठीक हैं, लेकिन अभी ऐसा नहीं लगता कि भील प्रदेश की आवश्यकता है।
विक्रांत भूरिया, कांग्रेस विधायक, झाबुआ
मुझे अभी इस आंदोलन की विस्तृत जानकारी नहीं है। अलग भील प्रदेश को लेकर जो मूवमेंट शुरू हुआ है उस पर मैं फिलहाल अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता
कमलेश्वर डोडियार, निर्दलीय विधायक, सैलाना
बीते 12 साल से पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं। मैंने इस संबंध में फरवरी में विधानसभा सत्र में प्रश्न लगाकर जानकारी चाही कि भील प्रदेश गठन को लेकर क्या कार्रवाई की जा रही है। इस संबंध में जनजातीय कार्य मंत्रालय ने जानकारी इकट्ठा करने की सफाई दी गई। वहीं मुख्यमंत्री ने नए राज्य गठन की कार्रवाई का अधिकार केंद्र सरकार के पास होने का जबाव देकर पल्ला झाड़ लिया था।
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