NTA के प्रमुख प्रदीप जोशी के MPPSC चेयरमैन रहते हुए प्रोफेसर भर्ती कांड के बड़े नाम- डॉ. मेहरा पीएससी चेयरमैन, वर्मा अभी कुलपति

इस नियुक्ति नोटशीट को लेकर द सूत्र 17 जून को ही खुलासा कर चुका है कि इसमें उनके एबीवीपी के साथ ही बीजेपी नेताओं के संबंधों का हवाला दिया गया था। इसी राजनीतिक रसूख के चलते उन्हें नियुक्ति दी गई थी।

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Sanjay gupta
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इंदौर। विवादित NEET कराने वाली एजेंसी NAT (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी National Testing Agency ) के चेयरपर्सन डॉ. प्रदीप कुमार जोशी मप्र लोक सेवा आयोग (MPPSC) में जून 2006 से सितंबर 2011 तक चेयरमैन रह चुके हैं। यह उनकी पहली बड़ी नियुक्ति थी। इस नियुक्ति नोटशीट को लेकर द सूत्र 17 जून को ही खुलासा कर चुका है कि इसमें उनके एबीवीपी के साथ ही बीजेपी नेताओं के संबंधों का हवाला दिया गया था। इसी राजनीतिक रसूख के चलते उन्हें नियुक्ति दी गई थी। इसके बाद वह छत्तीसगढ़ पीएससी चेयरमैन बने और फिर यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) और इसके बाद उन्हें एनटीए की अहम जिम्मेदारी मिली। 

प्रोफेसर भर्ती कांड का जिन्न बाहर आया

पीएससी मप्र में रहते हुए उनके कार्यकाल का सबसे बड़ा कांड प्रोफेसर भर्ती घोटाला आज फिर चर्चाओं में हैं। द सूत्र ने इसकी पूरी पड़ताल की तो इसमें चौंकाने वाले बड़े नाम सामने आए। साल 2009 में करीब 350 पदों के लिए यह भर्ती निकाली गई थी। नियुक्ति के बाद इसमें चयनितों के पात्रता सर्टिफिकेट और पीएचडी व टीचिंग अनुभव के बीच में पर्याप्त अंतर नहीं होने संबंधी कई आरोप लगे। मामला हाईकोर्ट तक गया और शासन की जांच कमेटी बनी, इसी जांच कमेटी ने माना कि यह भारी अनियमितता है और इसकी जांच एसटीएफ, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू जैसी जांच एजेंसी कराना चाहिए। द सूत्र ने कई सारे दस्तावेज निकाले और जांच की इस सूची में उस समय चयनितों की सूची में कई बड़े नाम मिले। 

उच्च शिक्षा आयुक्त की नोटशीट जिसमें जांच की बात

यह है वह बडे नाम

  • डॉ. राजेश लाल मेहरा- हिंदी विषय के लिए चयनित हुए और इस समय यह पीएससी मप्र के चेयरमैन है। साल 2017 से 2021 तक वह पीएससी में सदस्य बने और इसके बाद वह चेयरमैन बने।
  • डॉ राजेश वर्मा- यह जीएसीसी इंदौर के प्रोफेसर थे और छह महीने पहले यह जबलपुर विश्वविद्यालय रानी दुर्गावती के कुलपति नियुक्त हुए हैं। 
  • ममता रायकवार- यह पीएससी मप्र के सदस्य चंद्रशेखर रायकवार (कांग्रेस के एक बड़े नेता के बहुत ही करीबी) की पत्नी है। रायकवार यूनिवर्सिटी कार्यपरिसद के सदस्य थे और अब पीएससी में सदस्य है। पत्नी एक सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर है।
  • प्रेरणा ठाकुर- यह पूर्व मंत्री उषा ठाकुर की बहन है। यह इंदौर में ही जीडीसी कॉलेज में प्रोफेसर पद पर है। 
  • आशीष पाठक- यह भी प्रोफेसर है, इन्होंने अपनी पीएचडी व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी पंकज त्रिवेदी के अंडर की थी। 
  • दिनेश दवे- यह भी सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर है और सरकारी नियम कि तीन बच्चे होने पर शासकीय नौकरी नहीं दी जाएगी. इस नियम के दायरे में आने के बाद भी प्रोफेसर के लिए चयनित किए गए थे। 
  • अंकिता बोहरे- यह जबलपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति एस शर्मा की बेटी है। शर्मा के कार्यकाल में ही प्रदीप जोशी प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। फिर जोशी के पीएससी चेयरमैन रहते बोहरे प्रोफेसर बनी। इस दौरान मामला हाईकोर्ट में गया और हाईकोर्ट ने इनकी नियुक्ति गलत पाई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर हाईकोर्ट का आदेश स्टे कर दिया कि कमेटी को इनके सर्टिफिकेट जांचना था, उनकी गलती थी, इस कारण से नियुक्ति रद्द नहीं की जा सकती है। 
  • पवन शर्मा- यह इस परीक्षा में ट़ॉपर थे, लेकिन सारे सर्टिफिकेट नकली थी, एक शिकायत थी कि इन्होंने एक रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर से ही फर्जी सर्टिफिकेट बना लिए थे, मामला उच्च स्तर पर पहुंचा और कमलनाथ सरकार के समय बात केस दर्ज कराने तक आ गई थी, इसकी भनक इन्हें भी लगी और वह मेरठ यूनिवर्सिटी में पद निकलने पर वहां निकल गए और बच गए। 

ये हाइकोर्ट में शासन द्वारा बताई शर्त की पीएचडी के बाद 10 साल टीचिंग अनुभव

क्यों है इन नियुक्तियों को लेकर विवाद

1.पहला कारण है कि कई अभ्यर्थियों को जो दस साल के टीचिंग अनुभव के सर्टिफिकेट होने चाहिए थे, वह सही नहीं थे। अधिकांश ने प्राइवेट कॉलेज के अनुभव लगा दिए, लेकिन जांच कमेटी ने पाया कि इन्हें वेतन मिलने आदि के कोई सबूत ही नहीं है। इन सभी सर्टिफिकेट को पीएससी ने मान्य किया। लेकिन इसमें भी दो तरफा काम हुआ जिनके मान्य करने थे वह किए, जिन्हें नहीं लेना था उन्हें खारिज किया। स्क्रूटनी मनमाने तरीके से हुई।
2. दूसरा विवाद है कि विज्ञापन शर्तों में पीएचडी और टीचिंग अनुभव दस साल का मांगा लेकिन जब इसी आधार पर कई लोगों ने जिनके आवेदन निरस्त किए हाईकोर्ट में याचिका लगाई तो खुद उच्च शिक्षा ने शपथपत्र दिया कि पीएचडी होने के बाद दस साल का अनुभव होना चाहिए। यह नहीं था इसलिए हमने खारिज किया। लेकिन जब चयनित उम्मीदवारों के पीएचडी और फिर 10 साल के टीचिंग अनुभव को देखा जाता है कि 100 से ज्यादा उम्मीदवार थे जो इस दायरे में फिट ही नहीं थे। यानि यह सभी नियुक्ति नियमों के परे जाकर की गई। 

Psc भरती की शर्त

इन बड़े नाम पर क्यों उठ रही उंगलियां

  • प्रोफेसर मेहरा- हिंदी विषय में चयनित। साल 1996 में शासकीय कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त थे। पीएचडी सिंतबर 2006 में हुई। यानी साल 2009 में भर्ती निकलते समय पीएचडी के बाद 10 साल का अनुभव नहीं था, लेकिन यदि विज्ञापन शर्तों को देखें तो कुल दस साल का शासकीय क़ॉलेज में टीचिंग का अनुभव था लेकिन उच्च शिक्षा विभाग के ही अन्य केस में दिए शपथपत्र के अनुसार पीएचडी के बाद 10 साल का अनुभव होना चाहिए, इस हिसाब से नियुक्ति उचित नहीं। राजेश वर्मा- कॉमर्स में चयनित। इनकी पीएचडी 2006 में पुरी हुई। 
  • आशीष पाठक- कामर्स । इनकी पीएचडी भी साल 2006 में हुई
  • दिनेश दवे- कामर्स। जब ज्वाइनिंग हुई तो इनके मानकों से परे तीन बच्चे थे। यानी नियुक्ति हो ही नहीं सकती थी। 
  • प्रेरणा ठाकुर- इतिहास विषय में चयनित हुई थी। इनकी पीएचडी 2005 में हुई। यानी नियुक्ति विज्ञापन 2009 के समय उनका टीचिंग अनुभव चार साल का था। 
  • ममता चंद्रशेखर रायकवार- पॉलिटिकस साइंस में चयनित। इनकी पीएचडी साल 2003 में पूरी हुई। यानी की पीएचडी के बाद 10 साल के अनुभव का दायरे में नहीं है। भर्ती के समय पीएचडी के बाद 6 साल का ही अनुभव है।

ये व्हीसल ब्लोवर पंकज प्रजापति जिन्होंने इस्सू उठाया था

जांच कमेटी ने क्या पाया था?

व्हीसल ब्लोहर पंकज प्रजापति ने इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ी। आरटीआई में दस्तावेज निकाले, हाईकोर्ट में पीआईएल तक लगाई। इसके बाद तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनी, जिसमें 54 नियुक्ति मानकों पर खरी नहीं पाई गई। हालांकि विविध दस्तावेज के आधार पर प्रजापति ने 104 नियुक्तियां गलत बताई और इसके खिलाफ लगातार सरकार को पत्र लिखे और प्रेंजेटेंशन दिए। 

खुद उच्च शिक्षा आयुक्त की रिपोर्ट में यह था, उन्हें ही हटा दिया

आरटीआई से तत्कालीन उच्च शिक्षा आयुक्त आईएएस उमाकांत उमराव की एक नोटशीट भी है। जिसमें उन्होंने साफ लिखा कि- कई उम्मीदवारों के सर्टिफिकेट संदेहास्पद है। इनकी जांच सही तरह से नहीं कराई गई है। प्रोफेसर पद सचिव स्तर का पद है। इसकी प्रक्रिया सुचितापूर्ण तरीके से कराए जाने की उम्मीद की जाती है। ऐसे में जिन चयनित प्रोफेसर का पूरा अनुभव शासकीय संस्था का नियमित अध्ययन का नहीं है, उन सभी प्रकरणों को उच्च स्तरीय संस्था से जांच की आवश्यकता है। उचित हो तो जांच स्वतंत्र व सक्षम जांच एजेंसी जैसे एसटीएफ, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू से कराए जान पर विचार हो। लेकिन इस रिपोर्ट के कुछ दिन बाद उन्हें ही इस प्रभार से हटा दिया गया था। 

हाईकोर्ट में चले केस में यह लगाए गए थे आऱोप

साल 2009-10 की प्रोफेसर भर्ती परीक्षा के दौरान अपात्रों को चयन करने पर जोशी पर गंभीर आरोप लगे थे। इस दौरान संवादक्रांति मंच के प्रमुख और व्हीसल ब्लोअर पंकज प्रजापति ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की थी। इस याचिका में मप्र शासन, पीएससी, तत्कालीन मंत्री अर्चना चिटनीस के साथ ही डॉ. प्रदीप जोशी को भी पक्षकार बनाया था। इसमें जोशी को लेकर आरोप लगाए गए थे कि- उन्होंने प्रोफेसर भर्ती के दौरान 89 लोगों का गलत चयन किया, इसके लिए उन्हें अपने चेयरमै पद के अधिकार और पद का दुरूपयोग किया। 

भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए गए

साथ ही एक उम्मीदवार जिसने चयन सूची में ट़ॉप किया था (पवन कुमार शर्मा) को लेकर तो और भी गंभीर आरोप लगे कि उसे बिना किसी योग्य पात्रता सर्टिफिकेट के ही चयनित किया गया और इसके लिए प्रोफेसर प्रदीप जोशी द्वारा भ्रष्टाचार किया गया है। यह पूरी तरह से अवैधानिक चयन और नियुक्ति थी। साथ ही कहा गया कि प्रदीप जोशी द्वारा यह फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद भी कि कई उम्मीदवार मानकों के मुताबिक नहीं है, उन्होंने इसे नहीं रोका और अपनी जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व को निभाने में असफल हुए। 

प्रेरणा ठाकुर का रिकॉर्ड

मेहरा का रिकॉर्ड

ममता रायकवार रिकॉर्ड

हाईकोर्ट ने यह दिया था आदेश

प्रोफेसर भर्ती को लेकर दो याचिकाएं लगी, दोनों में प्रदीप जोशी को पक्षकार बनाया गया था। एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि संबंधित याचिकाकर्ता पीएससी के सामने जाकर इसका रिप्रेंजेंटशन देकर यह बात रखें। व्हीसल ब्लोअर ने यह पक्ष रखा, जांच कमेटी भी बनी लेकिन मामला दबा दिया गया। वहीं एक अन्य पीआईएल को इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि याचिकाकर्ता ने जिन 89 नियुक्ति को लेकर मामला उठाया था उन्हें पार्टी नहीं बनाया साथ ही हाईकोर्ट ने पाया कि याचिका में पक्षकार प्रदीप जोशी और अर्चना चिटनीस के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण इरादे से एसा किया गया, इसके लिए उचित दलील नहीं दे पाया। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई। 

सीएम के सचिव इकबाल सिंह बैंस के समय चली नोटशीट

प्रदीप जोशी मूल रूप से यूपी के हैं। उन्हें पहली बड़ी नियुक्ति साल 2006 में मप्र लोक सेवा आयोग के चेयरमैन पद पर मिली थी, यहीं से वह फिर आगे बढ़ते चले गए। यह नियुक्ति की नोटशीट तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के सचिव रहे इकबाल सिंह बैंस द्वारा चली थी। उन्हें पुलिस महानिरीक्षक कानून व्यवस्था व सुरक्षा एके सोनी द्वारा जोशी और शोभा पाटनकर दोनों की रिपोर्ट भेजी गई थी।
 
इसमें जोशी को लेकर लिखा गया कि-वह अभी रानी दुर्गावती विश्वविद्याल में पदस्थ है। इनका संबंध बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी व पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से भी होना ज्ञात हुआ है। उनका कोई आपराधिक रिकार्ड होना नहीं पाया गया है। इनका चरित्र व छवि अच्छी है। (इसके साथ ही एक कागज पर भी लिखा हुआ फाइल में चला जिसमें है कि प्रदीप जोशी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष रहे हैं, वर्तमान में रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है)

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NTA के प्रमुख प्रदीप जोशी सचिव इकबाल सिंह बैंस प्रोफेसर भर्ती कांड डॉ. मेहरा पीएससी चेयरमैन प्रोफेसर भर्ती कांड के बड़े नाम