क्षमा वीरस्य भूषणं: लोकतंत्र को नए दौर में पहुंचाएगी, पीएम नरेंद्र मोदी की सार्वजनिक क्षमा याचना

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क्षमा वीरस्य भूषणं: लोकतंत्र को नए दौर में पहुंचाएगी, पीएम नरेंद्र मोदी की सार्वजनिक क्षमा याचना

सरयुसूत मिश्र। भारतीय धर्म, संस्कृति और संस्कार, क्षमा की आधारशिला पर टिके हुए हैं। क्षमा मांगना और करना हिंदुत्व की शान है। जिस हिंदुत्व पर सेकुलरवादी छींटाकशी करते हैं, वही हिंदुत्व भारत की आन— बान और शान है। हमारे सभी अवतारों के जीवन संदेशों और धर्म ग्रंथों में क्षमा याचना को जीवन पद्धति माना गया है, भारत के बाहर के धर्मों में क्षमा मांगने का हिंदुत्व जैसा स्वरूप नहीं है। कृषि कानूनों की वापसी के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देश से क्षमा याचना से भारतीय संस्कृति की क्षमाशीलता और लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था चर्चा का विषय बन गई है...

क्षमा मांगना और क्षमा देना भारतीय संस्कृति का मूल

भारतीय संस्कृति में पूजा-पाठ, यज्ञ त्योहार, आध्यात्मिक आयोजन को पूर्ण तभी माना जाता है, जब हम ईश्वर से क्षमा याचना करते हैं। क्षमा याचना मंत्र का विधान है, पूजा  से जुड़ी सभी क्रियाओं के लिए जैसे मंत्र हैं, वैसे ही क्षमा याचना मंत्र है। इस मंत्र का अर्थ यह है कि “हे प्रभु ना मैं आपको बुलाना जानता हूं और ना ही विदा करना, पूजा करना भी नहीं जानता, कृपा कर मुझे क्षमा करें, मुझे ना मंत्र याद है ना क्रिया, भक्ति करना भी नहीं जानता, यथासंभव पूजा कर रहा हूं, कृपया मेरी भूलों को क्षमा करें और इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें”। रामायण में भगवान राम का चरित्र हो या भगवान कृष्ण का गीता संदेश, सभी भारतीय धर्म ग्रंथों में क्षमा याचना और क्षमाशीलता को जीवन पद्धति का दैवीय गुण निरूपित किया गया है। हमारे शास्त्रों में धर्म के जो 10 लक्षण बताए गए हैं, उनमें धृति अर्थात धैर्य के बाद क्षमा का ही स्थान है। “क्षमा वीरस्य  भूषणं” भारतीय संस्कृति ही है। हमारी संस्कृति में “मनसा, वाचा, कर्मणा” की गई गलतियों में क्षमा का विधान है। “वाचा, कर्मणा” में तो गलती से प्रभावित हुए व्यक्ति से क्षमा मांगी जाती है, मनसा की गई गलती में तो स्वयं से क्षमा मांगने का धार्मिक विधान है। हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में भी क्षमा मांगने और करने का उत्सव मनाया जाता है। होली का पवित्र त्योहार क्षमा पर्व जैसा ही उत्सव होता है। त्योहारों पर क्षमा की संस्कृति के दर्शन भारतीयता और हिंदुत्व की ही परंपरा है। भारत में जन्मे जैन धर्म में तो क्षमा याचना एक अनिवार्य कर्तव्य माना गया है। पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन को क्षमा वाणी दिवस के रूप में मनाया जाता है । इस दिन जैन धर्म के अनुयायी समस्त प्राणियों से जाने अनजाने किए गए पापों और गलतियों के लिए स्पष्ट रूप से क्षमा याचना करते हैं और स्वयं भी उनको क्षमा करते हैं। यही संस्कृति और भावना भारत को दुनिया में महान बनाती है।

पृथ्वीराज का उदाहरण दुनिया में अकेला

इसी प्रकार बौद्ध पंथ में भी क्षमा को साधना का एक अनिवार्य अंग बताया गया है। इससे बुराइयां और कुविचार साधक से दूर होते हैं। क्षमा अहंकार को तोड़ती है। सिख धर्म भी क्षमा के महत्व को प्रतिपादित करता है। गुरु नानक देव के गुरु पर्व  पर लोकतांत्रिक क्षमा याचना सांस्कृतिक स्वरूप में हमें मजबूती प्रदान करेगी। भारतीय इतिहास में क्षमा के दुरुपयोग के अनेक उदाहरण मिलते हैं। सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार हमलावर मोहम्मद गौरी को हराकर क्षमा किया, लेकिन जब उसने एक बार पृथ्वीराज को हरा दिया तो बिल्कुल क्षमा नहीं किया, बल्कि उनकी आंखें फोड़ डाली और अपमानित किया। भारत की पॉलीटिकल गवर्नेंस में सिस्टम के रियल एग्जीक्यूटिव आईएएस अफसरों की, मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी का ध्येय वाक्य “शीलम परम भूषणम्” है। इसके पीछे भी शासकों में शील करुणा और क्षमा की  भावना को सर्वोपरि माना गया है। प्रधानमंत्री की क्षमा-याचना को यू-टर्न और उनकी हार के रूप में निरूपित किया जा रहा है। क्षमा मांगना और करना तो हमारे धर्म और संस्कृति की धर्म-ध्वजा है। ऐसा जीवन आचरण हिंदुत्व को आत्मसात और जीने वाला व्यक्ति ही कर सकता है। हर मामलों जैसे भारतीय संस्कृति के समस्त भूषणों को कमतर करने की कथित सेक्युलरवादी सोच ने क्षमा याचना को भी सॉरी बना दिया है। Sorry कहने में वह भाव नहीं आता जो क्षमा याचना की भारतीय संस्कृति का है। हिंदुत्ववादियों को क्षमा याचना के मूल तत्व के अनुरूप आचरण और जीवन पद्धति पर ही चलना चाहिए। देश में पहली बार नरेंद्र मोदी द्वारा देश से सार्वजनिक क्षमा याचना की ऐतिहासिक शुरुआत, लोकतंत्र को नए दौर में पहुंचाएगी। लोकतंत्र में क्षमा याचना की प्राण प्रतिष्ठा शासन में भारतीय संस्कृति और मूल्यों को मजबूत और स्थाई करेगी। हिंदुत्व जीवन पद्धति शासन व्यवस्था के गौरव और गरिमा का नया अध्याय रचेगी। प्रधानमंत्री की क्षमा याचना और किसानों की क्षमा-शीलता को हार जीत के नजरिए से देखना भारतीय संस्कृति कैसे हो सकती है?

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