किसी चमत्कार से कम नहीं है महाकाल के गर्भगृह में चांदी से बना रुद्रयंत्र 

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Praveen Sharma
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किसी चमत्कार से कम नहीं है महाकाल  के गर्भगृह में चांदी से बना रुद्रयंत्र 

किसी भी मंदिर में उसमें विराजित भगवान के विग्रह के अतिरिक्‍त और भी बहुत सारे पूरक स्‍तुत्‍य उपकरण होते हैं। जैसे वैष्‍णव मंदिरों में श्रीयंत्र का महत्‍व होता है वैसे ही शैव मंदिरों में रुद्रयंत्र का होता है। रुद्रयंत्र के निर्माण का कार्य प्रारंभ हो गया था, परंतु मेहराब पर लगने वाले अतिरिक्‍त मंत्रों के कारण अब इसमें और अधिक चांदी की आवश्‍यकता थी। चांदी के लिए दानदाताओं से किए व आग्रह के कारण कुछ मात्रा में चांदी की व्‍यवस्‍था भी हुई परंतु वह पर्याप्‍त नहीं थी। हमने रुद्रयंत्र के लिए आरंभ में चांदी देने वाले दानदाता मानसिंहका जी से यह अनुरोध किया कि वे इस निर्माण में लगने वाली अतिरिक्‍त चांदी की व्‍यवस्‍था भी कर सकें तो अच्‍छा रहेगा। मानसिंहका ने विनम्रतापूर्वक कहा कि यंत्र और मंत्र में लगने वाली बनवाई की रकम यानी कारीगर का खर्च वे पूरा उठाएंगे, लेकिन उनके हिसाब से इस वर्ष जो भी राशि दान में दी जाना थी वह पूरी हो गयी है और अब अगले वर्ष ही इस बारे में सोचा जा सकता है।





ये थोड़ी चिंताजनक स्थिति थी, क्‍योंकि मेहराब पर लिखे जाने वाले मंत्रों के अतिरिक्‍त निर्माण के कार्य को टाला नहीं जा सकता था। समय.समय पर अंकित किए गए मंत्रों की समिति से पुष्टि हो जाने के पश्‍चात रुद्रयंत्र ने अब तक पूर्ण आकार ले लिया था। माणिकचंद्र पूरे रुद्रयंत्र को लेकर उज्‍जैन मंदिर में पधारे और जब उसे नीचे ओंकारेश्‍वर मंदिर के सामने गलियारे में फैलाया गया तो चांदी की धवल चमक से हम सब उद्दीप्त हो उठे। हमने निश्‍चय किया कि हम जनता से और चांदी मागेंगे तथा मेहराब पर लगने वाले मंत्रों के साथ ही रूद्रयंत्र की स्‍थापना की जाएगी। मंदिर के पंडे-पुजारियों को जनसहयोग जुटाने के लिए कहा गया और उसके आशाजनक परिणाम भी आए। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में चांदी जमा होने लगी। आम जनता भी अपनी.अपनी हैसियत से दान कर रही थी, लेकिन अब समय नजदीक आ रहा था और पूर्ति की चिंता सताने लगी थी।





जब सेठ का अहम देख मुझे गुस्सा आ गया





उन्‍हीं दिनों सुप्रीम कोर्ट में किसी शासकीय कार्य से मेरा दिल्‍ली जाना हुआ। मंदिर के एक पुजारी ने मुझसे कहा कि दिल्‍ली में कनाट प्‍लेस में एक सेठ का आफिस है यदि आप उधर आ जाओ तो कुछ चांदी अपन मंदिर के लिए ले सकेंगे, मैंने कहा कोई हर्ज नहीं है। अपना सरकारी काम निपटाने के बाद मैंने पुजारी जी को फोन किया और कनाट प्‍लेस में निश्चित की गई जगह पर हम दोनों मिल गए। पुजारी जी मुझे साथ लेकर सेठ के दफ्तर में गए जो कनाट प्‍लेस में ऊपरी मंजिल पर स्थित था। मैं और पुजारी जी सेठ के सामने बैठे, औपचारिक अभिवादन हुआ, इसके बाद सेठ ने मुझसे कहा हाँ बताइए आपके महाकाल को कितनी चांदी चाहिए? पता नहीं क्‍यों इन शब्‍दों को सुनकर ही मेरे तन.बदन में आग लग गई। मैं गुस्‍से में उठा और मैंने कहा महाकाल को तो कुछ भी नहीं चाहिए तुमको यदि कुछ देना हो तो मंदिर में ही आ जाना और बिना कुछ आगे बोले मैं दफ्तर की सीढ़ियां उतरते नीचे चल पड़ा। पुजारी जी अवाक मेरे पीछे पीछे लपक लिए। नीचे आकर मुझसे बोले आप क्‍यों गुस्‍सा हो गए ये बड़ा सेठ था। अपने को अच्‍छी चांदी मिल सकती थी मैंने कहा मुझे इस तरह के दानदाताओं की जरूरत नहीं है। मैं वापस उज्‍जैन जाने के लिए अपनी ट्रेन पर सवार हो गया, पर रास्‍ते भर सोचता रहा कि कहीं गलती तो नहीं कर दी, अपने गुस्‍से में मंदिर का काम तो नही बिगाड़ लिया, पर अब क्‍या कर सकते थे। जो होना था वो हो गया था। मेहराबों में लगने वाले मंत्रों की परत बनना आरम्‍भ हो गई थी। इसलिए इस हेतु चांदी देना अब जरूरी हो गया था। मैंने मंदिर में हिसाब लिया और पाया कि पच्‍चीस किलो चांदी कम पड़ रही थी और समय बीत रहा था। इसी बीच महाशिवरात्रि पर्व आ गया।





शर्त पर दिया दान हमें हमने लौटा दिया





उन दिनों हम लोगों ने ये तय किया था हमारे जो विशिष्‍ट दानदाता हैं उनको हम ऐसे विशेष अवसरों पर जिसमें शिवरात्रि और श्रावण मास के सोमवार शामिल थे दर्शन के लिए पास दिया करेंगे। इस व्‍यवस्‍था के पीछे यह उद्देश्‍य था कि जो लोग मंदिर के विकास कार्यों में इतना सहयोग दे रहे हैं, वे दान करने के बदले यद्यपि कुछ चाहते तो नहीं हैं, पर फिर भी हम उनकी उपस्थिति को यदि सम्‍मान देंगे तो वे और अच्‍छे से हमें मंदिर के कामों में अपना सहयोग देंगे। इसी योजना के तहत मानसिंहका भी हमारे विशेष आमंत्रित अतिथि थे। इस बार शिवरात्रि पर भस्‍मारती करने वे पधारे। शिवरात्रि में सामान्‍यतः चार बजे सुबह होने वाली भस्‍मारती सुबह दो बजे से प्रारम्‍भ होती थी। उस दिन भस्‍मारती के पश्‍चात मानसिंहका जब बाहर आए तो भगवान की शरण से निकलकर कुछ अधिक ही भावुक हो उठे। उन्‍होंने मुझे एक तरफ ले जाकर कहा कि शर्मा साहब मैं रूद्रयंत्र में लगने वाली पूरी चाँदी देने को तैयार हूं, पर मेरी एक शर्त है कि मंत्रों में लगने वाली पूरी चांदी मैं ही दूंगा। मुझे एक साथ प्रसन्‍नता और निराशा दोनों हुई। मैंने कहा कि कुछ चांदी तो हम दान में ले चुके हैं, अब तो केवल पच्‍चीस किलो चांदी की आवश्‍यकता है। ये आप दे दो तो हमारी पूर्ति हो जाएगी। मानसिंहका जी ने कहा कि उनकी इच्‍छा है कि वे अगर देते है तो पूरी ही चांदी देंगे, वरना नहीं। नैतिक आधार पर हम इस प्रस्‍ताव को स्‍वीकार नहीं कर सकते थे, लिहाजा मैंने उन्‍हें मना कर दिया। इस तरह उस सुबह आने वाला चांदी का दान भी आते-आते रह गया।





जब स्वामी जी बोले- मेरे पास कहां है सोना-चांदी





खोज अब भी बदस्‍तूर जारी थी, इसी बीच एक अनोखी घटना हुई। श्री महाकालेश्‍वर मंदिर में प्रसिद्ध संत स्‍वामी विश्‍वात्‍मानंद महाराज महामंडलेश्‍वर विरक्‍त मंडल पधारे। स्‍वामी जी पैदल चला करते थे और उनके भक्‍तों की भी अच्‍छी खासी संख्‍या हुआ करती थी। उन दिनों स्‍वामी जी आकर महाकालेश्‍वर मंदिर के पीछे स्थित मंदिर की धर्मशाला में रूके थे। मैंने उनके बेड़े में शामिल मुख्‍य प्रबंधक से स्‍वामीजी से मिलने की इच्‍छा जताई। चूँकि मैं मंदिर का प्रशासक भी था, इसलिए उन्‍होंने तुरंत मिलने की अनुमति दे दी। उस दिन रविवार था, सुबह-सुबह मैं उज्जैन के कलेक्टर विनोद सेमवाल के साथ धर्मशाला पहुँचा और देखा तो अपने कमरे में स्‍वामी जी अकेले थे। हम दोनों जाकर स्‍वामी जी के पैरों के पास बैठ गये। स्‍वामीजी ने मुझसे पूछा बताइए क्‍या चाहते हैं। मैंने कहा स्‍वामीजी मैं देख रहा हूँ कि कल से सैकड़ों भक्‍त आपसे आशीर्वाद लेने आ रहे हैं, लेकिन मैं आपसे कुछ और ही चाहता हूँ। स्‍वामीजी ने प्रश्‍नवाचक निगाहों से मेरी ओर देखते हुए कहा कि बोलो क्‍या चाहते हो? मैंने उन्‍हें रूद्रयंत्र और मेहराब में लगने वाले चांदी के मंत्रों के बारे में संक्षिप्‍त में बताया और निवेदन किया कि मुझे पच्‍चीस किलो चांदी कम पड़ रही है, मैं आपसे यह पच्‍चीस किलो चांदी चाहता हूं। मेरी बात सुनकर वह हँसने लगे, कहने लगे और बोले साधु के पास कहां सोना-चांदी है, तुम क्‍या समझ के मुझसे यह मांग रहे हो, मैंने प्रणाम करते हुए कहा कि स्‍वामी जी आपके बड़े-बड़े लोग शिष्‍य हैं यदि आप आज्ञा करेंगे तो कुछ भी संभव है। स्‍वामी जी ने कहा कि नहीं भाई मैं किससे बोलूँ । मैंने कहा कि जैसा आप उचित समझें, मेरे जो मन में आया वो निवेदन मैं कर चुका हूं, बस इतना कहकर हम उठे और उन्‍हें प्रणाम कर वापस घर चल दिए। रास्‍ते में यही सोचता रहा कि भगवान जाने कितने दिन और लगेंगे अभी चांदी की व्‍यवस्‍था में।





और उस सोमवार भगवान के पास लगा था चांदी का ढेर





दूसरे दिन सोमवार की सुबह उठकर मैं आफिस जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि मंदिर के मैनेजर श्री विश्‍वकर्मा का फोन आया। फोन पर उसने कहा कि साहब न जाने कौन साधु महाराज गर्भगृह में आ बैठे हैं और भगवान के आसपास ढेर चांदी लगा कर दूध पर दूध चढ़ाए जा रहे हैं, मना करने पर मानते नहीं है और कह रहे है कि तुम्‍हारे साहब को बुला लाओ, तो साहब आप जल्‍दी आ जाओ। मैं तैयार तो था ही गाड़ी बैठा और मंदिर जाकर देखा कि गर्भगृह में भगवान महाकालेश्‍वर के ज्‍योर्तिलिंग के समीप चांदी की सिल्लियां सजी हैं और स्‍वामी विश्‍वात्‍मानंद जी हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं। हमारी निगाहें मिलीं तो मुझे देखकर वे मुस्‍कुराए और चाँदी की तरफ इशारा करके बोले ये रही भगवान की चांदी। क्‍या अद्भुत संयोग था कि भगवान के रुद्रयंत्र में दानी भामाशाहों के साथ-साथ साधु संतों का भी सहकार जुड़ गया था।





अष्‍टकोण वाले गर्भगृह के रुद्रयंत्र में हैं 274 मंत्र





इस तरह भगवान महाकालेश्‍वर के ज्‍योतिर्लिंग के ऊपर पुनः रूद्रयंत्र सुस्‍थापित हो गया जो गर्भगृह के वास्‍तु में जड़ा एक बहुमूल्‍य नगीना है। उज्‍जैयनी में स्थित श्री महाकालेश्‍वर मंदिर का गर्भगृह ही वास्‍तुकला का अनुपम उदाहरण है। यह गर्भगृह अष्‍टकोणात्‍मक है। स्‍थापित किए गए रूद्रयंत्र में कुल 274 मंत्र है, जिसमें 10 मंत्र कोण के अंदर हैं, जबकि 264 मंत्र चारों तरफ लगाए गए हैं। मंत्रों से अष्‍ट कोणों में निर्धारित स्‍थानों की पूर्ति होती है। इस तरह स्‍थापित हुए रूद्र यंत्र तथा मंत्रों में कुल 130 किलो चांदी का उपयोग हुआ है जो दानदाताओं के सहयोग से पूरा हुआ है। सोम सूत्र पर आधारित यह रूद्रयंत्र संपूर्ण होकर दिनांक 11 जुलाई 1997 को विधि विधान से शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती के कर कमलों और मध्‍यप्रदेश शासन के प्रतिनिधि के रूप में तत्‍समय के प्रभारी मंत्री नरेन्‍द्र नाहटा की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्‍चार के बीच प्रतिष्ठित हुआ।





(लेखक मुख्यमंत्री के ओएसडी हैं)



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