जिन 8 महापुरुषों को अमरत्व, उनमें परशुराम भी हैं, पिता के कहने पर मां का गला काटा, फिर वरदान में उनका जीवन मांगा, एक वंश के साथ थी

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अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषण:।

कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

धरती पर सात लोग अमर माने गए हैं, अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य परशुरामश। मार्कंडेय को भी अमर माना जाता है। यानी कुल आठ। आज परशुराम जयंती है। अक्षय तृतीया के दिन उनका जन्म हुआ था। परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे।  रेणुका ने पांच बेटों को जन्म दिया, जिनके नाम  वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु और राम हैं। तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न करके उनके दिव्य अस्त्र ‘परशु’ (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए। शिव संहार के देवता हैं। परशु संहारक है, क्योंकि परशु ‘शस्त्र’ है। राम प्रतीक हैं, विष्णु के। विष्णु पोषण के देवता हैं।

परशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार माने जाते हैं। अक्षय तृतीया को जन्मे हैं, इसलिए परशुराम की शस्त्र शक्ति भी अक्षय है और शास्त्र संपदा भी अनंत है। विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते थे। यह उनकी अक्षय शक्ति का प्रतीक था। 

कई विद्वानों ने परशुराम का अलग-अलग जन्मस्थान बताया है। कुछ का मानना है कि परशुराम का जन्म बलिया के खैराडीह में हुआ था। कई विद्वानों का कहना है कि मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित है जानापाव की पहाड़ी पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। एक मान्यता अनुसार छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गांव में उनका जन्म हुआ था। एक अन्य चौथी मान्यता अनुसार उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के जलालाबाद में जमदग्नि आश्रम से करीब दो किलोमीटर पूर्व दिशा में हजारों साल पुराने मन्दिर के अवशेष मिलते हैं, जिसे भगवान परशुराम की जन्मस्थली कहा जाता है।

परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक, पिता जमदग्नि और शस्त्र चलाने की शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वमित्र और भगवान शंकर से मिली। भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले परशुराम का जीवन विवादों से घिरा रहा है। परशुराम के 4 बड़े भाई थे। एक दिन जब सभी पुत्र फल लेने के लिए वन चले गए, तब परशुराम की माता रेणुका स्नान करने गईं। जिस समय वे स्नान करके आश्रम को लौट रही थीं, उन्होंने गंधर्वराज चित्रकेतु (चित्ररथ) को जलविहार करते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार उत्पन्न हो गया और वे खुद को रोक नहीं पाईं। महर्षि जमदग्नि ने यह बात जान ली। इतने में ही वहां परशुराम के बड़े भाई वसुवान, वसुषेण, वसु और विश्वावसु भी आ गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी से बारी-बारी अपनी मां का वध करने को कहा, लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई। 

फिर वहां परशुराम आए और तब जमनग्नि ने उनसे यह कार्य करने के लिए कहा। उन्होंने पिता के आदेश पाकर तुरंत अपनी मां का वध कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपने पिता से माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांगा। साथ ही उन्होंने कहा कि इस घटना की किसी को स्मृति ना रहे और अजेय होने का वरदान भी मांगा। महर्षि जमदग्नि ने उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दीं।

धारणा यह है कि परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था। यह गलत है। इतिहासकारों के मुताबिक, जिन राजाओं से इनका युद्ध हुआ उनमें से हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन इनके सगे मौसा थे। इनके साथ इनके पिता जमदग्नि ॠषि कई बातों को लेकर विवाद था, जिसमें दो बड़े कारण थे। पहला कामधेनु और दूसरा रेणुका।

भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी थी। एक बार सहस्रबाहु के बेटों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने और परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में सती हो गईं। इसी से क्रोधित होकर परशुराम ने संकल्प लिया कि मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा। इसी संकल्प के चलते उन्होंने हैहय वंश के लोगों से 36 बार युद्ध कर उनका समूल नाश कर दिया था। 

सतयुग में जब एक बार गणेश जी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दांत टूट गया और वे एकदंत कहलाए। त्रेतायुग में परशुराम हैं, द्वापर में परशुराम हैं। कहते हैं कि कृष्ण को सुदर्शन चक्र उन्होंने ही दिलवाया था। कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत रहने और भूलोक पर रहने का वरदान दिया। कहते हैं कि वे कलियुग के अंत तक रहेंगे। पुराणों के मुताबिक, महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी और वे उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे। बस यही थी आज की कहानी...

दोस्तो, मां की कोख से आपको जीवन मिलता है, श्रेष्ठता आपको अर्जित करनी पड़ती है। और श्रेष्ठता में भी जब ईश्वरकृपा चाहिए तो विलक्षण होना पड़ता है। परशुराम-हनुमान समेत 8 लोग विलक्षण ही हैं। ईश्वर तो आपको वरदान देने के लिए तत्पर हैं, बस आपकी साधना में शक्ति होना चाहिए।