BHOPAL. मध्यप्रदेश सरकार ने 9 मई को कैबिनेट बैठक में जीरो परसेंट ब्याज का लाभ लेने के लिए कर्ज जमा करने की तारीख बढ़ाने का फैसला लिया। उस दौरान कृषि मंत्री कमल पटेल ने प्रदेश सरकार को किसान हितैषी बताते हुए इस फैसले का गुणगान किया था, लेकिन द सूत्र ने 11 मई को ही बता दिया था कि कर्ज जमा करने की तारीख बढ़ाने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि सरकार किसानों को समय पर गेहूं का पैसा नहीं दे रही है और इसलिए हजारों किसान डिफॉल्टर हो जाएंगे और हुआ भी यही। किसान को 30 अप्रैल की जगह 20 मई तक कर्ज की राशि जमा करने का फैसला तो सरकार ने ले लिया, पर किसानों को गेहूं का समय पर पैसा दिया ही नहीं, नतीजा 60 हजार किसान डिफॉल्टर हो गए हैं। प्रदेश में हुई सरकारी गेहूं खरीदी में हजारों किसान ऐसे हैं जिनका पेमेंट 20-25 दिनों से अटका हुआ है।
1142 करोड़ का नहीं हुआ भुगतान
मध्यप्रदेश में 20 मई तक 3400 से ज्यादा सरकारी केंद्रों पर गेहूं की खरीदी की गई। 7 लाख 96 हजार 190 किसानों ने कुल 70 लाख 97 हजार 65 मैट्रिक टन गेहूं सरकार को बेचा। करीब 7 लाख 36 हजार किसानों को 13 हजार 939 करोड़ से ज्यादा की राशि का भुगतान किया गया, लेकिन अब भी करीब 60 हजार किसानों का 1142 करोड़ का भुगतान नहीं हुआ है।
28 लाख किसानों ने सहकारी बैंकों से लिया है कर्ज
सहकारी बैंक के माध्यम से सरकार किसानों को जीरो परसेंट ब्याज पर लोन देती है। प्रदेश में 28 लाख किसानों ने इस योजना के तहत लोन ले रखा है। इस लोन को निर्धारित समय पर जमा करना होता है। यदि किसान समय से कर्ज की राशि को जमा कर दे तो उस पर कोई ब्याज नहीं लगता है। लेकिन यदि किसान निर्धारित समय सीमा से 1 दिन बाद भी कर्ज की राशि को जमा करता है तो उसे अतिरिक्त ब्याज की रकम चुकानी होती है।
ऐसे हुआ किसानों को नुकसान
किसान को होने वाले नुकसान को आप ऐसे समझें कि कोई मोहनलाल किसान है जो बैंक से 3 लाख रुपए कर्ज लेता है। पहले उसे ये राशि 30 अप्रैल तक जमा करनी थी, लेकिन सरकार के निर्णय के बाद उसे इस राशि को 20 मई तक जमा करना था। मोहनलाल ने सरकार को अपना गेहूं बेचा, पर उसको आज तक पैसा नहीं मिला। जाहिर-सी बात है जब मोहनलाल के पास पैसा ही नहीं था तो वो 20 मई तक कर्ज का 3 लाख रुपए सहकारी बैंक में जमा नहीं कर सका। अब उसे 3 लाख रुपए की जगह 7 प्रतिशत ब्याज की दर से 3 लाख 21 हजार रुपए चुकाने होंगे। मतलब 21 हजार रुपए का अतिरिक्त ब्याज देना होगा, जबकि इसमें गलती मोहनलाल की है ही नहीं। क्योंकि उसने सरकार को गेहूं बेचा था और समय पर भुगतान करने की सरकार की जिम्मेदारी थी जो कि सरकार ने नहीं निभाई। यदि मोहनलाल ने 3 लाख से ज्यादा का कर्ज लिया होता तो समय सीमा निकल जाने के बाद उसे 12 प्रतिशत ब्याज के हिसाब से पैसा चुकाना पड़ता।
26 दिन से पैसे के लिए भटक रहा किसान
रायसेन जिले रामपुरा केसली के किसान अमरीश यादव ने 28 अप्रैल को सरकारी खरीदी केंद्र पर गेहूं बेचा था, जिसका भुगतान उन्हें आज तक नहीं हुआ है। 26 दिनों से अमरीश बैंक के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। उन्होंने इसकी शिकायत जनसुनवाई में भी की है। इसी तरह सीहोर के किसान मदन धनगर भी 15 दिनों से पैसों के लिए चक्कर काट रहे हैं। मदन का कहना है कि उन्हें अगली फसल की तैयारी भी करनी है, खाद-बीज लेना है। जब सरकार की समय पर पैसा देने की स्थिति नहीं थी तो उन्हें गेहूं खरीदना ही नहीं था।
पिछले साल आधार अपडेशन के कारण अटका था भुगतान
साल 2022 में पहली बार PFMS यानी पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम पोर्टल के माध्यम से किसानों को आधार आधारित बैंक खाते में उपज का पैसा ट्रांसफर किया जा रहा था। NIC यानी नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सिस्टम और PFMS के बीच समन्वय कर नई व्यवस्था लागू करने में समय लग गया, जिसके कारण भुगतान में देरी हो गई। समय पर पैसा नहीं मिलने के कारण कई किसान निर्धारित सीमा में कर्ज की राशि जमा नहीं कर पाए थे, जिससे कारण उन्हें अतिरिक्त राशि जमा करनी पड़ी थी।
अब बात नियम-कायदे की
सरकार लाइसेंसधारियों के माध्यम से जो खरीदी करती है, वो मंडी अधिनियम के तहत होती है। मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 की धारा-37 की उपधारा-2 में भी स्पष्ट उल्लेख है कि प्रांगण/उपमंडी प्रांगण/क्रय केन्द्रों पर क्रय की गई अधिसूचित कृषि उपजों का भुगतान विक्रेता को उसी दिन मंडी प्रांगण में करना अनिवार्य है, नहीं तो क्रेता द्वारा विक्रेता को 5 दिन तक 1 प्रतिशत प्रतिदिन की दर से अतिरिक्त भुगतान दण्ड स्वरूप देना होगा और 5 दिनों तक भी भुगतान नहीं करने पर 6वें दिन से क्रेता व्यापारी की अनुज्ञप्ति स्वमेव निरस्त समझी जाएगी, पर इस नियम का पालन होता नहीं है।
एक तरफ ब्याज माफ कर रहे, दूसरी तरफ बना रहे डिफॉल्टर
सरकार 11 लाख 19 हजार किसानों का 2 लाख रुपए तक के कर्ज का बकाया ब्याज 2 हजार 123 करोड़ रुपए माफ कर रही है। ताकि डिफॉल्टर सूची से किसान बाहर आ सके। वहीं गेहूं का समय पर पैसों का भुगतान नहीं कर सरकार ने 60 हजार किसानों को डिफॉल्टर बना दिया है। किसान नेता समीर शर्मा ने कहा कि ये सरकार की दोहरी नीति है। एक ओर आप किसान हितैषी बन ब्याज माफ करने की बात करते हो, दूसरी तरफ किसानों को उनकी उपज का समय पर पैसा नहीं देकर डिफॉल्टर बना देते हो।