जपने वाले का कल्याण करने वाला महामंत्र है गायत्री जप- श्रीराम शर्मा आचार्य

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जपने वाले का कल्याण करने वाला महामंत्र है गायत्री जप- श्रीराम शर्मा आचार्य

गायत्री महामंत्र के जप से उत्पन्न ध्वनि सारेवातावरण के परमाणुओंमें कंपन्न पैदा करने की शक्ति से युक्त है। इस महामंत्र की अपार शक्ति का लाभ कोई भीउठा सकता है। शर्त एक ही है कि वह उन शिक्षाओं पर,उस आचरण पर भीचले, जिसका इस महामंत्र के एक-एक अक्षर में संकेत है। गायत्री महामंत्र के जप से ऐसी चेतन शक्ति का विकासहोता है, जो इसका जप करने वाले के शरीर एवं मन में अद्भुत प्रकारकी तरंगे उत्पन्न करती हैं, जो अनंत आकाश मेंफैलकर विशिष्ट व्यक्तियों को, विशेष परिस्थितियों कोतथा समूचे वातावरण को प्रभावित करती हैं। इस मंत्र कालाभ वे ही उठा सकते हैं, जिन्होंने व्यक्तित्व को भीतरऔर बाहर से, विचार और आचार से परिष्कृत कर लियाहो। साधक का अंतःकरण और व्यक्तित्व जितना निर्मलहोगा, उपासना उतनी ही सफल होगी।

गायत्रीजप के लाभ

ईश्वर की वाणी से निकला मंत्र है गायत्री मंत्र।• इस सृष्टि पर सबसे ज्यादा जपा गया मंत्र है गायत्री मंत्र।• सदबुद्धि की प्रार्थना का मंत्र है गायत्री मंत्र। यदि व्यक्ति मेंसद्बुद्धि है तो जीवन में कोई समस्या ही नहीं रहेगी।• गायत्री मंत्र से प्राणों की रक्षा होती है।• गायत्री मंत्र से प्राणशक्ति की अभिवृद्धि होती है।• गायत्री मंत्र के 24 अक्षर चौबीस शक्तियों के समान है।• गायत्री मंत्र से अशक्ति, अज्ञान तथा अभाव दूर होता है।• गायत्री मंत्र से भौतिक और अध्यात्मिक दोनों ही उन्नतिहोती है।• छात्र/छात्राओं में बुद्धि और शिक्षा में वृद्धि होती है।• गायत्री मंत्र जपने से मन के कुसंस्कार कलह समाप्त होतेहै।• गायत्री मंत्र का जप करने से आत्मबल में वृद्धि होती है।• गायत्री मंत्र से रोग दूर होते हैं। प्राण-शक्ति बढ़ती है।• गायत्री मंत्र वह शक्ति केन्द्र है जिसके अन्तर्गत विश्व के सभीदैविक, दैहिक, भौतिक छोटे बड़े शक्ति तत्वों का समावेशहै।• ब्रह्माजी ने गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप चारमुखों से चार वेदों का वर्णन किया।

जो जपने वाले का कल्याण करे वो है गायत्री

• गायत्री को त्रिपदा कहा गया है इसके तीनो पदों कीउपासना ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा सरस्वती, लक्ष्मी एवं कालीकी उपासना है।• गायत्री क्या है- गोपथ ब्राह्मण से शाब्दिक अर्थ "गाने वालेका त्राण करे या कल्याण करे वह गायत्री है।"• मनुष्य के अर्न्तजगत में जो विलक्षण शक्तियाँ भरी हुई है,उनका जागरण भी गायत्री महामंत्र द्वारा ही सम्भव है।• इस महामंत्र का एक-एक अक्षर शक्ति बीज है इन शक्तिबीजों के स्पर्श से शरीर में स्थित प्रमुख 6 चक्र तथा 18उपचक्रों का इस प्रकार कुल 24 चक्रों का जागरण गायत्रीउपासना से होता है।• गायत्री के 24 अक्षरों में से प्रत्येक अक्षर शरीर में व्याप्तप्रधान तत्वों में से एक-एक का प्रतिनिधि है।

गायत्री के 24 अक्षर 24 तत्वों के समान

• गायत्री महामंत्र के 24 अक्षर 24 महातत्वों से सम्बधित हैअर्थात 5 कामन्द्रिय, 5 ज्ञानेन्द्रिय, 5 तत्व, 5 तन्मात्राऐं तथामन, बुद्धि, आत्मा तथा परमात्मा यह 24 शक्तियाँ गायत्री के24 अक्षरों में समाई हुई है।गायत्री मंत्र में 5 तत्व (पंचतत्व) जल,अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी है। 5 ज्ञानेन्द्रिय है जिसमें आँख, कान, नाक, जिव्हा,त्वचा है। 5 कर्मेन्द्रीय है जिनमें हाथ, पाँव, जनेन्द्रिय, गुदा, वाणी है। 5 तन्मात्राओं में रूप,रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द। पंच तन्मात्राओं का संबंध पांच ज्ञानेन्द्रियों से है जैसे अग्नितत्व की तन्मात्रा रूप है रूप को आँख ज्ञानेन्द्रिय द्वारा देखा जाता है। जल तत्व कीतन्मात्रा रस है जल प्रधान इन्द्रिय जिह्वा द्वारा अनुभव किया जाता है। पृथ्वी तत्व कीतन्मात्रा गन्ध है, गन्ध को पृथ्वी गुण प्रधान नासिका इन्द्रिय मालूम करती है। इसीप्रकार वायु की तन्मात्रा स्पर्श का ज्ञान त्वचा को होता है। आकाश की तन्मात्रा शब्द हैवह कान द्वारा हमें अनुभव होता है कान आकाश तत्व की प्रधानता वाली इन्द्रिय है।इस प्रकार 20 तत्व हुए शेष चार में मन, बुद्धि, आत्मा,परमात्मा इस प्रकार गायत्रीके 24 अक्षर 24 तत्वों के प्रतीक हैं।-गायत्री के 24 अक्षरों में सम्मिलित चौबीस शक्तियों का भाव यह है कि मनुष्यकी मौलिक विशिष्टताओं को उभारने में उनके आधार पर असाधारण सहायतामिलती है।-जिस प्रधान्- बीज के भीतर वृक्ष तथा वीर्य की एक बूंद केभीतर पूरा मनुष्य सन्निहित होता है उसी प्रकार गायत्री के24 अक्षरों में संसार का समस्त ज्ञान विज्ञान भरा हुआ है।मंत्र के अक्षर शक्ति बीज कहलाते है उनका शब्द गुन्थनऐसा होता है कि उनके विधिवत उच्चारण एवं प्रयोग सेअदृश्य आकाश मंडल में शक्तिशाली विद्युत तरंगे उत्पन्नहोती है। और मन शक्ति तरंगो द्वारा नाना प्रकार केआध्यात्मिक एवं सांसारिक प्रयोजन पूर्ण होते है।

संसार में दुख के तीन मुख्य कारण हैं

1. अज्ञान 2. अभाव 3. अशक्ति।इन तीनों ही दुखों को गायत्री की सूक्ष्म प्रकृति तीनों धाराओं के सदुपयोग सेमिटाया जा सकता है। ये तीन धाराएं गायत्री के प्रधान चरण “तत्सवितुर्वरेण्यं"से निकली "ही" धारा अज्ञान को, द्वितीय चरण “भर्गो देवस्य धीमहि" सेनिकली “श्रीं' धारा अभाव को तृतीय चरण “धियो यो नः प्रयोचयात्” सेनिकलती “क्लीं” धारा अशक्ति को दूर करती है। गायत्री त्रिपदा है इसके तीनपदों की उपासना ब्रम्हा, विष्णु, महेश तथा सरस्वती, लक्ष्मी एवं काली कीउपासना है। इसे इसीलिए भूलोक की कामधेनू, कल्पवृक्ष, पारस कहा गयाहै। गायत्री उपासना एक ठोस वैज्ञानिक प्रक्रिया गायत्री मन्त्र का जप कोईअंधविश्वास नहीं है यह एक ठोस वैज्ञानिक प्रक्रिया है। गायत्री महामन्त्र के जपसे उत्पन्न ध्वनि तरंगें जप करने वाले के स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीरों में स्थितविभिन्न शक्ति केन्द्रों को जागृत करके ब्रह्मांड में दिव्य वातावरण निर्मित करकेभी हलचल उत्पन्न करती हैं। गायत्री मंत्र की ध्वनि तंरगें तार के छल्ले जैसीऊपर उठकर सूक्ष्म अन्तराल के माध्यम से सूर्य तक पहुँचती है। सूर्य सेटकराकर जब वापस लौटती हैं तो अपने साथ प्रकाश अणुओं की प्राण विघृतशक्ति लाकर जप करनेवाले के शरीर में उतरती चली जाती हैं। उन अणुओंकी प्राण विद्युत शक्ति से साधक के शरीर का ही नहीं मन व आत्मा का विकासभी होता चला जाता है जो भौतिक साधनों से सम्भव नहीं हो सकता है।(सहयोग- डॉ.अशोक नेमा, साहित्य प्रभारी, गायत्री परिवार)

गायत्री की विलक्षण शक्ति