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AGAR. विश्व के सर्वाधिक प्राचीन बगलामुखी मंदिर (नलखेड़ा, मध्य प्रदेश) में माता बगलामुखी के दरबार में नवरात्रि पर भारी भीड़ उमड़ती है। आम लोग हों या नेता, यहां शीश झुकाने आते हैं। यह स्थान (मां बगलामुखी शक्ति पीठ) नलखेड़ा में नदी के किनारे स्थित है। यहां मां बगलामुखी की स्वयंभू प्रतिमा है। यह श्मशान क्षेत्र में स्थित हैं। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के 12वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर की थी। देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है।
मां बगलामुखी के 3 ही मंदिर
तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं, जो दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) और नलखेड़ा (आगर-मालवा, मप्र) में हैं।
रंग पीला होने से पीतांबरा भी कहा जाता है
मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं। इनका प्राकट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। मां बगलामुखी यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है, इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है। साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।
शैव और शाक्त मार्गी सिद्धि के लिए आते हैं
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक हैं बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट हैं। तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।
इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधिष्ठिर ने की थी।
स्वयंभू हैं माता, विजय के लिए पूजा कराते हैं भक्त
1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं। बगलामुखी माता मुख्य रूप से तंत्र की देवी हैं, इसलिए यहां पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है। यह मंदिर इसलिए महत्व रखता है, क्योंकि यहां की मूर्ति स्वयंभू और जाग्रत हैं। नवरात्रि में यहां पर भक्तों का हुजूम लगा रहता है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण साल में यहां पर कम ही लोग आते हैं।
मां बगलामुखी मंत्र
'ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा।'