एडीएम पवन जैन ऐसे बन गए थे आईएएस, DPC के चयन पर उठे सवाल, जानें पूरा मामला

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Shivasheesh Tiwari
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एडीएम पवन जैन ऐसे बन गए थे आईएएस, DPC के चयन पर उठे सवाल, जानें पूरा मामला

संजय गुप्ता, INDORE. दिव्यांग से दुर्व्यवहार के मामले में एडीएम पद से हटाए गए पवन जैन को भोपाल में अटैच किया गया है। इसके बाद से इनके पुराने मामले खुलकर सामने आने लगे हैं। सबसे बड़ी बात साल 2015 में ही ईओडब्ल्यू इंदौर में इनके खिलाफ पद के दुरुपयोग कर कॉलोनाइजर के बंधक प्लॉट मुक्त कर सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने का केस हो चुका है। इसमें 420, 120बी जैसी धाराएं लगी हुई हैं। इसके बाद भी इन्हें विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) द्वारा आईएएस पद के लिए पदोन्नत कर दिया गया और 6 नवंबर 2020 को इन्हें आईएएस बैच 2013 अवार्ड कर दिया गया। 6 माह से ये कलेक्टर बनने की कवायद में लगे हुए थे। इस पूरे मामले में अब डीपीसी पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं कि एफआईआर के बाद भी इनका नाम मान्य कैसे किया गया और आईएएस कैसे बने? 



डीपीसी के नियमों में गड़बड़ी 



इसमें सबसे बड़ी परेशानी है कि यदि किसी अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हो गई है तो उसे डीपीसी में कंसीडर नहीं करेंगे। लेकिन एफआईआर में कर लेंगे, क्योंकि इसमें अभी केस दर्ज हुआ है चालान पेश नहीं हुआ है। हां चालान पेश हो जाए तो फिर पदोन्नति रूक जाती है। पवन जैन के साथ भी यही हुआ। सितंबर 2020 में जब डीपीसी की बैठक हुई तो उन पर एफआईआर तो थी लेकिन ईओडब्ल्यू ने चालान पेश नहीं किया था। क्योंकि शासन ने अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी थी। इसी के चलते डीपीसी ने उन्हें पदोन्नत करने के लिए हरी झंडी दे दी। 



डीपीसी ने इन बातों को किया अनदेखा 



डीपीसी का मानना है कि विभागीय जांच में आरोप पत्र जारी हो गया हो, यानी विभाग ने प्राथमिक स्तर पर मान लिया हो कि उसने गलत काम किया है (आरोप पत्र यानी चालान जैसा ही होता है)। वहीं एफआईआर केवल फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होती है, जिसका मतलब होता है कि आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। लेकिन ईओडब्ल्यू के केस में ऐसा नहीं होता है। यह जांच एजेंसी सीधे एफआईआर नहीं करती है, बल्कि पहले शिकायत को जांच में लेती है और प्राथमिक रूप से आरोप सही पाए जाने पर ही एफआईआर दर्ज करती है। पवन जैन के मामले में ईओडब्ल्यू ने शिकायत की जांच और एफआईआर की जांच में दोषी माना था। इसी के आधार पर अभियोजन मंजूरी के लिए इंदौर से केस भोपाल गया था। लेकिन शासन से मंजूरी नहीं मिली थी।



विभागीय जांच के कारण इन नामों पर लगी थी रोक



उसी डीपीसी में तीन अधिकारियों को पदोन्नति नहीं दी गई थी। 1995 बैच के एसएएस अफसर विनय निगम ने वरिष्ठता को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसका निराकरण नहीं हो पाया था। पंकज शर्मा पर विभागीय जांच होने और विवेक सिंह निलंबित होने के कारण प्रमोशन नहीं पा सके थे। 



किसी का प्रमोशन रोकने का यह है नियम 



विभागीय जानकारों के अनुसार तीन कारणों से पदोन्नति रोकी जा सकती है। इसमें उनके नाम का लिफाफा बंद कर दिया जाता है, यानी जब अधिकारी इन तीन कारणों को क्लियर कर लेंगे तो वह पदोन्नति के पात्र होंगे-




  • वह डीपीसी के समय सस्पेंड हो।


  • विभागीय जांच में उसे चार्जशीट दे दी गई हो।

  • उसके खिलाफ अभियोजन (चालान) पेश हो गया हो।



  • तीन मामलों में अधिकारी की पदोन्नति तो होती है लेकिन उसका नाम लिफाफे में बंद कर दिया जाता है। यानी वह पद रिक्त रखा जाता है, जब वह दोषों से मुक्त होगा, तब पदोन्नति दी जाएगी। वहीं एक अनफिट रीजन भी होता है। इसमें पद रिक्त नहीं होता, बल्कि इससे नीचे वाले को पदोन्नत कर दिया जाता है। इसमें मुख्य तौर पर उसे विभागीय जांच में दंड मिल गया हो या फिर बीते पांच सालों का सीआर खराब हो। 



    16 साल पुराने मामले में दर्ज है एफआईआर



    साल 2006 में बायपास की एक कॉलोनी मालवा कांउटी में बंधक प्लॉट मुक्त कर शासन को राजस्व का 98 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाने में उन पर साल 2015 में एफआईआर हुई थी। इसमें एसडीएम कौशल बंसल, राजस्व निरीशक दिनेश शर्मा और कॉलोनाइजर विद्युत जैन भी आरोपी हैं। कॉलोनी का विकास काम पूरा नहीं हुआ, लेकिन पहले बंसल ने और फिर जैन ने विकास की गारंटी के तौर पर रखे गए 25 भूखंड बंधक मुक्त कर दिए। इसमें आरआई शर्मा ने केवल चार लाइन का पत्र लिखा था। जबकि चंद्र शर्मा कॉलोनी के आंतरिक विकास कार्य के कार्य पूर्णता का प्रमाण पत्र देने के लिए अधिकृत नहीं थे। पवन जैन को उक्त भू-खण्ड को मुक्त करने से पहले उन्हें रजिस्टर्ड माडगेज कराने का आदेश कॉलोनाइजर को देना था, जो नहीं दिया गया।



    जांच में दोषी पाए गए थे जैन



    भू-खंड धारियों की शिकायत पर साल 2011 में तत्कालीन एसडीएम सिटी इंदौर सुधीर तारे ने जांच कर जांच रिपोर्ट अपर कलेक्टर कार्यालय इंदौर को सौंपी थी। तत्कालीन एसडीएम भारत भूषण सिंह तोमर ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में उक्त कॉलोनी में मूलभूत विकास कार्य अपूर्ण होने की बात कही थी। तत्कालीन एसडीएम पवन जैन ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बंधक रखे गए 25 प्रतिशत भू-खंडों को आंतरिक विकास कार्य पूरे हुए बिना और संबंधित विभागों से कार्य पूर्णता प्राप्त किए बिना ही अनाधिकृत रूप से मुक्त कर दिया था।



    बैतूल और इंदौर के रेवती रेंज में भी हो चुका कांड



    बैतूल में साल 2016 में पांच आदिवासियों की जमीन की बिक्री के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उन पर कार्रवाई कर चुके हैं। तब भी इन्हें अपर कलेक्टर बैतूल पद से हटाया गया था। वहीं साल 2013 में वह इंदौर के रेवती रेंज में पदस्थ थे। तब उनके रिश्तेदार निलय जैन पर आदिवासी की जमीन को लेकर विवाद पैदा हुआ था। तब निलय जैन के गनमैन ने गोली चला दी थी, जिसमें एक की मौत हो गई थी। इस विवाद में भी इनका नाम जोड़ा गया था।


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