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देव श्रीमाली, GWALIOR. ग्वालियर में चल रहे शास्त्रीय संगीत के महा आयोजन में रात (21 दिसंबर) प्रख्यात गायिका परवीन सुल्ताना ने अपनी गायकी का ऐसा जादू बिखेरा कि देर रात तक रसिक छह डिग्री सेल्सियश वाली सर्द रात में भी संगीत मंडप में बैठकर वाह-वाह करते रहे।
तानसेन समारोह में पद्मभूषण परवीन
संगीत की नगरी ग्वालियर में बुधवार (21 दिसंबर) की शाम मौसम सुहाना था। तानसेन समारोह के भव्य मंच पर संगीत सम्राज्ञी पद्मभूषण बेगम परवीन सुल्ताना जब मंच पर पधारीं तब रात सर्द हो चली थी। बेगम साहिबा ने अपने बेजोड़ स्वरों की आंच से रात को गर्मा दिया। वहीं सरगम, पल्टों और गमक से सजे उनके गायन से झरीं तानों ने ऐसा शीतल शामियाना तान दिया, जैसे गर्मी से दहकते दिन में अचानक घनघोर बादल गर्माहट को शीतलता में तब्दील करने के लिए आ गए हो।
राग बिहाग से किया आगाज
बेगम परवीन सुल्ताना ने गान मनीषी तानसेन के चौबारे में गायन के लिए मधुर राग "मारू बिहाग" का चयन किया। इस राग में उन्होंने बड़ा ख्याल गाया, जो कि एक ताल में निबद्ध था। इसके बोल थे "कैसे बिन साजन रहा न जाए"। अपने गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने तीन ताल में छोटा ख्याल "कवन न कीन्हों "पेश कर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्वर-संरचना के बाद भी उनके स्वर जरा सा भी नहीं बिखरे। उनके गायन में जितनी मिठास तार सप्तक में दिखी,उतनी ही बुलंदी मंद्र सप्तक के स्वरों में भी साफ नजर आई। ऐसी विविधता निस्संदेह एक कठिन साधना से ही संभव है।
परवीन ने श्रोताओं की फरमाइश पर सुनाए गाने
तकरीबन मध्य लय से उठे कल्याण थाट के मीठे राग "मारू बिहाग" को कुछ इस अंदाज में पेश किया कि पंचम लगते-लगते गुणीय रसिक संगीत साम्राज्ञी के कायल हो गए। क्लिष्ट और तार सप्तक को छूती तानों पर सुधीय रसिकों की वाह-वाह और तालियां लगातार बजनी ही थीं। परवीन सिर्फ राग का गायन भर नहीं कर रहीं थीं बल्कि शास्त्रीय संगीत के उस पूरे कालखंड की यात्रा करवा रही थीं,जो उनकी मौजूदगी और उत्कृष्ट गायकी से सदैव खुशनसीब होता रहा है। उन्होंने राग " मिश्र पीलू " में बरकत अली खान की प्रसिद्ध ठुमरी " तुम राधे बनो श्याम.." गाकर पूर्व अंग की गायिकी का जादू बिखेर दिया। परवीन ने श्रोताओं की फरमाइश पर फिल्म कुदरत के अपने गीत " हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते" गाकर सुनाया और राग "मिश्र भैरवी" में पॉपुलर भजन " भवानी दयानी महा बाकवानी.." ताल झपताल में पिरोकर सुनाया अपने गायन को विराम दिया। बेगम परवीन के गायन में तबले पर मुकुंद रामदेव और हारमोनियम पर श्रीनिवास आचार्य ने हुई संगत दी।
सुबह की सभा मे अफ्रीकन कलाकारों ने दी प्रस्तुति
प्रेम, विरह व श्रृंगार से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को जोड़ती है। संगीत सरहदों में नहीं बंधता। संगीत का संदेश भी शास्वत है और वह है प्रेम। इस साल के विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य साधकों और सुदूर अफ्रीकन देश जिम्बाबे से आए संगीत कला साधकों ने अपने गायन-वादन से यही संदेश दिया। पूरब और पश्चिम की सांगीतिक प्रस्तुतियों का गुणीय रसिकों ने बुधवार (21 दिससंबर) की सुबह आयोजित हुई संगीत सभा में जीभरकर आनंद उठाया।
पारंपरिक ढंग से ध्रुपद गायन के साथ हुई सभा की शुरुआत
विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में बुधवार की सुबह सभा का शुभारंभ स्थानीय तानसेन संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। राग " जौनपुरी" और ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे " नाद सुघर घर बसायो"। पखावज पर जगत नारायण ने संगत की।
गान महृषि तानसेन के आंगन में विश्व संगीत की आहुति
दिसंबर महीने की सुबह की सर्द बेला में जिम्बाबे के ब्लेसिंग चिमंगा बैंड के कलाकारों ने जब अलावा मारींबा,सिंथेसाइजर,गिटार , सैक्सोफोन,ड्रम और मरीबा नामक वाद्य यंत्रों से शास्त्रीय संगीत से साम्य स्थापित कर मीठी-मीठी विशुद्ध अफ्रीकन धुनें निकालीं तो एक बारगी ऐसा लगा मानो गान महृषि तानसेन के आंगन में हो रहे संगीत के महाकुंभ में विश्व संगीत की आहुतियां हो रहीं हैं। इस बैंड ने अफ्रीका की सांस्कृतिक व मौलिक धुनों को जब ऊर्जावान होकर तेज रिदम के साथ प्रस्तुत किया तो युवा रसिक श्रोताओं में जोश भर गया। वहीं प्रकृति से जुड़े और निखरे अफ्रीकन संगीत ने गुणीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया। बैंड के मुख्य कलाकार चिमांगा हैं,जो अलावा मारींबा नामक अफ्रीकन वाद्य यंत्र बजाते हैं। तान समारोह में हुई इस बैंड की प्रस्तुति में सिंथेसाइजर व मबीरा पर अलीशा,गिटार पर जोलास बास और तुलानी कुवानी ने सैक्सोफोन पर संगत की। ड्रम व अन्य ताल वाद्यों पर ब्लेसिंग मापरुत्सा ने प्रोत्साहन दिया।
पं सुखदेव चतुर्वेदी ने अपनी गायकी से भरा गागर में सागर
तानसेन समारोह में मुंबई से आए पंडित सुखदेव चतुर्वेदी के राग माधुर्य ने सुधीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया। उन्होंने अल्प समय में तीन अलग-अलग रागों में बंदिशें पेश कर गागर में सागर भर दिया। पंड़ित सुखदेव ने तानसेन के सुपुत्र विलासखान द्वारा सृजित राग "विलासखानी तोड़ी" में एक बंदिश पेश की। ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे "चंद बदनी मृग नयनी हंस गमनी"। दरभंगा सांगीतिक घराने की ध्रुपद गायकी में पारंगत पंड़ित सुखदेव चतुर्वेदी देश के शीर्ष शास्त्रीय गायकों में शुमार हैं।
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सुरों का रमणीय गुलदस्ता सौंप गए अभिषेक बोरकर
मैहर सेनिया घराने के युवा सरोदिया अभिषेक बोरकर की अंगुलियां की थिरकन से सरोद से मधुर सुर झरे तो रसिकों को ऐसा आभास हुआ कि कोई उन्हें सुंदर-सुंदर फूलों का रमणीय गुलदस्ता सौंप रहा है। तानसेन समारोह में पुणे से आए इस संवेदनशील सरोद वादक की प्रस्तुति में दाहिने और बाएं हाथ के बीच वांछित संतुलन से सुरों की वर्षा देखते व सुनते ही बन रही थी। अभिषेक बोरकर ने मधुर राग " चारुकेशी" में परिचयात्मक अलाप के बाद तीन ताल में विलंबित व द्रुत गत बजाकर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस सहज गति से उन्होंने मधुर राग का वर्णन किया, उससे जाहिर हुआ कि उनकी उचित तालीम कितनी उच्चकोटि की है। पुणे के युवा हिन्दुस्तानी सरोद वादक अभिषेक बोरकर ने अपने पिता पंडित शेखर बोरकर से सरोद पर कठोर और गहन प्रशिक्षण लिया है। अभिषेक बोरकर के सरोद वादन में तबले पर अंशुल प्रताप सिंह ने आश्चर्यजनक राग गावटी की।
"का करूं सजनी आए न बालम..."
तानसेन समारोह में पुणे से आए सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक आनंद भाटे ने जब अपनी दानेदार सुरीली आवाज में बड़े गुलाम अली खां साहब की प्रसिद्ध ठुमरी "का करूं सजनी आए न बालम.." गाकर सुनाई तो पूरे माहौल में रंजकता छा गई। मूर्धन्य संगीतज्ञ पंडित भीमसेन जोशी के शिष्य आनंद भाटे का खयाल गायन रसिकों को खूब भाया। उनकी गायकी में चैनदारी खासा असर छोड़ रही थी। उन्होंने राग "वृंदावनी सारंग" से गायन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। झप ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे "तुम रब तुम साहिब तुम ही करतार..."। इसी क्रम में तीन ताल में पेश की गई द्रुत बंदिश के बोल थे "जाऊं मैं तोपे बलिहारी"। दोनों ही बंदिशों को उन्होंने घरानेदार अंदाज में पेश किया। रागदारी की शुद्धता को बरकरार रखकर उन्होंने राग खिला दिए। विविधता पूर्ण तानों की अदायगी भी लाजवाब रही। द्रुत बंदिश के गायन में भी आपने कई लयकारियां दिखाईं। उनके साथ हारमोनियम पर रवीन्द्र किल्लेदार और तबले पर हितेन्द्र दीक्षित ने बेहतरीन संगत की।
राग " देशी" में वायोलिन वादन सुन झूमे रसिक
तानसेन समारोह में बुधवार( 21 दिसंबर) सुबह सभा का समापन भोपाल के प्रवीण शेवलीकर के वायोलिन वादन से हुआ। उन्होंने राग "देसी" में अपने वादन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो रचनाएं पेश की। विलंबित रचना एक ताल में और द्रुत रचना तीन ताल में निबद्ध थी। दोनों ही रचनाओं को बजाने में उन्होंने अपने कौशल के कई रंग दिखाए। उनके वायोलिन से झर रहीं रसभीनीं तानें सुन रसिक झूम उठे। रागदारी की बारीकियों से परिपूर्ण प्रवीण का वादन गायकी अंग का था। उन्होंने अपने वादन का समापन राग "भैरवी" में दादरा की धुन निकालकर किया। उनके साथ तबले पर मिथिलेश झा ने संगत की। वायोलिन पर प्रवीण की बेटी चैताली शेवलीकर ने अच्छा साथ दिया।
आज 22 दिसंबर को ये होंगी प्रस्तुतियां
समारोह के तहत मुख्य समारोह स्थल पर 22 दिसंबर को सुबह सभा की शुरूआत पारंपरिक रूप से सारदा नाद मंदिर ग्वालियर के ध्रुपद गायन से होगी। इस सभा में विश्व संगीत के तहत यूएसए के विलियम रीस हॉफमैन प्रस्तुति देंगे। इसके बाद विनोद मिश्रा सतना का गायन, बृजभूषण गोस्वामी दिल्ली का ध्रुपद गायन, उमेश कंपूवाले ग्वालियर का गायन और हर्ष नारायण मुम्बई का सारंगी वादन होगा।
सांध्यकालीन सभा - इस सभा का शुभारंभ राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के ध्रुपद गायन से होगा। इस सभा में विश्व संगीत के तहत अर्जेंटीना के देसमाद्रे ऑर्केस्ट्रा की प्रस्तुति होगी। इसके पश्चात सुश्री अनुजा झोकरकर पुणे का गायन, शशांक सुब्रमण्यम चैन्नई का बांसुरी वादन, पं. जयतीर्थ मेवुण्डी धारवाड़ का गायन और पं. संजू सहाय लंदन (वाराणसी) का तबला वादन होगा। सांध्यकालीन सभा सायंकाल 6 बजे शुरू होगी।
बटेश्वर मंदिर प्रांगण में इन कलाकारों की होगी प्रस्तुति
इस साल के तानसेन समारोह के तहत पहली बार मुरैना जिले के सुप्रसिद्ध बटेश्वर मंदिर प्रांगण में 22 दिसंबर को एक अतिरिक्त संगीत सभा सजेगी। इस सभा में विवेक नवले इंदौर का तबला वादन,साधना गोरे ग्वालियर का गायन व प्रभात कुमार दिल्ली का सरोद वादन होगा। यह सभा सुबह 10 बजे शुरू होगी।