BHOPAL. प्रदेश में जहां मानसून ढलान पर चल रहा है वहीं चुनावी मौसम में अब तेजी से चढ़ाव दिखने लगा है। प्रदेश बीजेपी की कमान संभालने के बाद से चाणक्य अमित शाह न तो खुद चैन से बैठ रहे हैं न नेताओं को सांस लेने दे रहे हैं, 15 दिन में तीसरा दौरा कर सुस्त पड़ी बीजेपी को एक्टिव कर दिया है। उधर कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी पूरी बीजेपी आर्मी से टकराने की तैयारी में जुटी हुई है। एक-एक सीट पर जाकर रणनीति बना रहे हैं। 2003 के बाद ये पहला ऐसा चुनाव माना जा रहा है जहां बीजेपी और कांग्रेस बराबर से एक दूसरे को फाईट देंगे।....खबरें तो बहुत हैं, आप तो सीधे नीचे उतर आईए, और जानिए प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे के अंदरखाने में क्या पक रहा है।
शोभा की सुपारी बनी चुनाव समितियां
बीजेपी के नेताओं में चुनावी समितियों को लेकर खासी चर्चा है। इन लागों का मानना है कि 2023 की चुनावी रणनीति बनाने के लिए बनाई गई समितियां शोभा की सुपारी बन कर रह गई। ऐसा लग रहा है कि समिति का गठन चुनाव के लिए नहीं बल्कि नाराज लोगों को उपकृत करने के लिए किया गया है। अंदरखानों का कहना है कि चुनाव प्रबंध समिति में कई ऐसे नेताओं को रखा गया है जो खुद अपना चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में प्रदेश के चुनाव का प्रबंधन कैसे करेंगे। इसी तरह चुनाव की सबसे अहम घोषणा समिति की कमान जयंत मलैया को दी गई है, उनके अधीन वरिष्ठ नेता प्रभात झा को रखा गया है जो कि पूर्व अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय पदाधिकारी तक रह चुके हैं, पुष्य मित्र भार्गव को छोड़ दें तो समिति में कोई यंग एनर्जेटिक विजन वाला नेता नजर नहीं आता। जिला संयोजकों की बात करें तो यहां घर बैठे बुजुर्गों को शामिल कर इतिश्री की गई है। इनका उपयोग चुनाव में कितना हो पाएगा किसी को पता नहीं है।
अब ठाकुरवाद भी चलेगा
बीजेपी मुख्यालय में एक बार फिर खजांची रहे ठाकुर की वापसी हो गई है। कुछ साल पहले बीजेपी मुख्यालय के हिसाब में करोड़ों का हेर फेर का आरोप ठाकुर पर लगा था। भाईसाहब ने ये गड़बड़ी पकड़ी थी, उन्होंने सबूतों के साथ पूरा मामला हाईकमान को भेजा था। उसके बाद ठाकुर की रवानगी कर दी गई थी, लेकिन मामा ने ठाकुर को आश्रय दिया था। केन्द्रीय मंत्री को एमपी बीजेपी के चुनाव की अहम जिम्मेदारी मिलने के बाद खजांची ठाकुर की फिर वापसी हो गई है। वे अब बीजेपी की अहम बैठकों में देखे जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि चुनावी कामकाजी समिति में ठाकुर का नाम शामिल किया जा सकता है, केन्द्रीय मंत्री का प्रयास है कि एक बार फिर खजाने की चाबी ठाकुर साहब को सौंप दी जाए, लेकिन भाईसाहब इस मामले में सहमत नहीं है। अब देखना है कि चुनावी मौसम को देखते हुए भाई साहब अपने सिद्धांतों से समझौता करते हैं, या फिर अपनी बात पर अड़े रहते हैं।
पंडितजी पर एजेंसियों की नजर
आईएएस और मंत्रियों की दलाली करने वाले पंडितजी केन्द्रीय एजेंसी की नजर में चढ़ गए हैं, पंडितजी की पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें ये बात खुद राज्य की खुफिया एजेंसी के एक पदाधिकारी ने बुलाकर बताई, साथ में समझाईश भी दी कि संभलकर काम किजिए। अब आप सोच रहे होंगे कि एजेंसी के पदाधिकारियों को पकड़ा धकड़ी करना चाहिए और ये समझाईश दे रहे हैं, तो साहब समझ जाईए कि इनका भी हिसाब किताब पंडितजी देख रहे हैं। पंडितजी का नाम जानना चाहते हैं तो मंत्रालय में बैठे आला अफसर या फिर कुछ कद्दावर मंत्रियों के बंगले पर निगाह रखिए वहां तफरीह करते मिल जाएंगे। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें काले कोट वाले पंडितजी बोर्ड ऑफिस के पास आलीशान मल्टीस्टोरी में रहते हैं।
महिला नेत्री की कसम
प्रदेश के कद्दावर मंत्री इन दिनों एक महिला नेत्री से खासे परेशान हैं। महिला नेत्री बीजेपी संगठन के पदाधिकारियों से मुलाकात कर मंत्री को देख लेने की बात कह रही हैं। मामला दिन ब दिन बिगड़ता जा रहा है। पहले मंत्री ने इसे हल्के में लिया था, लेकिन जब से पता चला है कि महिला नेत्री ने मंत्री को निपटाने की कसम खा ली है तब से मंत्री की सिट्टी पिट्टी गुम है। मंत्री ने महिला नेत्री के आका महाराज से इस संबंध में चर्चा की है, महाराज ने आश्वासन दिया है कि वे समझा देंगे। लेकिन महिला मंत्री के तेवर देखते हुए नहीं लगता कि वो मान जाएगी। अब मंत्री खुद चाहते हैं कि महिला नेत्री को टिकट मिल जाए जिससे कि वो अपने चुनाव पर फोकस करे, तो मंत्री का पीछा छूट जाएगा।
क्या बावरिया बनेंगे अग्रवाल
कांग्रेस प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल को लेकर कांग्रेस नेताओं में चर्चा है कि क्या ये भी बावरिया बनकर रह जाएंगे। दरअसल 2018 के चुनाव में एमपी का प्रभार मिलने के बाद दीपक बावरिया ने नया पॉवर सेंटर बनने का प्रयास किया था, लेकिन बाद में कमलनाथ ने उन्हें हटवा दिया। अब यही हाल जेपी अग्रवाल के साथ हो रहा है। अग्रवाल प्रदेश में अपना रुतबा जमाने के लिए कमलनाथ से अलग लाईन खींचने की कोशिश कर रहे हैं। अब चर्चा चल निकली है कि क्या कमलनाथ इन्हें चुनाव से पहले हटाकर बावरिया जैसा बावरा बनाने में सफल हो पाएंगे या फिर अग्रवाल का नया पॉवर सेंटर चालू रहेगा।
आदिवासी विधायकों की सिफारिश डस्टबीन में
पीएम से लेकर सीएम तक आदिवासी हितैषी होने का दावा कर रहे हैं, वहीं उनके एक मंत्री ने 20 आदिवासी विधायकों की सिफारिश को डस्टबीन में डाल दिया है। वैसे सही भी है मंत्री अपना हित देखे या आदिवासी विधायकों का। मामला धन संसाधन विभाग में ईएनसी बनाने का है। आदिवासी विधायक चाहते थे कि रिटायर चीफ इंजीनियर एमएस डाबर को संविदा पर ईएनसी बना दिया जाए। लेकिन मंत्री ने अपने चहेते रिटायर अधीक्षण यंत्री शिशिर कुशवाह को ईएनसी बना दिया। उनकी सिफारिश को डस्टबीन में डालने और जूनियर को ईएनसी बनाने पर आदिवासी विधायक खासे नाराज हुए। मामला उपर तक जाता उससे पहले ही मंत्री ने प्रमुख आदिवासी विधायकों को ही सेट कर लिया। अब सेटिंग कैसे की जाती है मुझे नहीं लगता यहां ये बताने की जरूरत है।
एक्सटेंशन वाली खबर से माननीय नाराज
सरकार और माननीय के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हाल ही में माननीय ने कुछ मंत्रियों और आईएएस अफसरों पर शिकंजा कसा तो सरकार के नुमाइंदों ने खबर उड़ा दी कि माननीय एक्सटेंशन के लिए दबाव बना रहे हैं। इस खबर के बाद माननीय काफी उखड़े हुए हैं। उनका कार्यकाल अक्टूबर में समाप्त हो रहा है। अंदरखानों की माने तो माननीय ने सबकी कुंडली बनाकर तैयार कर ली है अक्टूबर में जाने से पहले कोई बड़ा धमाका कर सकते हैं। हालांकि, सरकार का मैनेजमेंट सिस्टम एक्टिव हो गया है। सरकार को पता है कि चुनाव से पहले यदि कोई भी बड़ा धमाका होता है तो इसका सीधा नुकसान सरकार को ही होगा। बहरहाल लोकायुक्त और सरकार के बीच संवाद बनाने का प्रयास जारी है, इसमें कितनी सफलता मिलती है ये तो समय ही बताएगा। आप बस इंतजार का मजा लिजिए....।