NEW DELHI. विपक्षी एकता के लिए पटना में हुई महाबैठक में जुटे 15 विरोधी दलों के नेताओं ने लोकसभा चुनाव-2024 में बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इसका सीधा असर लोकसभा चुनाव में 282 सीटों पर पड़ सकता है। 12 राज्यों की इन 282 सीटों में से अभी 1117 विपक्षी पार्टियों और 165 बीजेपी के पास हैं। पटना की महाबैठक में जुटे 15 दलों के पास अभी लोकसभा की करीब 150 सीटें हैं। वहीं विपक्ष की इस बैठक से दूरी बनाने वाले बीजू जनता दल (BJD), वायएसआर कांग्रेस (YSRC), भारत राष्ट्र समिति (BRS), बहुजन समाज पार्टी (BSP),शिरोमणीअकाली दल (SAD) और तेलगू देशम पार्टी (TDP) जैसे दूसरे सियासी दलों के खाते में लोकसभा की 59 सीटें हैं। आइए आपको बताते हैं कि लोकसभा चुनाव-2024 में मोदी सरकार को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने की कवायद में जुटे 15 राज्यों के क्षत्रप किस तरह बीजेपी के खेल बिगाड़ सकते हैं।
12 राज्यों की इन 282 सीटों पर पड़ सकता है असर
यदि पटना की बैठक के ऐलान के मुताबिक यदि विपक्षी दलों के नेता बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ते हैं तो इसका सीधा असर 12 राज्यों की 282 लोकसभा सीटों पर पड़ सकता है। इन 282 सीटों में अभी 117 पटना की बैठक में शामिल हुईं विपक्षी पार्टियों और 165 बीजेपी के पास है। बाकी सीटें अन्य पार्टियों के पास हैं, जो अभी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर हुई विपक्ष की महाबैठक में शामिल 15 पार्टियों के पास अभी अपने-अपने राज्यों में लोकसभा की करीब 150 सीटें (कांग्रेस की कुल 52 सीटों सहित) हैं। इसमें मुख्य रूप से कांग्रेस की 52 सीटों के अलावा, बिहार में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के पास 16, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की 23, तमिलनाडु में DMK की 24, महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की 6, NCP की 4, झारखंड में JMM के पास 1, जम्मू कश्मीर में NC के पास 3, पंजाब में आम आदमी पार्टी (APP) की 2, सीपीआई की 2 और सीपीआईएम की 3 सीट शामिल हैं।
किस तरह BJP का गणित बिगाड़ सकते हैं क्षेत्रीय दल
लोकसभा चुनाव 2019 में 169 सीटें ऐसी थी, जहां बीजेपी का क्षेत्रीय दलों से सीधा मुकाबला हुआ था। इनमें मुख्य रूप से यूपी की 74 सीट, बंगाल की 39 सीट, ओडिशा की 19 सीट, महाराष्ट्र की 10 सीट, बिहार की 15 सीट और झारखंड, कर्नाटक की 6-6 सीट शामिल थीं। इन 169 सीटों में 128 सीटों पर चुनाव में कांग्रेस बहुत कम सीटों पर सीधे मुकाबले की स्थिति में थी। खासकर यूपी में लोकसभा की 74, पश्चिम बंगाल में 39, ओडिशा में 19 सीटें पर वो सीधे मुकाबले में थी ही नहीं। यानी इन तीन राज्यों में कांग्रेस का असर न के बराबर था। माना जा रहा है कि यदि लोकसभा चुनाव- 2024 में विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ते हैं तो इन सभी सीटों पर मुख्य मुकाबला बीजेपी, सपा, टीएमसी, शिवसेना, एनसीपी, जेडीयू, आरजेडी, डीएमके और जेएमएम जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के बीच ही होगा।
पिछले चुनाव में 97 सीटों पर क्षेत्रीय दलों में रहा मुकाबला
लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों के मुताबिक देशभर में 97 लोकसभा की सीटें ऐसी थीं जहां क्षेत्रीय दल ही एक-दूसरे के खिलाफ मुकाबले में थे। मतलब किसी राष्ट्रीय पार्टी के बजाय क्षेत्रीय दल ही पहले या दूसरे नंबर पर रहे। लोकसभा की इन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस चुनाव लड़ीं भी तो तीसरे या चौथे नंबर पर रहीं। इन 97 सीटों में से मुख्यरूप से तमिलनाडु की 27, महाराष्ट्र की 16, बिहार की 16 और आंध्र प्रदेश की 25 सीटें शामिल थीं। बाकी की 13 सीट अन्य क्षेत्रीय दलों के खाते में गईं। अब यदि विपक्षी एकजुटता के हिसाब से इन 97 में से महाराष्ट्र और तमिलनाडु की 43 सीटों की बात की जाए, जहां पहले ही विपक्ष का गठबंधन है तो 2024 में बाकी की 54 सीटों पर बीजेपी को विपक्ष से कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा।
79 सीटों पर क्षेत्रीय दल वर्सेज कांग्रेस का मुकाबला हुआ था
पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 79 सीटें ऐसी रहीं जहां मुकाबला कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच हुआ। इसमें मुख्य रूप से पंजाब की 10 सीटों पर कांग्रेस और अकाली, तेलंगाना की 11 पर कांग्रेस और बीआरएस, केरल में 15 सीटों पर कांग्रेस-सीपीएम, बिहार में ऐसी 7 सीटें रहीं जहां कांग्रेस का जेडीयू या अन्य क्षेत्रीय दल के बीच मुकाबला हुआ। इसके अलावा अन्य दूसरे राज्यों की 36 सीटों पर भी इसी तरह का चुनावी मुकाबला हुआ। अब यदि 2024 के लिहाज से देखा जाए तो इनमें 36 सीटें ऐसी हैं जहां फिलहाल विपक्ष की एकजुटता संभव नजर नहीं आ रही है। ऐसे राज्यों में केरल और तेलंगाना भी शामिल है जहां कांग्रेस का चुनावी गठबंधन नहीं है।
190 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी में हुआ सीधा मुकाबला
लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों के अनुसार बीजेपी और कांग्रेस के बीच 190 सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ था। इनमें 175 सीटों पर बीजेपी जीती थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ 15 सीट जीत पाई थी। इनमें मुख्य रूप से एमपी की 29, गुजरात की 26, महाराष्ट्र की 15, राजस्थान की 24, कर्नाटक की 2, हरियाणा की 9, छत्तीसगढ़ की 11, असम की 9, पंजाब की 3, उत्तराखंड और हिमाचल की 9 सीटें और दिल्ली की 7 सीट शामिल हैं।
विपक्ष की महाबैठक से दूर BRS, BJD, YSR और JDS की सियासी ताकत कितनी?
अब यदि हम विपक्ष की उन पार्टियों के क्षत्रपों की ताकत पर नजर डालें, जो पटना में विपक्षी एकता की महाबैठक से दूर रहे और जिनका अभी बीजेपी से भी कोई गठबंधन नहीं है तो ऐसी पार्टियों में ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बीजेडी, तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की बीआरएस (पूर्व में टीआरएस), आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी की वायएसआर कांग्रेस और कर्नाटक के पूर्व सीएम कुमारस्वामी की जेडीएस प्रमुख और पंजाब में सुखबीरसिंह बादल की एसएडी प्रमुख है। आपको बताते हैं कि लोकसभा सीटों के लिहाज से इनकी क्या ताकत है और ये अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के 15 दलों की मोर्चाबंदी के मंसूबों के कितना प्रभावित कर सकते हैं।
तेलंगाना में ये है केसीआर की बीआरएस की ताकत
सबसे पहले नजर डालते हैं तेलंगाना के सीएम के.चंद्रशेखर राव की बीआरएस और उसकी ताकत पर। बीआरएस और कांग्रेस में राजनीतिक टकराव किसी से छुपा नहीं है। कर्नाटक में चुनाव जीतने के बाद सीएम सिद्धरमैया सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के लिए कांग्रेस ने कई विपक्षी दलों को न्योता दिया था, लेकिन उसने केसीआर को निमंत्रण नहीं भेजा था। इसके बाद केसीआर ने कांग्रेस ने हमला बोलते हुए कहा था- हाल ही में आपने कर्नाटक चुनाव देखा है, वहां बीजेपी हार गई और कांग्रेस जीत गई। कोई जीत गया, कोई हार गया। लेकिन क्या बदलेगा? क्या कोई बदलाव होगा। नहीं, कुछ बदलने वाला नहीं है। माना जा रहा है कि पटना में होने वाली बैठक में केसीआर के शामिल न होने के पीछे एक बड़ी वजह कांग्रेस है। पिछले दिनों बीआरएस ने तेलंगाना के खम्मम में एक महारैली का आयोजन किया था लेकिन इस महारैली में बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव नजर नहीं आए। इस पर सवाल उठने पर नीतीश कुमार ने कहा था कि जिन लोगों को रैली में बुलाया गया था, वे वहां पहुंचे। यानी केसीआर ने उन्हें आमंत्रित नहीं किया था और वे पहले से पटना में होने वाली विपक्षी एकजुटता की बैठक से दूरी बनाने का मन बना चुके थे। तेलंगाना में बीआर की ताकत की बात की जाए तो अभी 119 विधानसभा सीटों में से 88 पर बीआरएस का कब्जा है। इससे पहले उसकी राज्य में 63 सीटें थीं। यानी केसीआर की राजनीतिक ताकत बढ़ी है। लोकसभा में केसीआर की पार्टी के 9 सांसद हैं यानी तेलंगाना में चुनावी संभावनाओं के लिहाज से राव का सपोर्ट किसी भी पार्टी के लिए मायने रखता है।
ओडिशा में मजबूत बीजेडी की नीति एकला चलो रे
उल्लेखनीय है कि विपक्ष के महागठबंधन की मुहिम के लिए नीतीश कुमार ने ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी के प्रमुख नवीन पटनायक से भी मुलाकात की थी। हालांकि, इस मुलाकात के बाद पटनायक ने साफ कर दिया था कि वे राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे। वैसे भी राज्य में उनकी पूरी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ रही है। इतना ही नहीं पटनायक ऐसे नेता माने जाते हैं, जिनका पूरा फोकस ओडिशा की राजनीति पर ही रहता है। वे केंद्रीय मुद्दों से अक्सर दूरी बनाकर चलते हैं। यदि पटनायक की राजनीतिक ताकत की बात की जाए तो लोकसभा में अभी उनके 12 सांसद हैं। वहीं राज्य की 146 विधानसभा सीटों में से 112 सीट पर उनकी पार्टी का कब्जा है। यानी केंद्र और राज्य दोनों की जगहों पर पटनायक मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में बीजेडी का विपक्ष के गठबंधन में शामिल न होने से बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी की कोशिशों को नुकसान पहुंचेगा।
आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस ताकतवर
अब आंध्र प्रदेश की बात की जाए तो यहां जगन मोहन रेड्डी की वायएसआर कांग्रेस की सरकार है। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 175 सीटों में से 151 सीटें जीती थीं। यानी मौजूदा समय में प्रदेश में उनकी मजबूत पकड़ है। लोकसभा में उनके 22 सांसद हैं यानी विपक्षी दलों के साथ न आने पर इस राज्य में भी बीजेपी के खिलाफ एकजुट विपक्ष के लक्ष्य को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। राज्य में जगन मोहन रेड्डी की ताकत के कारण ही बीजेपी उन पर नजर गढ़ाए हुए है। हालांकि, जगन ने भी अभी तक बीजेपी से नजदीकी बनाए रखने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया है। वे अभी भले ही एनडीए में शामिल न हों, लेकिन कई मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन करते रहे हैं। वे ऐसे कई विपक्षी मुद्दों पर भी किनारा करते रहे हैं, जिनके साथ कांग्रेस खड़ी नजर आती है।
कर्नाटक में सिमटती जेडीएस बीजेपी के करीब
कर्नाटक में हाल के विधानसभा चुनाव से पहले तक जेडीएस की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में उसकी सीटें कम हो गईं। उसे सिर्फ 19 सीटें मिलीं जबकि 2018 में उसे 37 सीटें मिली थीं। इससे पहले 2013 में उसकी 40, 2008 में 28 और 2004 में 58 सीटें थीं यानी वो राज्य में लगातार अपना जनाधार खो रही है। वहीं लोकसभा में अभी जेडीएस का सिर्फ एक ही सांसद है। राज्य में उसके कांग्रेस से रिश्ते अच्छे नहीं हैं। चर्चा है कि जेडीएस लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के संपर्क में है। वे लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी से चार सीटें मांग रही है। विगत 6 जून को बेंगलुरु में जेडीएस के सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा ने बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने की कोशिशों पर कहा था कि क्या देश में एक भी पार्टी ऐसी है, जिसका बीजेपी से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है? उनके इस बयान को बीजेपी से निकटता की संभावना का संकेत माना गया था। यही वजह है कि वो या उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी विपक्षी एकता के लिए पटना बैठक में शामिल नहीं हुए।
विपक्ष के नेता चाहे जितना हाथ मिला लें, दिल नहीं मिलने वालेः अमित शाह
अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के विपक्षी नेताओं के दावों पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्षी दलों के लोग कितने भी हाथ मिला लें, लेकिन इनके दिल नहीं मिलने वाले हैं। उन्होंने कहा कि ये कभी साथ नहीं आ सकते हैं। 2024 में भी बीजेपी की जीत सुनिश्चित है। लोकसभा चुनाव-2024 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 300 से ज्यादा सीटें जीतेगी। वहीं बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने विपक्षी बैठक पर तंज करते हुए कहा- क्या से क्या हो गया। उन्होंने कहा कि जब मैं नीतीश कुमार को राहुल गांधी का स्वागत करते हुए देखता हूं तो लगता है राजनीति में क्या से क्या हो गया। लालू यादव को 22 महीने और नीतीश कुमार को 20 महीने के लिए राहुल गांधी की दादी ने जेल में बंद कर दिया था। दोनों नेता महीनों तक जेल की सलाखों के पीछे थे, लेकिन आज ये सभी गलबहियां कर रहे हैं। ये देख के मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा है। लेकिन ये चाहे कितनी गलबहियां कर लें कुछ नहीं होने वाला। अगले लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार फिर बड़े बहुमत से केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाएगी।