मप्र में बीजेपी के दिग्गजों में जातिगत पेंच, एक की राह आसान, लेकिन सात सीटों पर कांटे की टक्कर, जीत के लिए भेदना होगा चक्रव्यूह

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Jitendra Shrivastava
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मप्र में बीजेपी के दिग्गजों में जातिगत पेंच, एक की राह आसान, लेकिन सात सीटों पर कांटे की टक्कर, जीत के लिए भेदना होगा चक्रव्यूह

अरुण तिवारी, BHOPAL. बीजेपी ने हारी सीटें जीतने के लिए पांसे तो फेंक दिए हैं, लेकिन पौ बारह आएंगे यह कहना मुश्किल हैं। विधानसभा चुनाव की महाभारत में बीजेपी ने महारथी उतार दिए हैं, लेकिन ये महारथी जातिगत समीकरण के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। इससे निकलने के लिए इनको इस चक्रव्यूह को भेदना होगा। चुनाव में जाति के चक्रव्यूह को भेदना इतना आसान नहीं होता है। बीजेपी ने चुनावी कुरुक्षेत्र में हारी सीटों पर सात सांसदों को उतारा है जिनमें से तीन केंद्रीय मंत्री हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते समेत सांसद रीति पाठक, राकेश सिंह, गणेश सिंह और उदयप्रताप सिंह शामिल हैं। इनके साथ ही आठवां नाम बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का है। इन आठ नामों में सबसे आसान राह प्रहलाद पटेल की हो सकती है। लेकिन बाकी सात दिग्गज जातिगत समीकरणों में फंस गए हैं। आइए आपको दिखाते हैं इन सीटों के जातिगत समीकरण की पड़ताल करती रिपोर्ट।

दिमनी : नरेंद्र सिंह तोमर

  • ठाकुर - 84 हजार
  • ब्राह्मण - 20 हजार
  • गुर्जर - 12 हजार
  • एससी - 25 हजार
  • लोधी समाज - 15 हजार

यहां पर ठाकुर और ब्राह्मण समाज के निर्णायक वोटों के साथ ही गुर्जर, एससी और लोधी समाज की भी जीत में अहम भूमिका है। ठाकुर नेताओं में बीजेपी से नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस विधायक रविंद्र सिंह तोमर हैं। वहीं ब्राह्मण समाज से बीएसपी के बलवीर दंडोतिया हैं। यदि ठाकुर और ब्राह्मणों के वोट का ध्रुवीकरण उम्मीदवारों के पक्ष में हो गया तो गुर्जर, एससी और लोधी समाज के वोट पर जीत का फैसला होगा। 2018 में दो तोमर उम्मीदवारों में वोट बंटने से ब्राह्मण समाज के गिर्राज दंडोतिया जीते थे। वहीं 2013 में भी यही हुआ और बीएसपी के बलवीर दंडोतिया ने बाजी मारी।

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नरसिंहपुर : प्रहलाद पटेल

  • लोधी - 30 हजार
  • ब्राह्मण - 25 हजार
  • मुस्लिम - 15 हजार
  • एससी - 15 हजार
  • कुर्मी - 7 हजार

यह सीट पिछले 15 साल से बीजेपी के पास है। यहां से प्रहलाद पटेल को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है। लेकिन पिछले तीन बार से यहां से चुनाव उनके भाई जालम सिंह पटेल जीतते रहे हैं। यहां पर जातिगत और राजनीतिक समीकरण बीजेपी के पक्ष में रहे हैं। यही कारण है कि प्रहलाद पटेल की राह आसान नजर आती है।

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जबलपुर पश्चिमः राकेश सिंह

  • ब्राह्मण - 60 से 70 हजार
  • सिक्ख - 20 से 25 हजार
  • कुशवाह - 10 से 15 हजार
  • ठाकुर - 10 से 15 हजार
  • एससी - 20 से 25 हजार

राकेश सिंह जबलपुर से चार बार के सांसद हैं। सांसदी की राह उनकी भले ही आसान रही हो, लेकिन विधायकी की राह बेहद मुश्किल नजर आती है। यहां पर मौजूदा विधायक कांग्रेस के तरुण भनोट हैं जो दो बार से लगातार जीत रहे हैं। राकेश सिंह लोधी समुदाय से आते हैं तो भनोट ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। यहां पर ब्राह्मण, सिक्ख और एससी निर्णायक वोटर हैं। जीत के लिए इन तीनों वर्गों का वोट हासिल करना जरूरी है। राकेश सिंह के सामने वोटों का जाति के आधार पर ध्रुवीकरण रोकना सबसे बड़ी चुनौती है। ब्राह्मण वोटर यदि जाति के आधार पर उम्मीदवार के पक्ष में चले गए तो राकेश सिंह को मुश्किल हो जाएगी।

इंदौर एक : कैलाश विजयवर्गीय

  • ब्राह्मण - 40 हजार
  • व्यापारी - 30 से 35 हजार
  • मुस्लिम - 10 से 15 हजार

कैलाश विजयवर्गीय मालवा और खासतौर पर इंदौर के सबसे बड़े बीजेपी नेता हैं। वे भले ही इंदौर की तीन अलग-अलग विधानसभा सीट से आसान जीत दर्ज कर चुके हों, लेकिन इस बार राह थोड़ी कठिन है। यहां पर मौजूदा विधायक कांग्रेस के संजय शुक्ला हैं। संजय ब्राह्मण वर्ग से आते हैं और यहां पर ब्राह्मण समुदाय निर्णायक भूमिका में है। कैलाश विजयवर्गीय को जीत के लिए इस समीकरण को साधना बेहद जरुरी है। यानी इस बार लड़ाई कांटे की होने वाली है।

निवास : फग्गन सिंह कुलस्ते

गौंड आदिवासी वोटर

यहां पर लड़ाई सीधे तौर पर जाति की नहीं है। फग्गन सिंह कुलस्ते गौंड आदिवासी समुदाय से आते हैं तो मौजूदा विधायक कांग्रेस के डॉ. अशोक मस्कोले हैं जिनकी जाति भी गौंड आदिवासी है। फग्गन सिंह लगातार यहां से सांसद रहे हैं और केंद्र में मंत्री भी, लेकिन यहां पर इस बार विश्वास और विकास का संकट है। पेशाब कांड और चप्पल कांड का आदिवासियों पर प्रभाव है। बड़ा आदिवासी चेहरा होने के कारण फग्गन के लिए ये प्रतिष्ठा की लड़ाई है और यही कारण है कि उनके लिए जीत राह आसान नजर नहीं आती। यह बात इसलिए मायने रखती है क्योंकि 2018 में कांग्रेस के मस्कोले ने फग्गन के भाई रामप्यारे कुलस्ते को 28 हजार वोटों से हराया था। यानी अब माहौल बदलने लगा है।

गाडरवारा - उदयप्रताप सिंह

  • कौरव - 45 से 50 हजार
  • ब्राह्मण - 30 से 35 हजार
  • लोधी - 10 से 12 हजार
  • राजपूत - 8 से 10 हजार
  • एससी - 20 से 25 हजार

गाडरवारा में जातिगत समीकरणों का बड़ा पेंच है। यहां से मौजूदा विधायक कांग्रेस की सुनीता पटेल हैं। सुनीता कौरव समुदाय से आती हैं और कौरव यहां पर निर्णायक वोटर हैं। उदयप्रताप सिंह जाट समुदाय से आते हैं। उदय भले ही तीन बार से सांसद हों, लेकिन विधानसभा चुनाव में जाति के समीकरण में उलझ गए हैं। 2018 से वे कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीतीं लेकिन इससे पहले के दो चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 35 हजार और 29 हजार वोट हासिल किए। इस बार उदयप्रताप सिंह को जीत के लिए सुनीता पटेल का जातिगत कनेक्शन तोड़ना होगा। लेकिन यह काम उनके लिए बहुत मुश्किल साबित होने वाला है।

सीधी - रीति पाठक

  • ब्राह्मण - 40 से 45 हजार
  • क्षत्रिय - 40 से 45 हजार
  • यादव और साहू - 30 हजार
  • एससी - 20 से 25 हजार
  • अन्य - 25 से 30 हजार

यहां पर ब्राह्मण-ठाकुर जाति निर्णायक भूमिका में होती है। यहां पर सबसे ज्यादा जाति का जोर ही चलता है। इस सीट के मौजूदा विधायक बीजेपी के ही केदारनाथ शुक्ला थे जो चौथी बार के विधायक हैं और ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। उनका टिकट काटकर उनका विरोध लेना ब्राह्मण वोट बैंक पर असर डाल सकता है। दो बार की सांसद रीति पाठक भी ब्राह्मण वर्ग से आती हैं, लेकिन उनको ब्राह्मण के अलावा अन्य जातियों के वोट पर भी फोकस करना होगा।

सतना - गणेश सिंह

गणेश सिंह सतना से लगातार चार बार के सांसद हैं। इस बार उनको सतना सीट जिताने की जिम्मेदारी सौंपी है। यहां पर मौजूदा विधायक कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाह हैं। यहां जातिगत समीकरणों का जोर है। बीजेपी ने पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी को इस बार यहां से टिकट नहीं दिया, वे दो बार यहां से विधायक बन चुके हैं। इसका असर ब्राह्मण वोटों पर पड़ेगा। कुशवाह समाज यहां पर निर्णायक भूमिका में है। और गणेश सिंह जाति के इसी समीकरण में फंसे हैं।

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