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इसका सीधा मतलब ये हुआ की बिना बोर्ड मिटिंग के ही ये सारे फैसले लिए गए। अब जब मामला तूल पकड़ रहा है तो आरोप ये लगाए जा रहे हैं कि महानिदेशक मुखर्जी दो बार एप्को में पोस्टिंग पा चुके हैं...और उनके वहां मौजूद कुछ कर्मचारियों से नजदीकियां भी है...इसलिए ये पूरी हेरफेर की गई।
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