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बस अब मध्यप्रदेश की सियासत में यही शोर सब जगह सुनाई दे रहा है और चुनाव तक देता भी रहेगा. जो बीजेपी जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी से जूझ रही है. वो इस गुस्से को खत्म करने की जुगत भले ही न लगा सकी हो लेकिन इसकी काट जरूर ढूंढ लाई है. मध्यप्रदेश बीजेपी के आला नेता भले ही ये कहते सुने जा रहे हों कि कार्यकर्ता ही चाणक्य है. भले ही कार्यकर्ता में जान फूंकने खुद पीएम उनसे वीसी के जरिए रूबरू होने वाले हों. लेकिन हकीकत कुछ और ही है. बीजेपी अब उस दांव को चल रही है जिसके बाद कार्यकर्ता की नाराजगी उसके लिए कोई मायने नहीं रखेगी. 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए यूपी चुनाव में आजमाया हुआ ये फॉर्मूला अब मध्यप्रदेश में बीजेपी का सहारा बनेगा.