बर्बरीक सिर्फ 3 बाणों से महाभारत खत्म कर सकते थे, लड़ते उसी की तरफ से, जिसका पलड़ा कमजोर होता, फिर कृष्ण ने मांग लिया सिर...

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बर्बरीक सिर्फ 3 बाणों से महाभारत खत्म कर सकते थे, लड़ते उसी की तरफ से, जिसका पलड़ा कमजोर होता, फिर कृष्ण ने मांग लिया सिर...

बर्बरीक महाभारत से बहुत पहले पूर्व जन्म में एक यक्ष थे, जिन्हें विष्णु भगवान का अपमान करने की वजह से ब्रह्मा जी ने श्राप दिया था। कहते हैं कि एक बार ब्रह्मा जी और कई अन्य देव बैकुंठ लोक आए और भगवान विष्णु से कहा कि धरती पर अधर्म बढ़ रहा है। उन्हें रोकने और अत्याचार बंद करने के लिए आपकी मदद लेने आए। भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि वे जल्द ही एक मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेंगे और पृथ्वी को पाप मुक्त करेंगे। तभी एक यक्ष ने देवताओं से कहा कि
इस कार्य के लिए भगवान विष्णु को पृथ्वी पर अवतार लेने क्या आवश्यकता है। वह अकेले ही सभी दुष्टों का संहार करने के लिए काफी है।

यह सुन ब्रह्मा जी को बहुत दुख हुआ। भगवान ब्रह्मा ने यक्ष को श्राप दे दिया- जब भी पृथ्वी पर पाप बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगा। तब, दुष्टों, आतताइयों का वध करने से पहले भगवान विष्णु पहले उसका वध करेंगे और वह एक दैत्य जाति में जन्म लेगा। इस श्राप के अनुसार यक्षराज को किसी दैत्य कुल में जन्म लेना था। यक्षराज यह बात सुनकर घबरा गए और उन्होंने ब्रह्मदेव से विनती की कि यक्ष, गंधर्व और देवता सिर्फ अच्छे कामों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन दैत्य दुष्ट, अधर्मी होते हैं और आतंक के लिए जाने जाते हैं। कृपया मुझे क्षमा करें और मुझे दैत्य कुल में जन्म लेने का श्राप ना दें।

बार-बार कहने पर ब्रह्मा जी को यक्षराज पर दया आ गई, लेकिन श्राप वापस नहीं हो सकता था। ब्रह्मा जी बोले- कि आप भगवान विष्णु की शरण में जाइए। वे ही कोई लीला रचकर आपकी मदद कर सकते हैं। यक्षराज बैकुंठ लोक पहुंचे और वहां विष्णु जी से भी यही विनती की। विष्णु जी ने भी श्राप लौटाने से मना कर दिया। कहा कि स्वयं सृष्टि के रचयिता द्वारा दिया गया कोई श्राप वापस नहीं हो सकता, लेकिन मैं तुम्हारी व्यथा समझता हूं और तुम्हारी सहायता के लिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम पांडव कुल में जन्म लोगे। महाभारत के युद्ध में तुम्हारा बहुत बड़ा योगदान होगा। साथ ही साथ कलयुग में सभी मनुष्य तुम्हारी पूजा अर्चना करेंगे।

कुछ समय पश्चात यक्षराज ने भीम के पोते के रूप में जन्म लिया। भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलावती/मौरवी का विवाह हुआ। कुछ समय पश्चात उन्होंने एक बहुत ही तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के सिर पर घने, सुनहरे, बाल होने की वजह से उसका नाम बर्बरीक पड़ा । बर्बरीक बचपन से ही बहुत ही तेजस्वी, होनहार, निडर था। बर्बरीक को जो भी शिक्षा मिली वह उसकी माता और श्रीकृष्ण से ही मिली। उसके गुरुओं के सिद्धांतों के अनुसार, बर्बरीक को हमेशा निर्बल, असहाय की ही मदद करनी चाहिए।

बर्बरीक अपने युद्ध कौशल के अलावा एक बहुत बड़ा योगी और शिव भक्त था। बहुत ही कम उम्र में बर्बरीक ने शिव की कठोर तपस्या करके उनको प्रसन्न कर दिया। शिव जी ने उसे वरदान में 3 दिव्य बाण दिए। इन बाणों की मदद से वह किसी भी युद्ध को कुछ क्षणों में खत्म कर सकता था। जब बर्बरीक को पता चला कि महाभारत का युद्ध अब टल नहीं सकता। पांडवों और कौरवों में युद्ध होकर ही रहेगा। तब वह अपनी माता से आज्ञा लेकर युद्ध भूमि की यह कहकर चल पड़ा कि मैं खुद युद्ध देखूंगा,  और उसी का साथ दूंगा जो युद्ध में कमजोर पड़ रहा होगा। 

दूसरी तरफ महाभारत का युद्ध होने से पहले श्री कृष्ण सभी योद्धाओं से मिलने जाते हैं। पूछते हैं कि अगर तुम्हे अकेले ही युद्ध खत्म करना पड़े तो कितना समय लगेगा।

अर्जुन ने कहा कि वह 28 दिन में युद्ध समाप्त कर देगा।
द्रोणाचार्य बोले कि वह 25 दिन में युद्ध समाप्त कर सकते हैं।
कर्ण ने कहा कि वह 24 दिन में युद्ध समाप्त कर सकता है।
भीष्म बोले कि वह 20 दिन में युद्ध खत्म कर देंगे।

यह सभी योद्धाओं के उत्तर जानकर कृष्ण चिंता में पड़ गए, क्योंकि उन्हें उन्हें बर्बरीक की विद्या के बारे में पता था। वह यह जानते थे कि बर्बरीक के पास तीन दिव्य बाण हैं और वह युद्ध भूमि की ओर चल पड़ा है। कृष्ण खुद बर्बरीक के गुरु रह चुके थे तो वे उससे मिलने पहुंचे। उसके पास पहुंच कर भी यही प्रश्न किया। बर्बरीक ने कहा कि वह युद्ध कुछ क्षणों में ही समाप्त कर देगा, लेकिन वह सिर्फ हार रहे पक्ष का ही साथ देगा। कृष्ण ने अचरज में आते हुए कहा कि तुम्हारे पास तो सिर्फ तीन बाण है कोई सेना नहीं है। तुम मृत्युलोक के सबसे बड़े युद्ध को सिर्फ तीन बाण से कैसे खत्म कर सकते हो?

बर्बरीक बोला- हे पूज्य दादा कृष्ण, शत्रु को मारने के लिए सिर्फ एक ही बाण काफी है। पहले पहले तीर से वह उन लोगों को चिन्हित करेगा, जिन्हें बचाना चाहता है। दूसरे बाण से उन लोगों को चिन्हित करेगा, जिन्हें मारना चाहता है और तीसरे बाण से मारने के लिए चिन्हित हुए लोगों को वध करके मेरा बाण वापस अपने तूणीर में आ जाएगा।

कृष्ण ने उसकी बात को परखने के लिए उससे कहा कि अगर वह पीपल के इस पेड़ पर जितने भी पत्ते हैं, सभी को भेद कर दिखाए तो वे मान जाएंगे। बर्बरीक उनकी यह परीक्षा स्वीकार कर लेता है, बाण को धनुष पर लगाकर, आंखें बंद करके, मन ही मन शक्ति का आह्वान करता है। यह देख कृष्ण तुरंत एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लेते हैं। बर्बरीक आंखें खोलता है और बाण छोड़ देता है। बाण क्षण से भी कम समय में सारे पत्तों को भेदकर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक जाता है। बर्बरीक कृष्ण से पैर हटाने के लिए कहते हैं,

हे कृष्ण मेरे बाण को सिर्फ पत्ते भेदने का ही निर्देश मिला है। मैं आपके पांव को नहीं भेद सकता इसलिए कृपया अपना पैर हटा लीजिए, जिससे कि आपके पैर के नीचे दबे पत्ते को उसका बाण भेद सके। अब कृष्ण को चिंता सताने लगी कि अगर किसी वजह से कौरव युद्ध में हारने लगे तो बर्बरीक कुछ ही क्षणों में अपने दादा जनों (पांडवों) का वध कर देगा। लेकिन बैकुंठ लोक में, यक्षराज (बर्बरीक) को मृत्यु लोक में दैत्य के रूप में जन्म लेने के बाद भी कुछ अच्छा करने का आश्वासन मिला था। लेकिन अगर बर्बरीक ने पांडवों का वध कर दिया तो विष्णु द्वारा यक्षराज को दिया आश्वासन बेकार जाएगा। 

अगले दिन श्रीकृष्ण एक ब्राह्मण का रूप लेकर बर्बरीक के पास आते हैं। ब्राह्मण बर्बरीक के पास आकर “भिक्षाम देहि” कहकर कुछ भिक्षा देने के लिए कहते हैं। बर्बरीक तुरंत अपने स्थान से उठकर ब्राह्मण देवता को प्रणाम करता है और कुछ भी मांगने के लिए कहता है। ब्राह्मण देवता तुरंत बर्बरीक से उसका शीश मांग लेते हैं। बर्बरीक भी अपना शीश देने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन एक ब्राह्मण का उससे सिर मांगना बर्बरीक को समझ नहीं आता। वह ब्राह्मण से विनती करता है कि उन्हें अपना असली रूप दिखाएं। ब्राह्मण देवता तुरंत कृष्ण बनकर बर्बरीक के सामने आ जाते हैं।

कृष्ण को पहचान कर बर्बरीक की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। वह कृष्ण से बोलता है कि मैं अपनी मां से बोल कर आया हूं कि युद्ध देखने जा रहा हूं, लेकिन आपको अपना शीश देने का वचन भी दे चुका हूं। ऐसे में मेरी युद्ध देखने की अभिलाषा अधूरी रह जाएगी। कृष्ण बर्बरीक को आश्वासन देते हैं, कि वह जरूर युद्ध देख पाएगा। बर्बरीक ने कृष्ण को सिर दे दिया। कृष्ण ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण किया और उसका सिर समीप ही एक पहाड़ी, जिसे खाटू कहा जाता था, वहां स्थापित हो गया। यहीं से बर्बरीक ने पूरे युद्ध को देखा। इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को एक वरदान दिया कि कलयुग में लोग उसे कृष्ण के अवतार की तरह पूजेंगे। आज इस स्थान को खाटू मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां पर बर्बरीक की खाटू श्याम के रूप में पूजा की जाती है। वे कृष्ण के अवतार माने जाते हैं, इसलिए श्याम नाम मिला। कृष्ण ने कहा था कि तुम्हारी वीरता की कथा पूरे विश्व में जानी जाएगी। कलयुग में मनुष्य तुम्हारी पूजा करेंगे और तुम्हारे सिद्धांतों पर चलेंगे। जब जब महाभारत की गाथा पढ़ी और सुनाई जाएगी, तुम्हारा नाम जरूर आएगा। श्रेष्ठ शूरवीरों , धनुर्धरों में तुम्हारी गणना होगी और ऐसा हुआ भी। बस यही थी आज की कहानी...