चुनाव का साल यानी बैठकों का मायाजाल. हर बार हो न हो लेकिन इस बार ये बैठकें वाकई बीजेपी के लिए मायाजाल ही साबित हो रही हैं. जिनकी तरफ टकटकी लगाए कार्यकर्ता उसी तरह बैठा रहता है जैसे किसी जादुगर का शो चल रहा हो. पूरी शिद्दत से उसके खत्म होने का इंतजार करता है. इस उम्मीद से कि जब जादू ओवर होगा तो सस्पेंस भी खत्म होगा. लेकिन न जादुगर का मायाजाल कभी समझ आता है न इस बार बीजेपी की बैठकों का मायाजाल समझ आ रहा है. कार्यकर्ता की उम्मीदे ठंडी पड़ती जा रही है. एक बार फिर एक बड़ी बैठक हुई. और उस बैठक से भी जो उम्मीद थी वो पूरी नहीं हुआ. नतीजा ये है कि पूरे प्रदेश में असंमज्स का माहौल है. पहले मुख्यमंत्री को लेकर यही हालात थे अब प्रदेशाध्यक्ष को लेकर यही स्थिति है.
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