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DAMOH. दमोह जिले के कुंडलपुर में माता रुक्मणी देवी की प्रतिमा 23 सितंबर को फिर स्थापित होने जा रही है। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के प्रयास से मां रुक्मणी देवी की प्रतिमा की विदिशा के ग्यारसपुर संग्रहालय से दमोह वापस लौट पाई थी। इस प्रतिमा के पीछे के कहानी, विवाद और लोगों की भक्ति बहुत कुछ बयां करती है।
प्रतिमा को संग्रहालय में रखने से हुआ था विवाद
बता दें कि कुंडलपुर में माता रुक्मणी देवी का मंदिर स्थित है। 4 फरवरी 2002 में रात को किसी ने मां रुक्मणी की प्रतिमा चोरी कर ली थी। इस मामले की शिकायत पटेरा थाने में की गई थी। उसके बाद देवी की प्रतिमा राजस्थान के हिंडोली जिला से अप्रैल 2002 में बरामद कर ली गई थी और विदिशा के ग्यारसपुर संग्रहालय में सुरक्षित रख दिया गया था। इस दौरान काफी विवाद हुआ था। बता दें कि माता रुक्मणी देवी की प्रतिमा 21 अगस्त 2019 में दमोह वापस आ गई थी। 2014 में प्रहलाद सिंह पटैल सांसद के रूप में नियुक्त किए गए थे, उस दौरान उन्होंने मूर्ति को वापस लाने का संकल्प लिया था। उस वक्त वह यह संकल्प पूरा नहीं कर सके। लेकिन जब 2019 लोकसभा चुनाव के बाद वह दोबारा सांसद और मोदी मंत्रीमंडल में पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय का मंत्री बनाया गया तब उन्होंने दमोह के लोगों का सपना पूरा कर दिखाया।
क्या है कुंडलपुर की कहानी?
कुंडलपुर की माता रुक्मणी देवी के पीछे की कहानी बड़ी रोचक है। दरअसल, कुणिडलपुर (वर्तमान में कुंडलपुर) में राजा भीष्मक का राज था, जिनके पांच बेटे और एक बेटी थी। पांच बेटों में सबसे बड़ा बेटा रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहू, रुक्मकेश, रुक्ममाली और इनकी बहन रुक्मणी थी। इनमें रुक्मी ने हटपूर्णक रुक्मिणी का विवाह चेदी देश के राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल के साथ तय कर दिया था। रुक्मी मन ही मन भगवान कृष्ण से नफरत करता था। देवी रुक्मिणी कृष्ण से विवाह करना चाहती थीं। इस दौरान भगवान कृष्ण ने वहां से रुक्मणी का हरण कर लिया था। बता दें कि रुक्मणी देवी की प्रतिमा का निर्माण 9वीं सदी में हुआ था। यह प्रतिमा 3.50 फीट ऊंची, दो फीट चौड़ी और डेढ़ टन वजनी है।