रावण से 9 दिन लड़े राम और दसवें दिन मनी विजयादशमी, जानें दशहरे के दिन शमी पूजा की दो कथाएं

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दशहरे के दिन शमी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। कौरवों की द्यूत में जीत के पीछे शमी पूजन मुख्य कारक था। महाभारत युद्ध से पहले एक और युद्ध हुआ था, जिसे अर्जुन ने अकेले ही लड़ा था। एक तरह कौरवों की विशाल सेना थी और दूसरी तरह अर्जुन अकेले थे। द्यूत यानी जुए में हार के बाद पांडवों को 12 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास मिला था। अज्ञातवास का नियम था कि इसमें अगर उनकी पहचान हो गई तो फिर से 12 साल वनवास भोगना पड़ेगा। पांडवों ने अज्ञातवास राजा विराट के यहां काटा था। युधिष्ठिर राजा के सलाहकार बने, भीम रसोइया, अर्जुन नृत्य सिखाने वाली बृहन्नला। नकुल-सहदेव ने भी रूप बदला। द्रौपदी रानी के यहां काम करने लगीं। 

कौरवों को सुराग मिला कि पांडव विराट के यहां मत्स्य प्रदेश में छिपे हैं। दुर्योधन ने भीष्म, कर्ण, अश्वत्थामा, द्रोण जैसे महारथियों से सुसज्जित सेना लेकर विराट पर आक्रमण कर दिया। उन्हें लगा कि पांडव वहां होंगे तो युद्ध जरूर करेंगे। पांडवों ने विराट के यहां जाने से पहले सभी अस्त्र-शस्त्र, अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष शमी के पेड़ में छिपा दिया था। विराट की सेना की अगुआई राजकुमार उत्तर कर रहे थे। अर्जुन उत्तर के सारथी बने और अपना गांडीव लेने शमी के पेड़ के पास गए। उत्तर ने पूछा कि ये महान योद्धा का लगता है। बृहन्नला बने अर्जुन ने कहा कि ये अर्जुन का है और मैं ही अर्जुन हूं। उत्तर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जिस दिन युद्ध हुआ, वह अज्ञातवास का आखिरी दिन था। उसी दिन विजयादशमी भी थी। अर्जुन ने अकेले ही पूरी कौरव सेना को हरा दिया। पांडवों ने शमी के पेड़ में अपने हथियार रखे थे, इसलिए दशहरे में शमी का काफी महत्व है।  

दशहरे की सबसे बड़ी कहानी राम-रावण युद्ध की है। मां सीता को खोजते हुए राम अपनी सेना के साथ लंका पहुंचे थे। 9 दिन तक चले युद्ध के दौरान श्रीराम मां दुर्गा की आराधना करते रहे और दसवें दिन उन्होंने रावण का वध कर विजय प्राप्त की। निराला की राम की शक्ति पूजा कविता इसी पर बेस्ड है कि राम ने कैसे शक्ति को प्रसन्न कर शक्ति अर्जित की। राम लड़ रहे हैं, लेकिन जीत नहीं मिल रही। फिर जांबवंत कहते हैं कि रावण इसलिए जीत रहा है कि उसके पास शक्ति है। आप भी शक्ति अर्जित कीजिए। वो किसी की बपौती नहीं है। शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन, जब तक ना हो सिद्धि रघुनंदन। राम हनुमान से 108 कमल के खास फूल बुलवाते हैं। राम फूल अर्पण कर रहे हैं। तभी देवी प्रकट होकर 108वां फूल ले जाती हैं। राम बंद आंखों से फूल टटोलते हैं तो नहीं मिलता। राम चिंतित हो जाते हैं। सोचते हैं कि मां मुझे राजीव लोचन यानी कमल के जैसे आंखों वाला कहती हैं, अपनी आंखें ही अर्पित कर देता हूं। कटार निकालकर आंख अर्पित करने ही वाले होते हैं कि देवी प्रकट हो जाती हैं।

राम एक आदर्श पुत्र, राजा, पति, भाई थे। श्रीराम जितने साहसी थे, उतने ही विनम्र थे। उन्हें पुरुषोत्तम कहा जाता है और हम उनके बताएं रास्ते पर चलने का प्रयास करते हैं। उनके द्वारा स्थापित संस्कार और मर्यादा भारतीय परंपरा की रीढ़ है।

एक और कथा है- महिषासुर ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। इस पर ब्रह्माजी महिषासुर को वरदान देते है कि मेरे दिए हथियार से तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महिषासुर को अपार शक्ति मिलने के बाद उस पर राक्षस प्रवृत्ति हावी होने लगी और उसने देवताओं को युद्ध में बुरी तरह पराजित कर देवलोक पर अधिकार कर लिया। विष्णु के कहने पर समस्त देवताओं ने मां भगवती की पूजा की और उनसे इस संकट में मदद करने का आह्वान किया। देवताओं की प्रार्थना सफल हुई और भगवान शिव के हृदय से एक दिव्य चमक जन्मी जिसके बाद देवी भगवती सभी देवों के ह्रदय में विराजमान हुई और सिंह की सवारी करने वाली दुर्गा ने समस्त राक्षसों का नाश कर दिया। 

विजयादशमी और शमी के वृक्ष की एक कथा और है। कथा के अनुसार, महर्षि वर्तन्तु के शिष्य कौत्स थे। महर्षि वर्तन्तु ने कौत्स से शिक्षा पूरी होने के बाद गुरु दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगी थीं। गुरु दक्षिणा देने के लिए कौत्स ने महाराज रघु के पास जाकर उनसे स्वर्ण मुद्राएं मांगते हैं, लेकिन राजा का खजाना खाली होने के कारण राजा ने उनसे तीन दिन का समय मांगा। राजा ने स्वर्ण मुद्राओं के लिए कई उपाय ढूंढने लगे। उन्होंने कुबेर से भी सहायता मांगी लेकिन उन्होंने भी मना कर दिया।

राजा रघु ने तब स्वर्ग लोक पर आक्रमण करने का विचार किया। राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कुबेर से राजा स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए कहा। इंद्र के आदेश पर कुबेर ने राजा के यहां मौजूद शमी वृक्ष के पत्तों को सोने में बदल दिया। माना जाता है कि जिस तिथि को शमी वृक्ष से स्वर्ण की मुद्राएं गिरने लगी थीं, उस दिन विजयादशमी का पर्व था। इसके बाद दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाने लगी।

जीवन में शक्ति और ऊर्जा का ही महत्व है। शक्ति से ही सारे काम होते हैं। शक्ति और ऊर्जा का होना जितना जरूरी है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि ये सही दिशा में प्रवाहित हो, तभी सकारात्मक प्रभाव मिलते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने शक्ति की उपासना के साथ शक्ति संभालने के गुर सिखाए हैं। शक्ति गलत दिशा में गई और विनाश निश्चित है। इतिहास उठाकर देख लीजिए, जो शक्ति संभाल पाया, उसी ने जग जीता है, जिसने शक्ति का दुरुपयोग किया, उससे महाविनाश हुआ है। भारतीय परंपरा इसलिए महान है कि हम शक्ति अर्जन के साथ शक्ति संभालना भी जानते हैं। बस यही थी आज की कहानी...