पार्वती को ब्याहने पहुंचे शिव तो सास ने की एक अनुनय, कई बातें सिखाते हैं महादेव, जानें काशी का रहस्य

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पार्वती को ब्याहने पहुंचे शिव तो सास ने की एक अनुनय, कई बातें सिखाते हैं महादेव, जानें काशी का रहस्य

शिव इकलौते देव हैं, इकलौते भगवान हैं, जो बाकायदा ब्याहने जाते हैं। शादी विष्णु की भी हुई, लेकिन लक्ष्मी उन्हें समुद्र मंधन में मिलीं। राम को सीता स्वयंवर में मिलीं। कृष्ण ने रुक्मिणी को उनकी मर्जी से भगाकर शादी की।। शिव अकेले हैं जो बारात लेकर पार्वती से शादी रचाने पहुंचे। और शादी भी क्या गजब की। पार्वती हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं। सभी देवता चाहते थे कि पार्वती का विवाह शिव से हो जाए, लेकिन शिव को मनाया कैसे जाएगा। देवताओं ने मदन यानी कामदेव को भेजा तो शिव ने उसे भस्म कर दिया। देवता फिर चिंतित हो गए। असल में शिव ने एक राक्षस ताड़कासुर को वरदान दिया था कि वो शिव के बेटे से मारा जाएगा। शिव ठहरे औघड़दानी, हमेशा तपस्या में लीन रहने वाले। विवाह हो तो कैसे। उधर, पार्वती ने भी प्रण कर लिया था कि विवाह तो वे भगवान शिव से ही करेंगी।

शिव को अपना वर बनाने के लिए माता पार्वती ने बहुत कठोर तपस्या शुरू की। उनकी तपस्या के चलते हाहाकार मच गया। बड़े-बड़े पर्वत डगमगाने लगे। ये देख भोले बाबा ने अपनी आंख खोली और पार्वती से आह्वान किया कि वो किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें। शिव ने कहा कि एक तपस्वी के साथ रहना आसान नहीं है। पार्वती अडिग थीं। उन्होंने साफ कर दिया था कि वो विवाह सिर्फ भगवान शिव से ही करेंगी। पार्वती की ये जिद देख भोलेनाथ पिघल गए और उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गए। शिव को लगा कि पार्वती उन्ही की तरह हठी है, इसलिए ये जोड़ी अच्छी बनेगी।

अब शादी की तैयारियां पर शुरू हो गईं। अब एक समस्या ये थी कि भगवान शिव एक योगी-तपस्वी ठहरे और उनके परिवार में कोई सदस्य नहीं था। वो आदिदेव ठहरे। मान्यता ये थी कि एक वर को अपने परिवार के साथ जाकर वधू का हाथ मांगना पड़ता है। अब ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव ने अपने साथ डाकिनियां, भूत-प्रेत और चुड़ैलों को साथ ले जाने का निर्णय किया। तपस्वी होने के चलते शिव इस बात से अवगत नहीं थे कि विवाह के लिए किस प्रकार से तैयार हुआ जाता है। डाकिनियों और चुड़ैलों ने उनको भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला पहना दी।

जब ये अनोखी बारात पार्वती के द्वार पहुंची, सभी देवता हैरान रह गए । वहां खड़ी महिलाएं भी डर कर भाग गई। भगवान शिव को इस विचित्र रूप में पार्वती की मां स्वीकार नहीं कर पाई और उन्होंने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया। स्थितियां बिगड़ती देख पार्वती ने शिव से प्राथना की वो उनके रीति रिवाजों के मुताबिक तैयार होकर आएं। शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और सभी देवताओं से कहा कि वो उनको खूबसूरत तरीके से तैयार करें। भगवान शिव को दैवीय जल से नहलाया गया, रेशमी फूलों से सजाया गया। भगवान शिव थोड़ी ही देर में कंदर्प यानी कामदेव से भी ज्यादा सुंदर लगने लगे। उनका गोरापन तो चांद को भी मात दे रहा था। जब भगवान शिव इस दिव्य रूप में पहुंचे, पार्वती की मां ने उन्हें तुरंत स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह समारोह संपन्न हुआ। बाद में कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया।

आखिर शिव सिखाते क्या हैं? शिव जीवन सिखाते हैं। वे परिवार का महत्व समझाते हैं। शादी करते हैं, बच्चे करते हैं। हमेशा परिवार को साथ लेकर चलते हैं।
शिव विषम परिस्थितियों में रहते हैं। वो बताते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में रहकर ही महान बना जा सकता है।
शिव का परिवार है, लेकिन वे संचय नहीं करते। कैलाश पर रहते हैं, उनका कोई घर नहीं है। 
शिव को नीलकंठ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने विष को गले में धारण किया है। इसका मतलब है कि बुराई को एक जगह रखना चाहिए और फैलने नहीं देना।
शिव तपस्वी हैं, लेकिन उन्हें नटराज भी कहा जाता है यानी गंभीरता उतनी ही, जितनी जरूरी है। कलाओं का होना भी आवश्यक है।
शिव सिखाते हैं कि संसार में इंसान को अघोर होना चाहिए। अघोर यानी जो भेदभाव नहीं करता। तभी मोक्ष संभव है। घोर या भेदभाव, भला-बुरा, मेरा-तेरा का भाव आते ही वो मोक्ष के मार्ग से भटक जाता है।
शिव का त्रिशूल सिखाता है कि जन्म, जीवन और मृ्त्यु तीनों शूल की तरह दुखदायी हैं, लेकिन हम कर्मों से इन्हें अपना हथियार बना सकते हैं।  
शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप सिखाता है कि स्त्री-पुरुष का समान महत्व है। इन दोनों से मिलकर ही सृष्टि का निर्माण होता है।

शिव यानी महाकाल। शिव को श्मशानवासी कहा जाता है। वो सिखाते हैं कि मृत्यु अटल है। हमेशा उत्सव में जियो। इसके लिए एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं। ये कहानी काशीनाथ सिंह की किताब काशी का अस्सी से है। हजारों साल पहले काशी महाश्मशान था। लोग यहां मुर्दे फूंकने आते थे और शाम होने से पहले लौट जाते थे। एक परिवार एक बार अपने परिजन का दाह संस्कार करने आया। कर्मकांड में कुछ ज्यादा समय लग गया, वे लोग जा नहीं पाए। रात श्मशान में गुजारने का फैसला किया। परिजन के जाने से ये लोग काफी दुखी थे। रात में देखा कि शिव वहां गणों के साथ प्रकट हुए और जलती चिता के चारों ओर वे और उनके गण नाचने लगे। ये सब देखकर ये लोग भयंकर डरे। शिव ने इन लोगों को शिक्षा दी कि जो चला गया, वो मेरा ही हिस्सा था, मेरे पास ही आ गया। चिंता मत करो, जीवन को उत्सव की तरह जियो, मौज में जियो। कहा जाता है कि ये ही लोग काशी के आदिपुरुष बने। काशी में यही अल्हड़ता, यही बेलौसी, यही मस्ती देखने को मिलती है। बस...यही थी आज की कहानी...