व्यक्ति बड़ा या संगठन- अगर बात बीजेपी को होती तो जवाब यकीनन संगठन ही होगा. कांग्रेस पर गुटबाजी का आरोप लगाने वाला हर बीजेपी नेता यही कहता है कि बीजेपी में संगठन ही सर्वोपरी है. लेकिन मध्यप्रदेश में अब बीजेपी का हाल बदलता दिखाई दे रहा है. बीजेपी की मजबूरी हो या बीजेपी के लिए जरूरी हो लेकिन अब पुराने नेताओं को अग्रिम पंक्ति में लाकर बड़ी जिम्मेदारी देना पार्टी की मजबूरी बन चुका है. पार्टी माने या न माने लेकिन क्षत्रपों की राजनीति अब बीजेपी में पनप चुकी है और अपनी ताकत भी दिखा रही है. चुनाव जीतने की मजबूरी के चलते अब संगठन ने भी इन नेताओं की ताकत को कबूल कर लिया है. कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर में आयोजन कराने का मौका मिलना और उसमें सफल साबित होना इस बात का सबूत है कि दिग्गज पार्टी पर हावी हो चुके हैं. कैलाश विजयवर्गीय के बाद अब पार्टी दूसरे और नेताओं को मौका देने के मूड में हैं. जो बहुत जल्द आलाकमान के साथ मंच साझा करते दिख सकते हैं.
भूले बिसरे दिग्गजों पर भरोसा करने के तीन कारण, चुनावी जीत के लिए क्षत्रपों के भरोसे BJP?
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