देश में सबसे अधिक चने की प्रजाति मध्यप्रदेश में बोई जाती है।कई किसान इसकी दो फसल काटते हैं। किसानों के सामने उकठा रोग और इल्लियों के प्रभाव से चने की फसल बचाने की बड़ी चुनौती रहती है। ऐसे में जरूरी है कि समय पर इस फसल पर ध्यान दें। चने की फसल की देखभाल कैसे की जाए, आइए आपको बताते हैं।
उकठा रोग से फसल को कैसे बचाएं
चने के प्रमुख रोगों में उकठा रोग मुख्य है। फसल की बुआई के 30 दिन में इसकी जड़ में काली धारी दिखे या फिर फसल पीलेपन लिए झुक जाएं तो समझ लें कि उकठा रोग लग गया है। उकठा रोग से फसल प्रभावित दिखे तो हल्की सिंचाई के बाद ट्राइकोडर्मा या सूडोमोनास का छिड़काव कर दें। जमीन गिली होने से इसका अच्छा प्रभाव मिलेगा। यदि किसान ने जेजी-12 या जेजी-36 लगाई हो तो उसे चिंता करने की बात नहीं है। दोनों किस्में रोगरहित हैं।
झुलसा रोग से बचाव का तरीका
अल्टरनेरिया झुलसा रोग भी चने की पैदावार को 50 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकते हैं। यह रोग फूल या फली बनते समय लगता है। इसमें पत्तियों पर छोटे, गोल-बैंगनी धब्बे बनते हैं। इससे बचावे के लिए 03 ग्राम मैंकोजेब, 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी या दो ग्राम मेटालैक्सिल 8 प्रतिशत मैंकोजेब 64 प्रतिशत लीटर पानी में छिड़काव कर दें।
इल्लियों से बचाने के लिए करें ये
चने में इल्लियों का प्रभाव फल आने पर दिखने लगता है। यदि किसान ने बुआई के समय ही आईपीएम विधियां अपनाएं हैं, तो इसकी चिंता करने की कोई बात नहीं। इसमें चने की हर 10 क्यारी के बाद एक से दो क्यारी धनिया की बुआई करनी चाहिए। धनिया की महक से इल्लियां दूर भागती हैं।
हार्वेस्टर से कर सकते हैं चने की फसल की कटाई
किसान अब चने की फसल को गेहूं-धान की तरह हार्वेस्टर से काट सकते हैं।जबलपुर के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (JNKV) के वैज्ञानिकों ने चने के बीज की ऐसी प्रजाति JG-24 विकसित की है, जिसका पौधा गेहूं-धान की तरह 65 से 70 सेमी ऊंचाई का होता है।इसकी फली ऊपर की ओर लगती है। दानों का आकार भी बड़ा होता है। तना इतना मजबूत होगा कि फली अधिक लगने पर भी गिरेगा नहीं। इसे आसानी से हार्वेस्टर से किसान काट सकेंगे।
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