आपकी थाली में परोसी जा रही मूंग खाने लायक नहीं

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Rahul Sharma
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आपकी थाली में परोसी जा रही मूंग खाने लायक नहीं

Bhopal.









प्रोटीन के नाम पर यदि आपकी थाली में मूंग परोसी जा रही है तो पहले यह अच्छे से समझ लीजिए कि प्रोटीन तो छोड़िये यह खाने लायक​ तक नहीं है। खुद प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान सार्वजनिक मंच से यह बात बोल चुके हैं कि जो किसान मूंग लगा रहा है, वह खुद भी इसे कभी नहीं खाएगा। सवाल उठता है ऐसा क्यों...यह जानने द सूत्र ने पूरे मामले की पड़ताल की, जो सच्चाई आई वह बेहद चौकाने वाली है। दरअसल पूरा मामला मूंग में उपयोग किए जा रहे कीटनाशक दवाओं से जुड़ा है। इस फसल को कीट और बीमारी से बचाने के लिए हर दसवें दिन दवाओं का छिड़काव होता है। फसल कटने तक करीब 4 से 5 बार दवाई का उपयोग हो जाता है, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। सच्चाई यह भी है कि किसान खुद भी इसे स्वीकार करता है कि वह मूंग को जहरीली कर रहा है। सोशल मीडिया पर किसानों की आपसी बातचीत में खुद किसानों ने इसे कई बार स्वीकार भी किया है।  









इतना खतरनाक है पैराक्वाट डायक्लोराड-24 एसएल





 



ग्रीष्मकालीन मूंग की बोवनी 28 मार्च से 2 अप्रैल के बीच हो जाती है। यह फसल 55 से 65 दिन की होती है। मतलब इसके कटने के समय प्री मानसून बारिश का खतरा रहता है।



ऐसे में किसान बारिश के खतरे को भांपकर पैराक्वाट डायक्लोराड-24 एसएल दवाई का उपयोग करता है, ताकि बारिश से पहले ही फसल काट ली जाए। पैराक्वाट डायक्लोराड-24 एसएल एक खतरनाक रासायनिक मिश्रण है। यह इतना खतरनाक है कि जिस पौधे पर इसका छिड़काव होता है, उसकी पत्तियां केवल दो घंटे के भीतर पीली पड़ जाती हैं। जिस पौधे को सूखने में 7 से 10 दिन लगना चाहिए वह पौधा इस दवाई के उपयोग मात्र से केवल 12 से 16 घंटे में पूरी तरह से सूख जाता है।









4 लाख हेक्टेयर पर हो रही जहर की खेती







प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग की बोनी का रकबा 4.47 लाख हेक्टेयर है। अकेले हरदा और नर्मदापुरम जिले में करीब 4.50 लाख मीट्रिक टन मूंग उत्पादन होने का अनुमान है। जो किसान मार्च तक मूंग की बोवनी कर लेता है, उसकी मूंग की फसल तो समय पर पक जाती है, बाकि जो किसान लेट बोवनी करता है, उसके लिए फसल काटने के लिए अंतिम विकल्प पैराक्वाट डायक्लोराड-24 एसएल ही होता है। जानकार बताते हैं कि प्रदेश में करीब 4 लाख हेक्टेयर पर यही जहर की खेती हो रही है। दूसरी ऐसी कोई फसल नहीं जिसमें इतनी अधिक मात्रा में कोरोजिन नामक रसायनिक दवाओं और पैराक्वाट डायक्लोराड-24 एसएल जैसे खतरनाक रासायनिक मिश्रण का उपयोग होता है।









सबकुछ जानते हुए भी इसलिए होता है इसका उपयोग







सीहोर के किसान राकेश कटारे बताते हैं कि मूंग की फसल में पौधों में बार-बार फूल आते रहते हैं, एक बार फलियां पक जाने पर यह जरूरी हो जाता है कि उसके पौधे को दवा का इस्तेमाल कर सुखा दिया जाए। मानसून की कवायद और खरीफ फसल के लिए खेत तैयार करने की जल्दबाजी में इतना समय नहीं होता कि मूंग का प्राकृतिक तरीके से सूखने का इंतजार किया जाए। हार्वेस्टर से काटने के लिए फसल का सूखा होना जरूरी है। इसलिए किसान यह जानते हुए भी कि यह दवा बेहद खतरनाक है, इसका इस्तेमाल करते हैं।









मूंग में जहर होना इसलिए बेहद खतरनाक







मूंग में इस तरह का जहर होना इसलिए बेहद घातक है क्योंकि मूंग का इस्तेमाल हम बीमारी की स्थिति में ज्यादा करते हैं, बीमार व्यक्ति की थाली में इसका भी एक जगह होती है। इसका कारण मूंग में कैलोरी, पोटैशियम और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। मूंग में सिर्फ 3 फीसदी फैट होता है। हरी मूंग वजन कम करने में काफी हद तक फायदेमंद है। ये आपके मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करके वेट लॉस में मदद करती है। मूंग में थायमिन और फोलेट अधिक होता है। 100 ग्राम मूंग में मूंग में 23.9 ग्राम प्रोटीन होता है जो चिकन से भी ज्यादा है। यही कारण है कि मूंग को स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना गया है, पर इसमें ही जहर को होना बेहद चिंताजनक है।









कई देशों में प्रतिबंध, पर हमारे यहां आसानी से उपलब्ध







नर्मदापुरम जिले के कृषि के जानकार कश्मीर सिंह उप्पल बताते हैं कि पैराक्वाट डायक्लोराइड—24 एसएल नॉन सिलेक्टिव खरपतवार नाशक दवा है। 1952 से इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे क्लास टू खतरनाक जहर की श्रेणी में रखा है। इसका आज तक एंटीडोज नहीं बनाया जा सका है। कई अफ्रीकी, एशियाई, यूरोपीय यूनियन, स्विट्जरलैंड जैसे देशों में इस पर प्रतिबंध है। अमेरिका में इसे इस्तेमाल करने के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, लेकिन भारत में केवल अकेले केरल में इसका प्रयोग मना है, यह यहां ऐमेजॉन तक पर आसानी से उपलब्ध है।









दो एकड़ फसल में एक लीटर दवा का उपयोग







कीटनाशक दवाओं के विक्रेता विष्णुप्रसाद चंद्रवंशी ने बताया कि पैराक्वाट डायक्लोराइड की कीमत करीब 400 रूपए प्रति लीटर है। तकरीबन दो एकड़ फसल में एक लीटर दवा का छिड़काव किया जाता है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अकेले पैराक्वाट डायक्लोराइड की नर्मदापुरम जिले में तीन लाख लीटर की खपत होती है।









पैन लंबे समय से कर रहा है इसे प्रतिबंधित करने की मांग







2015 में पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क ऑफ इंडिया (पैन) ने इस दवा के इस्तेमाल पर छह राज्यों में एक अध्ययन किया और कारण था कि पैन इस दवा का कुछ प्रतिबंधित करने की मांग कर रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक इस दवा का इस्तेमाल तकरीबन 25 तरह की फसलों पर किया जा रहा है। दवा का खुलेआम इस्तेमाल डियन इंसेक्टीसाइट एक्ट 1968 का भी खुला उल्लंघन है। पैन की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के सबसे खतरनाक रसायनों में शुमार इस दवा की खपत तेजी से बढ़ी है। 2007-08 में जहां इस दवा की खपत 137 मीट्रिक टन थी वहीं छह सालों में यह 249 मीट्रिक टन तक जा पहुंची है।









इन बीमारियों का खतरा







कंडिशन ऑफ पैराक्वाट यूज इन इंडिया रिपोर्ट के लेखक दिलीप कुमार एडी ने इसका उल्लेख किया है कि इस दवा का अब तक कोई एंडीडोज नहीं होने से इसका इलाज अब भी एक समस्या है। इससे लीवर में दिक्कत, आंखों में जलन, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, बेचैनी, जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दवा का इस्तेमाल करने वाले ते 34 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसके इस्तेमाल के बाद उन्हें कई तरह की शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। इनमें से 25 प्रतिशत लोगों को इस बात पर पूरा भरोसा था कि पैराक्वाट के कारण ही उन्हें समस्या हुई है, जबकि 15 प्रतिशत ने आशंका जताई और तीस प्रतिशत ने यह माना कि शायद वह असुरक्षित तरीके से छिड़काव के चलते इस समस्या को झेल रहे हैं।









सीआईबीआरसी की रिपोर्ट में दवा के उपयोग में मूंग शामिल नहीं







भारत में सेंट्रल इंसेक्टीसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्शन रे कमिटी (सीआईबीआरसी) ने पैराक्वाट रसायन को केवल दस फसलों के लिए मान्य किया है. इनमेंचाय, काफी, आलू, कपास, रबर, धान, गेहूं, मक्का, अंगूर और सेब शामिल हैं। इसमें मूंग का नाम शामिल नहीं है। सीआईबीआरसी ने इस दवा के इस्तेमाल के लिए कुछ मापदंड निर्धारित किए हैं, लेकिन मूंग की फसल के लिए कोई मापदंड संस्था की वेबसाइट पर दर्ज नहीं है।









सरकार बेन क्यों नहीं करती पैराक्वाट डायक्लोराइड







किसान नेता समीर शर्मा कहते हैं कि यदि पैराक्वाट डायक्लोराइड का उपयोग बेहद घातक हैं तो सरकार इसका उपयोग बेन क्यों नहीं करती। सरकार बायो केमिकल बाजार में क्यों नहीं लाती। सीएम शिवराज ये तो कहते हैं कि किसान खुद इस मूंग को नहीं खाएगा। पर किसानों को 42 डिग्री के टेम्परेचर में खेत में काम कर आनंद नहीं आता है। किसान तीसरी फसल के रूप में गर्मी में मूंग लगाने के लिए इसलिए मजबूर है क्यों रबी और खरीब की फसल लाभकारी नहीं रही। उससे वह अपनी लागत भी बड़ी मुश्किल से निकाल पाता है। उस घाटे को रिकवर करने और परिवार का जीवनयापन करने किसान तीसरी फसल के रूप में मूंग की खेती करता है।









दाल को धोने से कम किया जा सकता है इसका दुष्प्रभाव







हरदा के कृषि वैज्ञानिक एसके तिवारी मेच्योरिटी के समय मूंग में पैराक्वाट डायक्लोराइड के उपयोग को बेहद गलत मानते हैं। उनके अनुसार इसका असर मूंग के दाने तक में हो आ जाता है, जो कि किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक है। भोपाल के सिविल सर्जन डॉ. राकेश श्रीवास्तव का कहना है कि दाल को अच्छे से धोकर उपयोग में लाना चाहिए, इससे पेस्टिसाइड का प्रभाव पूरा तो नहीं लेकिन 70 से 80 फीसदी तो कम किया ही जा सकता है। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार इस तरह के खतरनाक रसायन का उपयोग फसल में कतई नहीं होना चाहिए।



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