मध्यप्रदेश में खरीफ फसलों की मुआवजा राशि तय करने की स्केल हुई कम, सोयाबीन में 9400 रुपए प्रति हेक्टेयर की कमी, धान में भी कटौती

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Rahul Garhwal
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मध्यप्रदेश में खरीफ फसलों की मुआवजा राशि तय करने की स्केल हुई कम, सोयाबीन में 9400 रुपए प्रति हेक्टेयर की कमी, धान में भी कटौती

संजय गुप्ता, INDORE. मध्यप्रदेश में अन्नदाताओं के साथ खेला हो गया है। मध्यप्रदेश शासन ने फसल बीमा योजना में मुआवजा राशि तय करने के लिए बनी स्केल ऑफ फाइनेंस की दरों में भारी कटौती कर दी है। स्केल ऑफ फाइनेंस का मतलब है कि फसल बीमा क्लेम के लिए किसी फसल के लिए किसी जिले में दी जाने वाली प्रति हेक्टेयर अधिकतम राशि। यानी सीधे शब्दों में कहें तो अब यदि किसान की फसल खराब होती है तो उसे फसल बीमा कम मिलेगा। इस स्केल में खरीफ कैटेगरी में 13 फसलें हैं, जिसमें अधिकांश में कटौती की गई है।




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2022 में खरीफ की विभिन्न फसलों के हर जिले में अलग-अलग स्केल ऑफ फाइनेंस रेट





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2023 के लिए घोषित स्केल ऑफ फाइनेंस रेट




मध्यप्रदेश सोयाबीन स्टेट



मध्यप्रदेश को सोयाबीन स्टेट कहा जाता है, यहां किसानों की मांग थी स्केल ऑफ फाइनेंस यानी अधिकतम मुआवजे की राशि जो इंदौर जिले में अभी 45 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर थी, इसे बढ़ाकर 55 हजार रुपए कर दी जाए, लेकिन इसके उलट मध्यप्रदेश शासन ने इंदौर जिले के लिए ये राशि 35 हजार 600 रुपए कर दी, यानी इसमें 9 हजार 400 रुपए प्रति हेक्टेयर की कमी कर दी।



किसान संघ ने लगाए आरोप- मनमर्जी से तय की दर



स्केल ऑफ फाइनेंस की दर तय करने के लिए हर जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में कृषि विभाग के सहकारिता विभाग के अधिकारी, मंडी समिति और किसानों के प्रतिनिधियों की कमेटी निर्णय करती है। ये दाम भोपाल भेजे जाते हैं और फिर इनका नोटिफिकेशन कर रेट जारी किए जाते हैं, लेकिन किसान संघों का आरोप है कि इस बार प्रदेश में अधिकारियों ने मनमानी करते हुए बगैर किसी मीटिंग के दर का निर्धारण कर दिया। संयुक्त किसान मोर्चे के रामस्वरुप मंत्री और बबलू जाधव ने बताया कि इंदौर जिले में पहले ही 130 से ज्यादा पंचायतों के किसानों को फसल बीमा योजना से वंचित कर दिया गया था और अब सोयाबीन के लिए स्केल फाइनेंस को कम कर दिया है जोकि किसानों के साथ अन्याय है।



सीएम से की मांग, दरें बढ़ाई जाएं



संयुक्त किसान मोर्चे ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मांग की है कि किसानों के साथ इस ठगी के लिए जो भी व्यक्ति जिम्मेदार है उसे दंडित किया जाए और सोयाबीन के स्केल ऑफ फाइनेंस की दर 55 हजार प्रति हेक्टेयर की जाए। वर्तमान में खेती की लागत ही बढ़ी है। आज खाद, बीज, डीजल दवाई सहित सभी जरूरी सामान की कीमत भी बढ़ी है। ऐसा लग रहा है कि मध्यप्रदेश के अफसर देश में महंगाई को कम हुआ मान रहे हैं।



किन फसलों के साथ क्या हुए स्केल ऑफ फाइनेंस



उदाहरण के तौर पर




  • इंदौर - सोयाबीन के दाम पहले 45 हजार रुपए थे, जो अब 35 हजार 600 रुपए किए गए। 


  • रतलाम - सोयाबीन के दाम पहले 52 हजार रुपए थे, जो अब घटकर 52 हजार हो गए हैं।

  • उज्जैन - सोयाबीन के दाम पहले 47 हजार रुपए तय थे, जो अब 33 हजार 600 रुपए हो गए हैं।

  • मुरैना - यहां धान सिंचित के दाम पहले 43 हजार 250 रुपए थे, जो अब घटकर 32 हजार 600 रुपए हो गए हैं। 

  • सागर - मूंग के दाम पहले 26 हजार 500 रुपए थे, जो अब घटकर 14 हजार 700 रुपए मात्र रह गए हैं। 

  • धार - सोयाबीन के दाम बीते साल 39 हजार 600 रुपए थे, जो इस बार भी समान है। बाजरा के दाम 20 हजार थे, जो बढ़ाकर 20 हजार 500 रुपए किए गए हैं। कपास के दाम 59 हजार थे, जो बढ़ाकर 64 हजार 900 रुपए प्रति हेक्टेयर किए गए हैं।



  • स्केल ऑफ फाइनेंस में ये फसलें



    जिले के हिसाब से जहां जिसकी पैदावार ज्यादा होती है, उन्हें इस दायरे में रखा गया है। इसमें सिंचित धान और असिंचित धान के साथ सोयाबीन, मक्का, बाजरा, अरहर, ज्वार, कोदो-कुटकी, मूंगफली, कपास, तिल, मूंग, उड़द शामिल है। अधिकांश जगहों और फसलों के दामों में कटौती हुई है, जहां दाम बढ़ाए भी गए हैं। वहां कपास की फसल को छोड़कर बहुत ही मामूली दाम बढ़ाए गए हैं। इसके चलते किसानों में गुस्सा है।


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